मद्महेश्वर धाम : गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित मद्महेश्वर मंदिर उत्तराखंड के पंचकेदारों में पंचम केदार के रूप में पूजनीय है। समुद्रतल से लगभग 3298 मीटर की ऊँचाई पर, यह देवस्थान चौखम्बा शिखर के मूल में अवस्थित है और अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
गुप्तकाशी से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर ऊखीमठ, कालीमठ और मनसुना गाँवों से होते हुए लगभग 26 किलोमीटर की पैदल यात्रा द्वारा पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा गौरीकुंड-केदारनाथ मार्ग से लगभग 14 किलोमीटर की चढ़ाई के बाद भी यहां पहुंचा जा सकता है।
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मद्महेश्वर धाम के नाम की उत्पत्ति और पौराणिक कथा –
माना जाता है कि मद्महेश्वर नाम का अर्थ “मध्यम महेश्वर” है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव के वृषभ (बैल) रूप से प्रकट हुए विभिन्न अंगों की पूजा पंचकेदारों में की जाती है। इसी श्रंखला में केदारनाथ में शिव की पृष्ठभाग, रुद्रनाथ में मुख, कल्पेश्वर में जटा, तुंगनाथ में भुजाएँ और मद्महेश्वर में उनकी नाभि की पूजा की जाती है। शिवलिंग का आकार भी नाभि के समान माना जाता है, इसी कारण इसे मद्महेश्वर कहा जाता है।
स्थापत्य और पूजा पद्धति-
यह मंदिर छत्रप्रधान शैली में निर्मित है और भीतर स्थापित पाषाण लिंग के समीप चाँदी की उत्सव मूर्ति विराजमान है। मंदिर के पुजारी कर्नाटक राज्य के चित्रकाली (मैसूर) से आने वाले जंगम ब्राह्मण होते हैं, जिनकी नियुक्ति केदारनाथ के रावल द्वारा की जाती है। मद्महेश्वर मंदिर केदारनाथ धाम के प्रशासनिक अधीनता में आता है, और इसकी आय का एक भाग केदारनाथ मंदिर के कोष में जमा किया जाता है। अक्टूबर-नवंबर में जब क्षेत्र में भारी हिमपात शुरू होता है, तब यह पूजा ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में स्थानांतरित कर दी जाती है।
परंपरागत डोला यात्रा –
ग्रीष्मकाल के प्रारंभ में जब मद्महेश्वर धाम के कपाट खुलते हैं, तो भगवान शंकर, माता पार्वती, गणेश और कालभैरव की मूर्तियाँ ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर से परंपरागत शोभायात्रा के साथ एक डोले में रखकर मद्महेश्वर पहुंचाई जाती हैं। शीतकाल प्रारंभ होते ही, कपाट बंद किए जाने से पहले इन्हीं मूर्तियों को पुनः शोभा और श्रद्धा के साथ ऊखीमठ वापस लाया जाता है, जहाँ उनकी विधिपूर्वक पूजा होती है मद्महेश्वर धाम केवल एक तीर्थ न होकर श्रद्धा, परंपरा और प्रकृति की अद्भुत संगमस्थली है—जहाँ भक्ति और हिमालय की महिमा साथ-साथ अनुभव की जा सकती है।
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