उत्तराखंड की संस्कृति लोक पर्वों और परंपराओं से भरी हुई है। इन्हीं पर्वों में सातों आठों (Satu Aathu Festival) का विशेष महत्व है। यह पर्व भाद्रपद मास की सप्तमी और अष्टमी को मनाया जाता है। इस त्योहार की खास बात यह है कि इसमें भगवान शिव को भिनज्यू (जीजाजी) और माता पार्वती को दीदी के रूप में पूजा जाता है। यह पर्व मुख्यतः कुमाऊं के पिथौरागढ़ और कुमाऊं के सीमांत क्षेत्रों में मनाया जाता हैं।
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सातों आठों पर्व की विशेषता
सातों आठों का अर्थ है – सप्तमी (सातू) और अष्टमी (आठू)। मान्यता है कि जब माता पार्वती (दीदी गवरा) भगवान् शिव यानि महेशर से नाराज होकर अपने मायके आ जाती हैं और महादेव (भिनज्यू महेश्वर) उन्हें मनाने ससुराल आते हैं, तो उनकी विदाई और स्वागत की परंपरा इस पर्व में निभाई जाती है। इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि परमपिता परमेश्वर को अपने परिवार अपने निजिजीवन में शामिल करके उनके साथ खुशिया मानाने और उनका आशीष लेने का त्यौहार है ,सातों आठों पर्व
कुमाऊं क्षेत्र में इसे सांतू आंठू नेपाल में गौरा महेश्वर पर्व और कई जगह गमरा पर्व भी कहा जाता है।
भाद्रपद की पंचमी – बिरुड़ पंचमी
इस पर्व की शुरुआत बिरुड़ पंचमी से होती है। इस दिन तांबे के बर्तन में पंच चिन्ह बनाकर उसमें गेहूं, चना, सोयाबीन, उड़द, गहत, मटर आदि अनाज भिगोए जाते हैं।
- सप्तमी (सातू) के दिन इन्हें जल स्रोत पर धोया जाता है।
- अष्टमी (आठू) के दिन भगवान गौरी-शंकर को चढ़ाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
सातों के दिन – गमरा दीदी का श्रृंगार –
सप्तमी के दिन महिलाएं गांव के प्राकृतिक जल स्रोत पर जाकर बिरुड़ धोती हैं। बिरुड़ वापस लाकर गमरा दीदी (माँ पार्वती) का श्रृंगार किया जाता है। महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और धान के खेतों से पौधे लाकर गमरा दीदी की प्रतिमा सजाती हैं। अखंड सौभाग्य की कामना से सुहागिन महिलाएं पीली डोर धारण करती हैं। मान्यता है कि इस दिन गमरा दीदी महेशर से नाराज होकर आ जाती है।
आठों के दिन – भिनज्यू महेश्वर का आगमन
अष्टमी को महिलाएं सौं और धान के पौधों से भिनज्यू महेश्वर (भगवान शिव) की प्रतिमा बनाती हैं।
- मान्यता है कि इस दिन महादेव माता पार्वती को मनाने मायके आते हैं।
- पूजा के बाद सातों-आठों की कथा सुनाई जाती है।
- बिरुड़ चढ़ाकर लोग आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
बिरुड़ अष्टमी की कथा – सातों आठों की कथा
एक गावँ में बुजुर्ग दम्पति के सात पुत्र और सात बहुएं थी। किन्तु किसी को भी संतान प्राप्ति नही थी। इस कारण बुजुर्ग दंपत्ति बहुत दुखी थे। एक बार वह आदमी कहीं जा रहा था, उसे रास्ते मे सोलह श्रंगार की हुई औरतें बिरुड़ धोते हुए दिखी तो उसने जिज्ञासावश पूछ लिया कि आप क्या कर रही हो ? तो उन महिलाओं ने कहा कि वे गौरा महेश (गमरा दीदी और भिनज्यू महेश्वर) के लिए बिरुड़ धो रही हैं। उस आदमी ने कहा कि इससे क्या होता है ? तब महिलाओं ने सातो आठो पर्व के बारे में विस्तार से उनको समझा दिया।
सारी जानकारी लेकर वह मनुष्य उत्साहित होकर बोला , “मैं भी सातो आठो ,बिरुड़ अष्टमी का अनुष्ठान करूँगा अपने परिवार में।” घर जाकर उसने अपनी पत्नी को बताया। पत्नी ने अपनी सबसे लाड़ली बहु को बुलाया उसे बिरुड़ का विधान करने को कहा। उस बहु ने बिरुड़ भीगाते समय चख लिए तब सास ने कहा की तुमने इस को चख कर इसका विधान खंडित कर दिया है। फिर उसने दूसरी बहु को बुलाया उसने भी यही गलती की। ऐसा करते करते उसने सभी 6 बहुओं को बुलाया सभी ने कोई न कोई गलती करके विधान खंडित कर दिया।
अंत में उसने अपनी सातवीं बहु को बुलाया , इस बहु को वह बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी। वो लोग उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे इसलिए अंत में उसको बोला कि तुम बिरुड़ भिगाओ। बहु ने नहाया धोया और पूरे विधि विधान से बिरुड़ भीगा दिए। कुछ समय बाद वो गर्भवती हो गई। अगला सातों आठों आने से पहले उसका पुत्र भी हो गया। इधर घर में संतान तो आ गई लेकिन जो बहु नापसंद थी उसकी संतान हुई।
अब सास को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। इधर सास ने अपने पति को बोला नए बालक के बारे में पंडित जी से पूछ कर आओ। उधर सास पति से पहले जाकर पंडित को पैसे देकर अपने पक्ष में कर लिया उसको बोला की तुम बच्चे के बारे में नकारात्मक बोलना पंडित मान गया।
कुछ दिन बाद फिर सातो आठो (Satu Aathu festival 2025 Uttarakhand) आने वाली थी, तब सास ने अपनी आखिरी बहु से कहा मुझे पता चला है की तुम्हारे पिता की मृत्यु हो गई है। तुझे वहां जाना चाहिए बच्चे को मैं देख लुंगी। बेटी रोते-बिलखते अपने मायके गई। जिस दिन मायके गई उस दिन आठो था और उसके मायके में बढ़िया पूजा चल रही थी। उसकी माँ ने अपनी बेटी को मायके में देखा तो पूछा, “आज तो त्यौहार है तुझे ससुराल में होना चाहिए तू यहाँ क्या कर रही है ? और तेरा बेटा कहाँ है ?” बेटी ने सारा वृतांत अपनी माँ को बता दिया। तब माँ ने कहा पुत्री मुझे तेरा पुत्र खतरे में है।
उधर पंडित ससुर को बालक के बारे में गलत सलत बताता है। बोलता है यह बालक अपशकुनी है। जब पति निराश घर लौटा तो सास इसी मौके का फायदा उठा कर पति को भड़का देती है, और बच्चे को मारने की बात करती है। दोनों मिलकर बच्चे को पास के नौले में डुबाकर आ जाते हैं।
उधर बहु रास्ते भर सरसों फेकते आती है और वो हरी भी हो जाती है। जब वो नौले के पास पहुँचती है तो, वहां उसकी छाती भर आती है, और वह नौले में अपनी दूध से सनी छाती को धोने उतरती है तो बच्चा उसके गले में पड़ी सातो आठो की डोर को पकड़ लेता है। वह अपने बच्चे को लेकर ससुराल पहुँचती है।
तब उसकी सास कहती है, “मैंने तो इसे मरने के लिए छोड़ दिया था तुझे यह जिन्दा कैसे मिला ?” तब बहु ने कहा कि मुझे मेरे अच्छे कर्मो का फल मिला है। मैंने लोगो की भलाई की इसलिए मुझे अच्छा फल मिला। तब सास को अपनी गलती का अहसास होता है। वो अपने किये पर माफ़ी मांगती है।
इस कथा की समाप्ति के बाद बिरुड़ को पकाकर उनका प्रसाद बनाया जाता है। गौरी महेश (गमरा महेश्वर) को चढ़ाने के बाद लोग एक-दूसरे को चढ़ाते व् बाँटते हैं।
सातों आठों में लोकगीत और नृत्य
इस पर्व पर गांवों में तीन-चार दिन तक लोकगीत और लोकनृत्य होते हैं। झोड़ा, चांचरी और अन्य पारंपरिक नृत्यों की धूम रहती है। खेल और ठुल खेल आदि प्रमुख लोक नृत्य हैं। पूरा गांव मिलकर सुख-समृद्धि की कामना करता है।
फौल फटकना की रस्म –
सातो आठो के अवसर पर ‘फौल फटकना ’ की परंपरा भी निभाई जाती है।
- कपड़े में बिरुड़ और फल रखकर ऊपर उछाला जाता है।
- महिलाएं और कन्याएं आंचल फैलाकर इसे समेटती हैं।
- मान्यता है कि जिसके आंचल में यह प्रसाद अटकता है, उसे सौभाग्य और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
गमरा महेश्वर की विदाई –
दो दिन की पूजा और आनंदोत्सव के बाद गमरा दीदी और भिनज्यू महेश्वर की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।
- इसे सिवाना या सिला देना कहते हैं।
- पिथौरागढ़ क्षेत्र में इसके बाद हिलजात्रा पर्व भी आयोजित होता है।
सातों आठों पर्व का महत्व
1. यह पर्व मानवीय रिश्तों में देवत्व को देखने की प्रेरणा देता है।
2. पौष्टिक अनाज बिरुड़ खाने से स्वास्थ्य और कृषि समृद्धि का संदेश मिलता है।
3. लोकगीत, नृत्य और मेल-जोल से गांवों में भाईचारा और उत्सव का वातावरण बनता है।
सातों आठों की शुभकामनाएं | Satu Aathu Wishes
- भगवान शिव और माता पार्वती का यह पर्व आपके जीवन में सुख-समृद्धि लाए। सातों आठों की हार्दिक शुभकामनाएं।
- दीदी गवरा और भिनज्यू महेश्वर का आशीर्वाद आपके परिवार को सदैव मंगलकारी बनाए। सातू आठू पर्व की शुभकामनाएं।
निष्कर्ष –
उत्तराखंड के पर्व प्रकृति, रिश्तों और लोकजीवन से गहराई से जुड़े हुए हैं। सातों आठों पर्व (Satu Aathu Festival) भक्ति, आस्था और पारिवारिक रिश्तों का अद्भुत संगम है। यह त्योहार केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं, बल्कि लोकगीत, नृत्य और सामूहिक आनंद का पर्व है।
इस सातों आठों पर्व पर आप भी अपने परिवार और मित्रों को शुभकामनाएं दें और इस परंपरा को आगे बढ़ाएं।
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