Home संस्कृति खान-पान उमी – गेहू की हरी बालियों का स्वादिष्ट पहाड़ी स्नेक्स

उमी – गेहू की हरी बालियों का स्वादिष्ट पहाड़ी स्नेक्स

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अप्रैल मई के माह में पहाड़ों में रवि की फसल तैयार होती है। रवि की फसल में मुख्य खाद्यान गेहू होता है। पहाड़ों में गेहू की फसल के काम के दौरान अधकच्चे गेहूं से एक विशेष स्नेक्स बनाते हैं, जिसे पहाड़ी भाषा उमी कहते हैं। पहाड़ो में गेहूं की फसल तैयार हो जाने पर फसल की कटाई के समय उसकी हरी बालियों को आग में भून कर और ठंडा करके भुने हुए दानों को उमी कहा जाता है। ये दाने चबाये जाने पर विशेष स्वादिष्ट लगते हैं। बाद में इसके खाजा या चबेने के रूप प्रयोग किया जाता है।

उमी - गेहू की हरी बालियों का स्वादिष्ट पहाड़ी स्नेक्स

इसके बारे में प्राचीन साहित्य में बताया गया है कि ,वसंतोत्सव के अवसर पर लोग ,गेहूं ,जौं आदि रवि फसल के खाद्यानो और चना मटर की बालियों और फलियों को भूनकर खाते थे। जिन्हे उमा ,उमी ,होलक या होला कहते थे। पहले नगरीय क्षेत्र के लोग गेहूं या अन्य खाद्यान को आग में भूनकर बनाये गए इस स्वादिष्ट व्यंजन का स्वाद लेने के लिए धूमधाम के साथ नगरों से गावों में जाया करते थे। पहाड़ों में गेहूं की  ऊमि (umi) चनों के “होले” बनाने की परम्परा अभी भी जीवित है। हिमालय के भोटान्तिक जनजातीय क्षेत्रों में छूमा और नपल  धान्यो को भूनकर उसमे गुड़ मिलकर लड्डू बनाये जाते हैं। और उन्हें यात्रा भोजन के रूप में ले जाया जाता है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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