Friday, April 18, 2025
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सालम की क्रांति 25 अगस्त 1942 का स्वतंत्रता सग्राम में महत्वपूर्ण योगदान

सालम की क्रांति –

अल्मोड़ा जिले में बसा सालम क्षेत्र तल्ला सालम और मल्ला सालम में विभक्त है। इसे पनार नदी दो अलग अलग भागों में विभक्त करती है। 19वी शताब्दी में संम्पूर्ण उत्तराखंड में स्वाधीनता की अलख जागने लगी और उत्तराखंड का सालम क्षेत्र से  भी लोगों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई सालम क्षेत्र से राम सिंह धोनी नामक क्रांतिकारी, समाज सुधारक ,कम उम्र में देशभक्ति और समाज सुधार की ऐसी मिसाल दे गए और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बन गए।

इन्ही प्रेणाओं पर आगे बढ़ते हुए,सालम क्षेत्र के लोंगो ने आजादी की अलख जगाए रखी और उनके बचे हुए कार्यों को आगे बढ़ाने में जुट गए। देश के अलग अलग कोनो में स्वतंत्रता की अलख जगाए, सालम क्षेत्र के कई स्वतंत्रता सेनानी,वापस अपने क्षेत्र में आ गए। और स्वराज्य आंदोलन में सक्रिय हो गए। सालम अल्मोड़ा क्षेत्र में कौमी एकता दल के कई युवा सक्रिय होने के कारण सालम के दूर गावों तक स्वतंत्रता आंदोलन की आंच पहुँच गई।

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अल्मोड़ा शहर फाटक में 23 जून 1942 को मंडल कांग्रेस की एक बड़ी सभा आयोजित की गई, जिसमे कुमाऊं क्षेत्र के प्रसिद्ध नेता हर गोविंद पंत जी ने झंडा फहराया। बाद में राजस्व पुलिस ( पटवारी ) ने झंडा उतार कर भीड़ को तीतर बितर कर दिया। फिर 1 अगस्त 1942 को सालम के 11 स्थानों पर झंडा फहराने का निर्णय हुवा। 6 अगस्त को भारत छोड़ो और करो या मरो आंदोलन का प्रस्ताव पास होने के बाद 9 अगस्त को महात्मा गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। और उत्तराखंड के प्रतिनिधि गोविंद बल्लभ पंत जी को भी हिरासत में ले लिया गया।

पूरे देश मे नेताओ और कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू हो गई। इसी धर पकड़ के लिए पटवारियों का दल ,राम सिंह आजाद के घर सांगड गावँ में पहुच गया। मगर राम सिंह आजाद पटवारी दल को चकमा देकर गायब हो गए। उस समय सालम क्षेत्र के गावों में लगभग 200 कौमी एकता दल के सदस्य सक्रिय थे। वे पूरी ताकत से कैम्प लगा कर ,क्षेत्रीय जनता को जागरूक कर रहे थे। और ब्रिटिश सरकार भी इनको रात को गुपचुप पकड़ने की योजना बना रही थी।

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19 अगस्त को कौमी एकता के सदस्यों  का दल 23 -24 अगस्त को ,बिनोला, बांजधार,जैंती , बारम से नौगांव पहुच गया। यहां रात को ,भविष्य की योजना बना रहे थे,तो ब्रिटिश पुलिस बल ने गाव को चारों ओर से घेर लिया,और बैठक में शामिल 14 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस बल द्वारा गिरफ्तार किए हुए सदस्य रात को, आजादी के गीत गाते हुए चलने लगे। और यह खबर आस पास के लोगो को पता चल गई,तो सभी क्षेत्रवासी बीरखम्भ में एकजुट हो गए।

रात को अचानक इतनी बड़ी भीड़ देख कर पुलिस बल घबरा गया। डराने के लिए पटवारी ने हवाई फायर किया तो, भीड़ लाठी डंडे लेकर पोलिस वालों पर टूट पड़ी। उनकी बंदूकें छीन कर ,कौमी एकता के सदस्यों को छुड़ा लिया। तथा दूसरे दिन जैंती के स्कूल में मिलने का निर्णय हुवा।

अगले दिन जैंती स्कूल में, अल्मोड़ा से आये ,कौमी दल के सदस्यों ने सूचना दी कि, अंग्रेजो की फौज हथियारों से लैस होकर अल्मोड़ा से निकल गई है, कल दोपहर तक यहां पहुचने की संभावना है।

25 अगस्त 1942 के दिन आस पास के कई गांवों के लोग ,तिरंगे,ढोल नगाड़ों के साथ धामदेव के तप्पड़ में एकत्र होने लगे। थोड़ी देर बाद खबर मिली है, कि ब्रिटिश फ़ौज पूरे दल बल के साथ आ रही है, इसे सालम की बगावत को सख्ती से दमन करने के निर्देश मिले हैं। इस खबर से मानो जनता में भूचाल आ गया, हजारों की संख्या में लोग पूरे जोश से जुटने लगे।

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जब ब्रिटिश फ़ौज नजदीक पहुँची तो,उन्होंने जनता को डराने के लिए हवाई फायर की, तब जनता भड़क गई और अपने बचाव के लिए,ब्रिटिश सेना पर पत्थरों की बौछार शुरू कर दी। धामदेव का मैदान पूरा युद्ध का मैदान बन गया। एकतरफ दलबल के साथ ब्रिटीश सेना,दूसरी ओर कुमाऊं के निहत्ते स्वतंत्रता सेनानी।

वहां हाहाकार मचा हुआ था। एक गोली चैकुना गाँव के नर सिंह धानक के पेट मे जा लगी और वो शाहिद हो गए। उसके बाद एक गोली टिका सिंह कन्याल को लगी ,वो गभीर रूप से घायल हो गए,बाद में शहीद हो गए। शाम होते होते यह सँघर्ष खत्म हो गया। इसमें जो कौमी दल के सदस्य पकड़े गए, उन पर जुल्म करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

अंग्रेजी सरकार के खिलाफ सालम क्रांति , सालम के शहीदों ने बलिदान देकर उत्तराखंड के नवजवानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत का कार्य किया है। उन्ही वीरों की शहादद के बदले हमे यह देश और यह राज्य मिला है। अतः उत्तराखंड के नवजवानों को आगे आकर,दलगत राजनीति सर ऊपर उठकर ,राज्य और देश के सर्वागीण विकास में अपना अमूल्य योगदान देना चाहिए।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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