उत्तराखंड के लोक देवता : उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, भारत का एक ऐसा राज्य है जहां धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का गहरा संबंध प्रकृति और उसके रहस्यमय रूपों से जुड़ा हुआ है। इस प्रदेश में प्रकृति की सुंदरता के साथ-साथ उसकी भयावहता भी एक साथ पाई जाती है। यहीं से उत्तराखंड के लोक देवताओं की उत्पत्ति हुई है। ये देवता न केवल सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में उनकी भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में हम उत्तराखंड के लोक देवताओं की परंपराओं, उनके प्रभाव, पूजा पद्धतियों और उनके समाज में महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
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देवता शब्द की उत्पत्ति और उसकी संकल्पना –
‘देवता’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘दिव’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है – चमकना, खेलना या दिव्य रूप में प्रकट होना। वैदिक साहित्य में ‘देव’ शब्द का प्रयोग सूरज, चंद्रमा, अग्नि, वायु, आदि के लिए किया गया था, जो स्वाभाविक रूप से देदीप्यमान होते थे। इस अवधारणा के अनुसार, देवता को दिव्य गुणों के साथ जोड़ा गया। उत्तराखंड में लोक देवताओं का मतलब केवल पारंपरिक रूप से मान्यता प्राप्त शक्तियों से नहीं है, बल्कि ये लोक देवता वे हैं जो सीधे तौर पर स्थानीय जीवन, संस्कृति और प्राकृतिक घटनाओं से जुड़े हुए हैं।
उत्तराखंड के लोक देवताओं का इतिहास और उनका स्वरूप –
उत्तराखंड के लोक देवताओं का एक अद्वितीय स्वरूप है। ये देवता किसी धार्मिक पंथ या विचारधारा से संबंधित नहीं होते, बल्कि इन्हें स्थानीय संस्कृति और विश्वासों के आधार पर पूजा जाता है। यह प्रदेश न केवल पौराणिक देवताओं का स्थान है, बल्कि यहां के लोक देवताओं की पूजा पारंपरिक रूप से की जाती है। इन लोक देवताओं की पूजा की विधियाँ सरल और आडंबरहीन होती हैं, जो पूरे समाज की सांस्कृतिक परंपराओं के अनुरूप होती हैं।
लोक देवता का महत्व इस दृष्टिकोण से समझा जा सकता है कि ये देवता केवल धार्मिक नहीं होते, बल्कि यह जीवन के अन्य पहलुओं जैसे सुख, दुख, कृषि, पशुधन, न्याय और अन्य सामाजिक आवश्यकताओं से भी जुड़े होते हैं। इन देवताओं की पूजा का उद्देश्य किसी संकट से बचने, समृद्धि प्राप्त करने और सामाजिक न्याय की रक्षा करना होता है।
उत्तराखंड के लोकदेवता केवल पौराणिक अर्थों में देवी-देवता नहीं हैं, बल्कि ये वे आत्माएं हैं जो कभी इस समाज का हिस्सा थीं। अपने जीवनकाल में इनके कार्य ऐसे रहे जिन्होंने लोगों के दिलों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। किसी ने परोपकार और न्यायप्रियता से लोगों का दिल जीता, तो किसी ने अपने अन्याय और क्रूरता से भय पैदा किया। मरने के बाद भी इनके प्रभाव को लोग महसूस करते रहे और इन्हें देवता मानकर पूजने लगे। इनके प्रति लोगों की आस्था बहुत गहरी होती है। पूजा की विधि सरल होती है, बिना किसी बड़े कर्मकांड के, केवल फूल, धूप, दीप और सच्चे मन की प्रार्थना से इन्हें प्रसन्न किया जाता है।
लोकदेवता लोगों के जीवन के हर पहलू से जुड़े होते हैं – उनके खेत, पशुधन, परिवार, सुख-दुख और त्योहारों से। इन्हें परिवार का सदस्य माना जाता है। लोग उनसे अपने मन की बातें करते हैं, शिकायत भी करते हैं और माफी भी मांगते हैं। इनका कार्यक्षेत्र सीमित होता है, लेकिन प्रभाव गहरा। लोकदेवता सिर्फ आस्था का विषय नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, जो हर पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखते हैं।
प्रकृति और लोक देवताओं का संबंध –
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में प्रकृति की दोनों खूबसूरती और उसकी भयावहता का गहरा प्रभाव होता है। हिमाच्छादित शिखर, सघन वन, घाटियां, नदियाँ, जलप्रपात, यह सभी प्राकृतिक शक्तियां मनुष्य को प्रकृति के प्रति सम्मान और भय का आभास कराती हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यहाँ के लोग इन प्राक्रतिक घटनाओं को देवताओं का रूप मानते हैं। उदाहरण के तौर पर, पहाड़ी नदियाँ, पहाड़ों के शिखर, दर्रे और गुफाएँ, ये सभी जगहें दिव्य शक्तियों से जुड़ी होती हैं।
उत्तराखंड के लोक देवता इन प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक होते हैं। यह देवता बर्फ, तूफान, वर्षा, आंधी, आग, और जलप्रलय जैसी प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने का कार्य करते हैं। साथ ही, इन देवताओं के माध्यम से स्थानीय लोग अपनी खेती-बाड़ी, पशुधन और परिवार की सुरक्षा की कामना करते हैं। यह देवता अपनी पूजा से प्राकृतिक आपदाओं को टालने की शक्ति रखते हैं और यह समाज में विश्वास और आस्था का केंद्र बन जाते हैं।
लोक देवताओं की पूजा पद्धतियाँ –
उत्तराखंड में लोक देवताओं की पूजा का तरीका बहुत ही सरल और आडंबर से मुक्त होता है। लोग अपनी दैनिक समस्याओं, संकटों और जरूरतों को लेकर अपने लोक देवताओं की पूजा करते हैं। पूजा की विधि में कोई जटिल कर्मकांड नहीं होते; लोग अपनी सामान्य बोली में अपने देवता से संवाद करते हैं। पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री में फूल, पत्तियां, रोट, हलवा, बत्तियाँ, और अन्य स्थानीय सामग्री शामिल होती है।
इन लोक देवताओं की पूजा में श्रद्धा और विश्वास का अहम स्थान होता है। जब किसी व्यक्ति की मुसीबत बढ़ती है, तो वह अपने इष्ट देवता से सीधे संवाद करके अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने की कोशिश करता है। इसके अलावा, यह देवता अपने भक्तों के जीवन की सभी खुशियों और दुखों में शामिल होते हैं, चाहे वह कोई उत्सव हो, शादी, या फिर किसी दुर्घटना का शिकार होना हो।
लोक देवताओं का प्रभाव और उनके कार्यक्षेत्र
उत्तराखंड में लोक देवताओं का प्रभाव बहुत गहरा और व्यापक होता है। इन देवताओं का प्रभाव क्षेत्र निश्चित होता है, अर्थात कुछ देवता केवल भूमि या कृषि की रक्षा करते हैं, जबकि अन्य देवता पशुधन की रक्षा करते हैं और कुछ के प्रभाव क्षेत्र में सामाजिक न्याय का उल्लंघन करने वाले लोगों का दंडन भी होता है।
इन देवताओं का कार्यक्षेत्र हमेशा सीमित और समाज के सामूहिक कल्याण से जुड़ा होता है। यदि कोई व्यक्ति या समुदाय इन देवताओं की पूजा नहीं करता, तो उसे प्राकृतिक आपदाओं, पशुधन की हानि, अथवा सामाजिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। इन देवताओं की पूजा से जहां सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, वहीं इनकी उपेक्षा से विपत्तियाँ भी आ सकती हैं।
लोक देवताओं के अद्वितीय गुण और उनकी पूजा
उत्तराखंड के लोक देवता न केवल आदर्श और संरक्षक होते हैं, बल्कि वे कई बार मानवीय स्वभाव के प्रतीक भी होते हैं। इन देवताओं में कभी क्रोध, कभी प्रेम, कभी संतोष और कभी गुस्सा होता है। यही कारण है कि ये देवता मानव जीवन के करीब होते हैं। वे कभी प्रसन्न होते हैं और कभी नाराज होते हैं, और इसी आधार पर उनके श्रद्धालु उनसे जुड़ते हैं।
लोक देवताओं का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ये किसी पौराणिक देवता की तरह सर्वव्यापी और निराकार नहीं होते, बल्कि इनका प्रभाव क्षेत्र विशेष होता है, जो उनके क्षेत्रीय अनुयायियों के जीवन से संबंधित होता है।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक देवता :
यहाँ उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पूजित कुछ प्रसिद्ध लोक देवताओं के बारे में जानकारी दी गई है जो इस प्रकार है :-
उत्तराखंड के देवी देवता : उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक देवता
- कठपुड़िया देवी: ये देवी कुमाऊं मंडल के पूर्वी शौका जनजाति द्धारा पथ रक्षिका देवी के रूप मे पूजित है। कठिन पहाड़ी रास्तों पर और विशेषकर दरों में इसकी स्थापना की जाती हैं।
- कंडारदेव: इन लोक देवता की पूजा उत्तरकाशी जनपद के उत्तरी क्षेत्र मे की जाती हैं। इनका बगियाल गांव के ऊपर ततराली गांव में मानते हैं।
- ऐड़ी: यह देवता पूरे उत्तराखंड मे पूजे जाते हैं। इन्हे मुख्य रूप से पशु पालकों का देवता माना जाता हैं। मान्यता है कि यह घने जंगलों में उल्टे पांव वाली आछरियो के साथ विचरण करते हैं।
- ओवलिया: यह देवता पिथौरागढ़ की महर पट्टी के भाटकोट के आसपास पूजा जाते हैं। जागरो मे इन्हें हरु देवता का अनुयायी माना जाता हैं।
- उल्का देवी: इस देवी को कुमाऊं क्षेत्र मे पूजा जाता है। इनका मन्दिर पिथौरागढ़ के पास हैं।
- उज्यारी देवी: ये कुमाऊं क्षेत्र मे मान्यता प्राप्त लोक देवी हैं। इन्हें ज्वालामुखी और कोट कांगड़ा की देवी भी कहा जाता हैं।
- आछरी/ मातरी/ परिया: माना जाता है कि जो कुंवारी लड़कियां अतृप्त इच्छाओं के साथ मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। वे आछरी बन जाती हैं ये ऊंचे पहाड़ों, घने जंगलों, नदी के किनारों पर विचरण करते है। जिन्हें लोकदेवी की मान्यता प्राप्त है।उत्तराखंड के टिहरी जिले में खेट पर्वत इनका प्रमुख स्थान माना जाता है।
- अन्यारी देवी: जोहार क्षेत्र मे पूजित यह देवी दुर्गा का रूप माना जाती हैं। इस देवी की पूजा नवरात्रों में अष्टमी को रात के अंधेरे मे की जाती। कुछ स्थानों पर गढ़ देवी के एक रूप को अन्यारी देवी के रूप में पूजा जाता है।
- अटरिया देवी: ऊधम सिंह नगर जनपत के साथ लोगों द्वारा पूजित देवी हैं। इस देवी का मन्दिर रूद्रपुर मे बस अड्डे के नजदीक में स्थित हैं।
- अकितरि: जनजातीय क्षेत्र रवाई -जौनपुर मे भेड़ पालकों द्वारा पूजा जानेवाला देवता हैं। इस देवता को भेड़ों का रखवाला माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन रवाई -जौनपुर सीमा के जंगल मे इस देवता की सामूहिक पूजा की जाती हैं।
- कर्ण देवता: यह भ्रमणशील और उदारमना लोक देवता हैं। इनका मूल स्थान उत्तरकाशी के रवाई क्षेत्र मे नौटवाड के निकट देवरा सिगतुर गांव में हैं।
- कसार देवी: अल्मोड़ा से 7 किमी उत्तर में इस देवी का मन्दिर है इस क्षेत्र मे इस देवी की अत्यधिक मान्यता है। यह मंदिर दुनिया के तीन रहस्य्मयी स्थलों में से एक है। कसार देवी के बारे में अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- कलबिष्ट: ये उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र मे पूजित देवता हैं। यह बिनसर के निकट कोट्यूरा गांव का वीर पुरुष था। जिसे षड्यंत्र से मारा गया था। मरणोपरांत इनकी प्रेतात्मा को लोक देवता के रूप मे पूजा जाने लगा। कलविष्ट देवता के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- कलुवावीर: यह एक नाथपंथी संत था। जो अन्य कई नागपंथी संतो की तरह परोपकार के कार्यों मे लगा रहता था। बाद मे इन्हे लोक देवता के रूप मे पूजा जाने लगा।
- कालसिण: इस देवी का प्रभाव पिथौरागढ़ जनपद का उत्तरी क्षेत्र दानपुर, जोहार, अस्कोट, सोर एव सीरा माना जाता हैं। ये छुरमल देवता की माँ मानी जाती है।
- कुमासेण देवी: यह देवी उत्तरकाशी जनपद मे पूजी जाती है। इनका मन्दिर कंबिला गांव के ऊपर पहाड़ मे हैं। रुद्रप्रयाग जिले के कुमेडी गांव मे भी कुष्मांडा देवी की पूजा कुमासेण के नाम से होती हैं।
- कैलापीर या कालावीर: यह एक मुस्लिम पीर है। इसकी पूजा गढ़वाल मंडल में लोक देवता के रूप मे की जाती हैं। इसे बहुत शक्तिशाली माना जाता हैं।
- कोकरसी: यह जौनसार क्षेत्र के खत पशगाव के गबेला गांव मे पूजा जाने वाला बेहद क्रोधी और तामसिक प्रवृति का लोक देवता हैं।
- क्यूंसर देवता: यह टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र का एक बहुमान्य लोक देवता हैं। इसका देवालय बगसील गांव में हैं।
- गुरना माई: इस देवी का मंदिर चंपावत में लोहाघाट के एंचोली गांव मे स्थित हैं।
- गोगा/ घोगा: यह जौनसार – बाबर क्षेत्र का एक लोक देवता हैं। गढ़वाल मे भी फूलदेइ के मौके पर बच्चे इस देवता की पूजा करते हैं।
- गबला: इस देवता का मुख्य स्थान दातू (दारमा) मे हैं। यह पूर्वी शौका क्षेत्र मे पूजित लोक देवता हैं।
- गोलू देवता/गोरिल देवता: यह उत्तराखंड और मुख्य रूप से कुमाऊं क्षेत्र मे सर्वाधिक पूजित लोक देवता हैं। इसे ग्वेल, ग्वल्ला, गोरिया, भान्या आदि नामो से भी पुकारा जाता हैं। इन्हे अत्यधिक प्रभावशाली और न्याय देने वाले देवता माना जाता हैं। यह एक मात्र ऐसा देवता हैं, जिनके दरबार में मनौती के लिए सादे कागज या स्टाम्प पेपर पर अर्जी लगाई जाती हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर देवता की पूजा करते हैं और घंटी चढ़ाते हैं। इनकाप्रसि अर्जी लगाने वाला प्रसिद्ध मंदिर अल्मोड़ा जनपत के चितई में स्थित है।
- घड़ियाल: यह उत्तराखंड मे बहुपुजित लोक देवता हैं। यह मूलतः घंटाकर्ण देवता हैं। यह क्षेत्र रक्षक देवता हैं। जागरो में इसे अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का रूप बताया गया है। इन्हे बद्रीनाथ मंदिर का रक्षक क्षेत्रपाल भी बताया गया है।
- गढ़ देवी: यह पूरे उत्तराखंड में नाथपंथी देवताओं के साथ पूजी जाने वाली न्याय की देवी है। इसे इन सभी देवताओं की धर्म बहिन कहा जाता हैं। गढ़ देवी की कहानी विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- चंपावती देवी: यह कुमाऊं के पूर्वी क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। यह कत्यूर और चन्द्र शासकों की ईष्ट देवी हैं। इनकी पूजा चंपावत के बालेश्वर में चंद शासकों द्वारा स्थापित देवालय में होती है।
- चोफकिया: इस लोक देवता का मन्दिर पिथौरागढ़ की महर पट्टी में विण के निकट वाड्डा गांव में हैं।
- छिपुला: यह पिथौरागढ़ जनपद के पूर्वी जनजाति क्षेत्र का बहुमान्य देवता हैं। इसका प्रभाव क्षेत्र धारचूला का नागुरिकोट मे हैं। वहा इनका देवालय भी हैं।
- छुरमल: यह पिथौरागढ़ के सौर से उत्तरी क्षेत्र मे पूजित लोक देवता हैं। लोक परम्परा मे छुरमल को कालसिण का पुत्र माना जाता हैं।
- जोखई: यह गढ़वाल के उत्तर- पश्चिम क्षेत्र के जनजातीय लोगों का एक लोक देवता हैं। इसका प्रतीक एक पाषाण खंड होता हैं।
- जगदेई: इसका पूजास्थल उत्तरकाशी जनपद के चिन्यालीसौड़ खंड के इंद्र गांव के ऊपर स्थित हैं। स्थानीय लोगों की इस देवी मे अगाध श्रद्धा है।
- जाख देवता: इन्हे यक्ष भूमियाल और शिव का रूप माना जाता हैं। इनका पूजा स्थल गुप्तकाशी के निकट देवशाल गांव के जखधार स्थान पर है। इसके अतिरिक्त कई स्थानों पर जाख अथवा जाखनी की पूजा की जाती हैं।
- झाली-माली: इनका मंदिर चंपावत जनपत के मुख्यालय के निकट हिंगला देवी के मन्दिर के निकट हैं। कुमाऊं के चम्पावत क्षेत्र में पूजी जाने वाली लोक देवी हैं।
- तिलका देवी: इनका मंदिर टिहरी जनपत के जौनपुर क्षेत्र मे सिलवाड़ पट्टी के बड़ासारी गांव मे हैं। इसके ऊपर नागटिब्बा मे नाग देवता का मन्दिर है।
- तुरगबलि: यह जौनपुर क्षेत्र का एक लोक देवता हैं। इनका मंदिर दसजुला के डांगू गांव मे हैं। इन्हे हनुमान का रूप माना जाता हैं।
- थात्याल: यह थाली अथवा पैतक भूमि का देवता माना जाता हैं। इन्हे पिथौरागढ़ जनपद के जोहार क्षेत्र मे सायना तथा पांगती गर्खा उपजातियों द्वारा पूजा जाता हैं।
- दक्षिण काली: गढ़वाल क्षेत्र मे देवी की पूजा लोक देवता के रूप में दक्षिण काली के नाम से भी की जाती हैं। इस देवी का मन्दिर चमोली जनपत के दशौली क्षेत्र मे दशौल गड़ी और जोलमंगरी के पास में हैं।
- धूरा देवी: इस देवी को दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों मे उन रास्तों पर पूजा जाता है, जहा से कभी भोटिया लोग व्यापार के लिऐ तिब्बत जाते थे। चमोली और पिथौरागढ़ जनपद मे ऐसे रास्तों पर पत्थर के ढेल पर ध्वजा लगाकर इस देवी को पूजा जाता हैं। धूरा का अर्थ दर्रा होता हैं।
- नकुलेश्वर: पिथौरागढ़ क्षेत्र के लोक देवता हैं। ये इनका मंदिर पिथौरागढ़ के दक्षिण -पश्चिम में थल केदार नामक पहाड़ी पर है।
- नगेला: यह नाग देवता का ही एक रूप है। जो गढवाल मे पूजे जाने वाले लोक देवता हैं। इन्हे नागेंद्र भी कहते हैं।
- नाग/ नागर्जा: ये गढ़वाल क्षेत्र मे सर्वाधिक पूजित लोक देवता हैं। इस क्षेत्र मे इसे कृष्ण का रूप माना जाता है। और नचाया जाते हैं। इनका मुख्य स्थान टिहरी जनपत के सेम मुखेम में हैं। चमोली जनपत के नागनाथ में पुष्कर नाग, रुद्रप्रयाग के पिल्लू मे कर्माजीत नाग, रेड़ी मे रणजीत नाग और कांदी मे कोलाजीत नाग की भी पूजा की जाती हैं।
- नरसिंह/ नारसिंग: उत्तराखंड के लोक देवता सम्पूर्ण उत्तराखंड मे पूजे जाते है। इन्हे किसी मंदिर में नही बल्कि घर में आला बनाकर स्थापित किया जाता हैं। कुछ लोग इन्हे पौराणिक नरसिंह से जोड़ते हैं। लेकिन वास्तव मे यह एक सिद्ध पुरुष थे। जिन्होंने गुरु गोरखनाथ से दीक्षा प्राप्त की थी। नरसिंह के नौ रूप माने जाते है। इन्हे पूजा और नचाया जाता हैं। इनकी पौराणिक मूर्ति जोशीमठ में हैं। यह चिमटा और टिमरू का डंडा रखते थे।
- निरंकार: उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र मे शिव की पूजा लोक देवता निरंकार के रूप में की जाती है। इन्हे नागपंथ का देवता भी माना जाता हैं। यह सभी कष्टों को हरने वाले देवता माने जाते हैं।
- पांडव या पंडो: पांच भाई पांडवो को उत्तराखंड मे लोक देवता के रूप मे पूजा और नचाया जाता हैं। कई गावों में इनकी पूजा सामूहिक रूप से की जाती हैं। पांडवो के साथ कुन्ती, द्रोपदी, अभिमन्यु, नगाजुन, बर्बरीक और हनुमान भी नाचते हैं।
- पोखू: यह रवाई -जौनपुर तथा जौनसार -बाबर का बहुमान्य लोक देवता हैं इनका मन्दिर भी स्थापित हैं। इन्हे तामसिक प्रवृति का देवता माना जाता हैं। पोखू देवता के बारे में विस्तार से जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें
- फैला: यह चमोली जनपत में मार्छा जनजाति के लोगो का देवता हैं। इन्हे तिब्बत से आऐ हुऐ शिव का गण माना जाता हैं। इनका मूल स्थान गमसाली गांव मे है।
- भद्राज देवता: ये गढ़वाल क्षेत्र का कृषिकीय देवता हैं हैं। इन्हे श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का रूप माना जाता हैं। इनका मंदिर मसूरी की हैं। खेत -पहाड़ी में है। भद्राज मंदिर के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- भासर: इनका देवस्थल टिहरी जनपत के कडाकोट पट्टी के कफना गांव मे हैं। इनका प्रतीक लोहे का त्रिशूल या कटार होता हैं।
- भूतेर: इन्हे रुद्रप्रयाग जनपत के तल्ला नागपुर पट्टी मे क्षेत्रपाल के रूप मे पूजा जाता हैं। इन्हे शंकर और पार्वती माता का एक विशिष्ट गण माना जाता हैं।
- भैरव: वैसे तो भैरव एक पौराणिक देवता हैं। लेकिन उत्तराखंड मे इसकी स्थति एक लोक देवता की हैं। इन्हे भूत – प्रेत और बेतालो का अधिपति माना जाता हैं।
- मल्लिकाजुर्न: इन्हे भगवान शिव का ही रूप माना जाता है। इनका पूजास्थल पिथौरागढ़ जनपद के डीडीहाट क्षेत्र मे एक ऊंची पहाडी पर है।
- मणिकनाथ– यह टिहरी जनपत में भिलंगना के दर्जनों गांवों का क्षेत्र रक्षक देवता हैं। इनका मंदिर फैगुल पट्टी मे एक पहाड़ी पर है।
- महासू: यह जोनसार -बाबर और रवाई जनजाति क्षेत्रो का सर्वोच्च देवता हैं। इनकी उत्पत्ति को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं। महासू चार भाई माने गए हैं। बासक, पिबासक, बोठा और चालदा। महासू का मुख्य देवस्थल देहरादून जनपत के हनोल नामक स्थान में हैं।
- मेलिया: यह पिथौरागढ़ जनपद के महर पट्टी के अनेक गावों के लोक देवता हैं। इनका प्रभाव क्षेत्र इन्हीं गावों तक सीमित है।
- देवलाडी: जौनसार -बाबर जनजाति क्षेत्रो मे पूजित यह देवी चार महासुओ की माता मानी जाती हैं। इनका पूजास्थल देहरादून जनपत के मैन्दथ नामक स्थान पर हैं। जो हनोल से कुछ ही दूरी पर हैं।
- मैदानू-सैदानू: इन लोक देवता का स्थान उत्तरकाशी जनपद में हैं। यह बिनसर देवता का सहयोगी माना जाता हैं। ये टिहरी की बड़ियारगड़ पट्टी के कठेत राजपूतो के कुल देवता हैं।
- मैमन्दापीर: गड़वाल क्षेत्र मे यह नरसिंह की तरह पूजा जाने वाला लोक देवता हैं। माना जाता हैं कि यह नाथ संप्रदाय का एक सिद्ध संत थे, जो अपने समकक्षो नरसिंह आदि की तरह ही लोक कल्याण के कार्यों से लोक देवता बन गए।
- मोस्टमानु – पिथौरागढ़ जिले में शक्तिशाली देव के रूप में पूजे जाते हैं मोस्टमानु देवता।
- रंकोची देवी – इन्हे चंडी देवी के रूप में भी पूजा जाता है। इनका मंदिर टनकपुर चम्पवात मार्ग पर स्थित है।
- रक्षा देवी :- ये कुमाऊं क्षेत्र की देवी हैं। इनका मंदिर ब्यानधूरा और देवीधुरा के बीच है।
- राजराजेश्वरी नंदा देवी – राजाजेश्वरी नंदा देवी को उत्तराखंड की कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। नंदा देवी की पूजा कुमाऊं और गढ़वाल में सामान रूप से होती है।
- लाटू देवता – उत्तराखंड के चमोली जिले में लाटू देवता का रहस्य्मयी मंदिर है। इन्हे माँ नंदा के धर्मभाई के रूप में पूजा जाता है। लाटू देवता के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
- समासणी – यह टिहरी के चमेल गावं के आस पास की लोक देवी मानी जाती है। माना जाता है कि इस स्थान पर च्वन ऋषि ने तपस्या की थी।
- हरु सैम – यह कुमाऊं के लोक देवता हैं। ये दो भाई माने जाते हैं। ये शांत और सुख समृद्धि के देवता माने जाते हैं। हरु सैम देवता की जन्मकथा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- गंगनाथ देवता – ये देवता अल्मोड़ा के आस पास के लोक देवता माने जाते हैं। लोक कथाओं के अनुसार, ये नेपाल के राजकुमार थे। अल्मोड़ा जोशिखोला की कन्या भाना के प्रेम में वशीभूत होकर अल्मोड़ा आ गए। और वही इनको और भानमती को मार दिया गया।
उपरोक्त देवी देवताओ के अलावा भी अनेको ,उत्तराखंड के लोक देवी देवता के रूप में पूजे जाते हैं। जिसमे से प्रमुख- हिंगला देवी, सिद्धनाथ ,हुष्कर देवता ,सूर्यदेवी ,वृषसेन ,लाटेश्वर ,हरियाली देवी ,चमु देवता ,बधाण देवता आदि प्रमुख हैं। हालांकि उत्तराखंड को देवभूमि कहा गया है। यहाँ कण कण में देवताओं का वास होता है। हमने अपनी इस पोस्ट में कुछ प्रमुख उत्तराखंड के देवी देवताओं के नाम संकलित किये हैं।
निष्कर्ष
उत्तराखंड के लोक देवताओं का स्थान न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन देवताओं की पूजा पद्धतियाँ सरल और आस्था से भरी होती हैं, जो इस प्रदेश के लोगों के दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं। इन लोक देवताओं के प्रभाव के कारण यह प्रदेश “देवभूमि” के रूप में प्रसिद्ध है।
समय के साथ, भले ही आधुनिकता और शिक्षा ने इन देवताओं के प्रति आस्था में कमी की हो, फिर भी जब कोई बड़ा संकट सामने आता है, तो उत्तराखंड के लोग इन लोक देवताओं की शरण में जाते हैं। यह दर्शाता है कि उत्तराखंड की देवभावना और लोक देवता की पूजा आज भी समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए है।
संदर्भ : उत्तराखंड के लोक देवता पुस्तक ( प्रो dd Sharma ji )
इन्हे पढ़े :-
गंगनाथ देवता की कहानी | कुमाऊं के लोकप्रिय देवता की लोक कथा
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