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कुमाऊनी भजन लिरिक्स –
पहाड़ों में जन्माष्टमी का त्यौहार आते ही,हम लोग एक पारम्परिक कुमाउनी भजन खूब गुनगुनाते थे। अभी भी कुछ लोग उस पारम्परिक पहाड़ी भजन को गुनगुनाते हैं। कुमाऊँ में जन्माष्टमी के दिन वही भजन गाया जाता है। आज आपके लिए उसी प्रसिद्ध कुमाऊनी भजन लिरिक्स लाए हैं। श्रीकृष्ण जनमाष्टमी में इस भजन को गा के, भगवान श्रीकृष्ण को तो, खुश करेंगे ही, और आपने बचपन की यादें भी ताजा करेंगे -भजन इस प्रकार है –
“यशोदा मैया त्यर कन्हैया ”
यशोदा मैया त्यर कनहैया बड़ो झगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमू दगडी।।
जमुना जी मे कूदी पड़ो, गिनुवा दगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमू दगडी।।
यशोदा मैया त्यर कन्हैया ….
जमुना जी मे लड़ी पड़ो ,कालिया दगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमू दगड़ी ।
गोपियों की मटकी फोड़ू ,दगाड़ियाँ दगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमरे दगड़ी।
यशोदा मैया त्यर कन्हया , बड़ो झगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमू दगड़ी।।
घ्यू , माखन चोरी दिछो, दगड़िया दगड़ी।
झन लगाए ,गोरु ग्वावा हमू दगड़ी।
मधुबन में नाची पड़ो ,राधा दगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा ,हमू दगड़ी।
यशोदा मैया त्यर कनहैया बड़ो झगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमू दगडी।।
गोकुल में लड़ी पड़ो , पूतना दगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमरे दगड़ी
यशोदा मैया त्यर कन्हया , बड़ो झगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा………
गोवर्धन में लड़ी पड़ो इन्द्र दगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा ,हमू दगड़ी।।
वृंदावन में मुरली बजु, गोरुके दगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमू दगड़ी।
यशोदा मैया त्यर कन्हया , बड़ो झगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा………
मथुरा जी मे लड़ी पड़ो कंस दगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमरे दगड़ी।।
यशोदा मैया त्यर कनहैया बड़ो झगड़ी।
झन लगाए गोरु ग्वावा हमू दगडी।।
कुमाऊनी भजन यशोदा मैया त्योर कन्हैया का हिंदी अर्थ
गोकुल वाले माँ यशोदा से प्रार्थना कर रहे हैं कि , हे यशोदा मैया ! अपने कन्हैया को हमारे साथ, गाय चराने मत, भेजना ये बहुत नटखट हैं। ये गेंद के बहाने यमुना जी मे कूद जाते हैं। और वहां कालिया नाग से लड़ जाते हैं। अपनी मित्रमंडली के साथ,गोपियों की मटकी फोड़ते हैं,तथा माखन चुराते हैं।हे यशोदा मैया आपसे निवेदन है,इन्हें हमारे साथ गायों के ग्वाले ना भेजें , आपके कन्हैया बहुत शैतानी करते हैं। ये मधुबन में राधा रानी संग रास रचाते हैं,तो पूतना के साथ लड़कर उसका वध कर देते हैं।और गोवर्धन पर्वत उठा कर इंद्र का घमंड चूर करते हैं। और मथुरा जी मे, कंस से लड़कर उसका वध करते हैं। अतः हे माँ आप कन्हैया को हमारे साथ ग्वाला ना भेजे ये बहुत नटखट हैं।
मित्रों यह था पारम्परिक कुमाउनी भजन, जिसे हम बचपन मे, और अभी भी जनमाष्टमी के दिन गाते थे, या गुनगुनाते थे। इस भजन में पहाड़ में कही- कही एकाधअलग अलग शब्दों का प्रयोग भी करते हैं। जैसे झगड़ी,को उजेड़ी भी बोलते हैं, यशोदा मैया को जशोदा मैया भी बोलते हैं।
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