Home संस्कृति रम्माण उत्सव, यूनेस्को द्वारा विश्व सांस्कृतिक धरोहर घोषित उत्तराखंड का उत्सव

रम्माण उत्सव, यूनेस्को द्वारा विश्व सांस्कृतिक धरोहर घोषित उत्तराखंड का उत्सव

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रम्माण उत्सव-

रम्माण उत्सव उत्तराखंड के चमोली जनपद के विकासखंड जोशीमठ में पैनखंडा पट्टी के सलूड़ ,डुंग्रा तथा सेलंग आदि गावों में प्रतिवर्ष अप्रैल (बैशाख ) के महीने में आयोजित किया जाता है। रम्माण सलूड़ की 500 वर्ष पुरानी परम्परा है। कहते हैं जब मध्यकाल में सनातन धर्म का प्रभाव काम हो रहा था। तब आदिगुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म में नई जान फुकने के लिए पुरे देश में चार मठो की स्थापना की। मंदिरों की स्थापना की ,तीर्थों की स्थापना की। जोशीमठ के आस पास ,शंकराचार्य जी के आदेश पर उनके कुछ शिष्यों ने , हिन्दू जागरण हेतु  गांव गांव में जाकर ,पौराणिक मुखौटो से नृत्य करके लोगो में जान चेतना जगाने का प्रयास किया। जो धीरे -धीरे इन क्षेत्रों में इस समाज का अभिन्न अंग बन गया।  रामायण से जुड़े प्रसंगो के कारण इसे रम्माण उत्सव कहते हैं। राम से जुड़े प्रसंगो के कारण इसे लोक शैली में प्रस्तुतिकरण ,लोकनाट्य ,स्वाँग ,देवयात्रा ,परमपरागत पूजा अनुष्ठान ,भुम्याल देवता की वार्षिक पूजा ,गावं के देवताओं की वार्षिक भेट आदि आयोजन इस उत्सव में होते हैं। इसमें विभिन्न चरित्र और उनके लकड़ी के मुखोटों को पत्तर कहते हैं। पत्तर शहतूत (केमू ) की लकड़ी पर कलात्मक तरीके से उत्कीर्ण किये होते हैं। रम्माण उत्सव कभी 11 दिनों तक या कभी 13 दिनों तक मनाया जाता है।

रम्माण उत्सव
फोटो साभार -रम्माण मेला सल्यूड पेज

रम्माण में राम ,लक्षमण ,सीता और हनुमान के पात्रों द्वारा लोकनृत्य शैली में रामकथा के चुनिंदा प्रसंगो का प्रस्तुतिकरण ढोल के तालों के साथ किया जाता है। कुछ समय तक लगातार प्रस्तुति देने के बाद जब रामायण के किरदार ,थोड़ा आराम करते है , उस दौरान अन्य ऐतिहासिक व पौराणिक या लोक पात्र आकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। इन पत्तरों में मौर -मौरयाण (पशुपालक और उसकी पत्नी ),बण्या -बनयारण (बनिया और उसकी पत्नी ) कुरु जोगी (मसखरा ) और नरसिंह प्रहलाद पातर मुख्य हैं। रम्माण में मुखौटा नृत्यशैली का प्रयोग किया जाता है। इसमें पात्रों के बीच कोई संवाद नहीं होता। इसमें मुखोटों ,ढोल दमाऊ और भोंकोरों और मजीरों आदि से रम्माण नृत्य का आयोजन होता है। इसमें दो प्रकार के मुखौटों का प्रयोग होता है। पहले वाले को बोलते है ,द्यो पतर अर्थात देवताओं के मुखोटे। दूसरे होते हैं ,ख्यलारी पतर अर्थात मनोरंजन वाले मुखौटे।

रम्माण मेला सल्यूड पेज साभार

 रम्माण यूनेस्को द्वार विश्व सांस्कृतिक धरोहर घोषित उत्सव –

.वर्ष 2008 में इंदिरा गाँधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स ने दिल्ली में “रामायण अंकन मंचन और वाचन ‘ विषय पर एक सम्मलेन आयोजित किया। इसमें रम्माण को भी शामिल होने का अवसर मिला और इसकी प्रस्तुति की काफी सराहना की गई। इसके बाद इंदिरा गाँधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स ने सलूड़ गावं जाकर सम्पूर्ण रम्माण उत्सव का अभिलेखीकरण किया और सभी आवशयक दस्तावेजों के साथ ,विश्व धरोहर घोषित करने का प्रस्ताव  यूनेस्को को भेजा गया। 02 अक्टूबर 2009 को यूनेस्को ने अबुधाबी में हुई एक बैठक में इस उत्सव को विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया। इस सफलता का श्रेय गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर ‘दाताराम पुरोहित ‘ प्रसिद्ध फोटोग्राफर ‘अरविन्द मृदुल ‘ रम्माण लोक गायक ‘थान सिंह नेगी’ तथा डॉ कुशल सिंह भंडारी जी को जाता है।

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