Home कुछ खास श्रीदेव सुमन की कहानी एक कविता के रूप में ।

श्रीदेव सुमन की कहानी एक कविता के रूप में ।

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श्रीदेव सुमन पर एक कविता ,लेखक – प्रदीप बिजलवान विलोचन।

श्रीदेव सुमन मात्र 29 वर्ष की छोटी सी उम्र में अपने राज्य, अपने पहाड़ी समाज अपने टिहरी गढ़वाल और अपने उत्तराखंड के लिए ऐसा कार्य कर गए , जिससे उनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में सदा सदा के लिए अमर हो गया। श्री देव सुमन जी ने राजशाही के अत्याचारों के खिलाफ अंदोलन करके शहीद हो गए थे।

25 जुलाई को श्रीदेव सुमन जी की पुण्यतिथि है। इसे उनके शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्री देव सुमन की कहानी को काव्यात्मक लहजे में टिहरी गढ़वाल के प्रदीप बिजल्वाण विलोचन ने अपने शब्दों में सजाया है। यदि आपको श्रीदेव सुमन पर लिखी ये कविता अच्छी लगे तो शेयर अवश्य करें।

काव्यात्मक लहजे में श्रीदेव सुमन जी कहानी –

इस गढ़भूमि का लाल था वो ।
सन उन्नीस और मई पच्चीस के जन्मकाल का था वो। पट्टी बमुंड और गांव जौल में ।
जहां खेलता था वो दोस्तों के संग लेकर तीर और, धनुष खेल ही खेल में ।

तात जिनके हरिराम बडोनी एक सुप्रसिद्ध वैद्य थे ।
और माता तारा देवी में धीरता और साहस के गुण
अभेद्य थे ।

सन 1919 में पिता सुमन के माहमारी हैजा से स्वर्ग को सिधार गए ।
और तब माता तारादेवी पर गृहस्थ का सारा भार ला गए ।

शिक्षा प्रारंभिक श्रीदेव ने नई टिहरी में ही प्राप्त किए।
और उच्च शिक्षा की खातिर देहरादून चले गए ।

जहां उनके मन में क्रांतिकारी विचारधारा उमड़ने लगी
जिसकी आग से अंग्रेजी हुकूमत भी झुलसने लगी ।

हिमांचल और प्रभाकर जैसी पत्रिकाओं को जिन्होंने प्रकाशित किया ।
उनके ऐसे ही कदमों के कारण अंग्रेजों ने उनका जेल की ओर गमन कर दिया ।

बाद उसके टिहरी राजशाही के प्रजा पर उनके अत्यचारों के कारण उन्होंने आवाज उठाई ।
राजा को उनकी यह बात रास न आई लेकिन उनकी धीरता और वीरता पर फिर भी कोई आंच न आई ।

पैरों में कई वजनी बेड़ियों से उन्हें जकड़ दिया जाता था ।
और कभी उस ठिठुरती सी ठंड में उनको पानी से भरी कंबलों में लिपटाया जाता था ।

सन 1944 में दिन 84 के बाद करके आमरण अनशन उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया ।
और फिर वह लाल अनंत उस आकाश का जैसे एक टिमटिमाता सा तारा बन गया ।

श्रीदेव सुमन की कहानी एक कविता के रूप में ।

इन्हे पढ़े _

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गाती धोती गढ़वाल की मातृशक्ति को एक नई पहचान देती है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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