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परिचय :
अगर उत्तराखंड के लोकसंगीत की आत्मा की तलाश करें, तो वह निश्चित ही नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों में मिल जाएगी।
गढ़वाल के इस महान लोकगायक, गीतकार और संगीतकार ने अपनी मधुर आवाज़ और अर्थपूर्ण बोलों के जरिए उत्तराखंड की संस्कृति, समाज, राजनीति, संघर्ष और प्रेम के हर रंग को सुरों में पिरोया है। 2024 में नेगी जी ने जीवन के 75वें वर्ष और रचनाकर्म के 50वें वर्ष में प्रवेश किया है। रेडियो से लेकर यूट्यूब तक, उन्होंने 4 पीढ़ियों को अपने गीतों से जोड़े रखा है।
प्रारंभिक जीवन :
पूरा नाम: नरेंद्र सिंह नेगी
जन्म: 12 अगस्त 1949
जन्मस्थान: पौड़ी गाँव, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड बचपन से ही लोकगीतों और कविता में रुचि थी।
पहला गीत – ‘सैरा बसग्याल बौंणु मा’ की कहानी**
1974 में, पिता के मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए देहरादून आए नेगी जी चूहड़पुर के डॉ. लेमन अस्पताल में ठहरे।
बरामदे में किराए की खाट पर बैठकर, घर की यादों और भावनाओं में डूबे हुए, उन्होंने अपना पहला गीत लिखा:
सैरा बसग्याळ बूणमा, रुड़ि कुटुणमा
ह्यूँद पीसी बितैनी, म्यारा सदानी यनि दिन रैनी…
यह गीत बाद में गढ़वाली गीत माला – भाग 2 (1983) में शामिल हुआ और गढ़वाली संगीत में मील का पत्थर साबित हुआ।
नरेंद्र सिंह नेगी की संगीत यात्रा – रेडियो से डिजिटल युग तक :-
रेडियो युग (1976–1981)
- 1976: पहला रेडियो गीत – *धागुला जंवर छणमणादी
- आकाशवाणी दिल्ली, अल्मोड़ा, नजीबाबाद से गीत प्रसारित
- रेडियो से मिली लोकप्रियता ने आगे के सफर की नींव रखी
कैसेट युग (1982–2005) –
- 1982: पहला कैसेट – गढ़वाली गीत माला – भाग 1
- कुल 45 एल्बम रिलीज, जिनमें 100 कु नोट, नयु नयु ब्यो, बारामासा, नौछमी नरौण, सुर्मा सरेला जैसे हिट एल्बम शामिल
राजनीतिक, सामाजिक और प्रेम विषयों पर विविध रचनाएं
डिजिटल युग (2019–वर्तमान)
यूट्यूब पर वापसी – जख मेरि माया रोंदि (2019)
नरेंद्र सिंह नेगी जी के हिट डिजिटल गीत:
- क्वी त बात होलि (2020)
- लोकतंत्र मा (2022)
- भाभर नि जौला (2024)
- रजिनामा कैजा (2024)
नरेंद्र सिंह नेगी जी के प्रसिद्ध गीत –
1. सुर्मा सरेला
मेरी सुरमा सरेला सुरमा एजई…
मेरा मुलुक मेला एजई ईई…
2. दादू मेरि उल्यारी जिकुड़ी
दादू मि पर्वतु को वासी झम झम ले…
दादू मेरि गेल्या च हिलांसी…
3. नौछमी नरौण
राजनीतिक व्यंग्य और जनभावनाओं का संगम 2006 में पहाड़ों का डायलन की उपाधि
फिल्मी योगदान :
नेगी जी ने गढ़वाली फिल्मों में गीत, संगीत और गायन का योगदान दिया:
- घरजवैं (1986)
- कौथीग (1987)
- औंसि की रात (2004)
- सुबेरो घाम* (2015)
- ढोली (2024
साहित्यिक योगदान
- गीत संग्रह: खुचकुण्डि, गाण्यों कि गंगा, मुट्ट बोटि की रख, तुम दगड़ी गीत राला
- कविता संग्रह: अब जबकि (2023)
- अनुवाद: नरेन्द्र गीतिका – 60 गीतों का हिंदी अनुवाद
पुरस्कार और सम्मान
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार– 2022
- आवाज रत्न पुरस्कार– 2021
- अनेक राज्य और राष्ट्रीय सम्मान
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
- उत्तराखंड राज्य आंदोलन में गीतों से जनजागरण
- महिला और युवा कलाकारों को मंच देने में अग्रणी
- प्रेम, विरह, हास्य, व्यंग्य, राजनीति और समाज पर रचनाएं
- 4 पीढ़ियों तक फैला श्रोता वर्ग
निष्कर्ष
नरेंद्र सिंह नेगी केवल एक गायक नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आवाज़, संस्कृति और पहचान हैं। उनकी 50 वर्षों की गीत यात्रा रेडियो से यूट्यूब तक, हर पीढ़ी के दिल में गूंजती रहेगी।
नेगी जी के गीत सुनने के लिए उनका यूट्यूब चैनल देखें यहाँ क्लिक करें।
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