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मासी सोमनाथ का मेला उत्तराखंड का ऐतिहासिक मेला।

Somnath mela masi Almora

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मासी सोमनाथ का मेला उत्तराखंड का ऐतिहासिक मेला।

मासी सोमनाथ का मेला उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चखुटिया नामक कस्बे से लगभग 12 किलोमीटर दूर, मासी नामक गावं में रामगंगा नदी के पार सोमेश्वर महादेव के मंदिर के सामने वाले तट पर आयोजित होता है। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध मेला है। यह मेला उत्तराखंड के प्रमुख व्यवसायिक मेलों में गिना जाता है। पहले यहाँ काशीपुर के चैती मेले के सामान पशुओं का व्यापार होता था। लेकिन वर्तमान में जीवन शैली में बदलाव के बाद यहाँ अन्य व्यवसायिक चीजों का व्यापार होता है। इसकी शुरुवात बैसाख के अंतिम रविवार से होती है। यह मेला पहले 8 से 10 दिन का होता था। वर्तमान में यह मेला एक हफ्ते के आसपास का होता है।

मासी सोमनाथ का मेले का इतिहास –

प्राचीन काल में कन्नौज से दो परिवार उत्तराखंड के तल्ला गेवाड़  क्षेत्र में आकर बस गए। जिसमे से एक था कनोडिया परिवार और दूसरा था कुलाल परिवार। कनोडिया रामगंगा के दाहिने ओर और कुलाल बाएं ओर बस गए।  कुलाल और कनोडिया राजपूतों के साथ इस क्षेत्र में और लोग भी बस गए थे। लेकिन क्षेत्र में कनोडिया और कुलाल राजपूतों का दबदबा था। बताते है सोमनाथ मंदिर का निर्माण कनोडिया राजपूतों ने करवाया था। और प्रतिवर्ष बुद्धपूर्णिमा को मासी सोमनाथ मंदिर में मेला लगने लगा। शुरू में दोनों राजपूत जातियों में बड़ी मित्रता थी ,लेकिन बाद में किन्ही कारण वश इनमे दुश्मनी हो गई।

कुलाल राजपूतों और कनोडिया राजपूतों में संघर्ष बढ़ता गया। जिसके फलस्वरूप कनोडिया राजपूतों ने संगठित होकर कुलाल राजपूतों के मुखिया की हत्या कर दी और उन्हें क्षेत्र छोड़ने पर विवश कर दिया। इसी दौरान एक कन्नोजिया ब्राह्मण जिनका नाम रामदास था ,बद्रीनाथ की यात्रा से आते समय मासी में बस गए वही शादी करके गृहस्थी जमा ली। आज उनके वंशज मासीवाल कहलाते हैं। उस समय रामदास की कुलाल राजपूतों से मित्रता थी , कुलाल राजपूतों ने मासी का त्याग करते समय अपनी सारी संपत्ति रामदास को दे दी। और कुलाल राजपूत मासी छोड़कर सल्ट  बस गए। लेकिन मन से सोमनाथ मेले की टीस सदा बनी रही। अंग्रेजो के राज में कुलाल वंशियों और मासीवाल के लोगो ने अपने अपने क्षेत्र में थोकदारी प्राप्त कर ली।

एक वर्ष सोमनाथ मेले के अवसर पर कुलाल वंश के एक उत्साही युवक ने अपनी माँ से मेले में जाने की हट की।  लेकिन माँ ने पुराने इतिहास का हवाला देकर मना कर दिया। कहा अगर उन्हें तुम्हारे बारे में पता चल जायेगा तो मार देंगे। लेकिन पुत्र की अधिक हट पर उसे जाने दिया और बताया कि वहां हमारे सहयोगी मासीवाल रहते हैं तुम उनकी मदद लेना। उस नवयुवक का नाम था सोबन सिंह और उसकी उम्र थी मात्र 20 वर्ष। उसने वाद्य बजाकर मनोरंजन करने वाले और मासीवाल के लोगो की मदद से कनोडिया जाती के श्रेष्ठ पुरुष मालदेव कनोडिया को मौत के घाट उतार दिया। और सोबन सिंह सकुशल सल्ट आया। वापस लौट कर उसने मासीवाल के लोगो का धन्यवाद किया और वादा किया कि अगले साल से मेले के पहले दिन ढोल नगाड़ों के साथ मासी पहुंचेगा और मासीवालों का साथ देगा। अपने वादे के अनुसार वो अगले साल वो ढोल नगाड़ो और पताकाओं और मेलार्थियों के साथ पहले दिन सोमनाथ मेले में पहुंच गया। तबसे पहले दिन का मेला सल्टिया मेला कहा जाता है।

मासी सोमनाथ का मेला उत्तराखंड का ऐतिहासिक मेला।
फ़ोटो साभार – सोशल मीडिया

खास है सोमनाथ मेले के ओड़ा  भेट्ने की परम्परा –

सोमनाथ मेले में रामगंगा में पत्थर फेंक कर पानी उछाल कर ओड़ा भेट्ने की परम्परा है। इसमें दोनों धड़े कनोडिया और मासीवाल भाग लेते हैं। इस कार्यक्रम में रामगंगा में पत्थर फेंक कर ओड़ा भेट्ने की रस्म को पूरा किया जाता है। पहले एक साथ ओड़ा भेट्ने की रस्म होने के कारण ,खून खराबा होने का अंदेशा बना रहता था। अंग्रेजो ने इसके लिए यह व्यवस्था बनाई कि एक साल कनोडिया ओड़ा भेटेगा और दूसरे साल मासीवाल भेटँगे। तब से सोमनाथ मेले में यह परम्परा चली आ रही है।

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राज्य के प्रमुख व्यवसायिक मेलों में से एक है यह मेला –

मासी का सोमनाथ मेला अपने व्यवसायिक क्रिया क्लापों के लिए अधिक प्रसिद्ध है। पहले यहाँ चैती मेले की तरह पशुओं का व्यपार होता था। आजकल आधुनिक चीजों का व्यपार होता है। यहाँ डांग के जूतों का व्यवसाय काफी प्रसिद्ध था।

संदर्भ – नंदन सिंह बिष्ट जी किताब, ‘ गीलो गेवाड़” व प्रो DD शर्मा की पुस्तक उत्तराखंड ज्ञान कोष।

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