भगवद् गीता के दशम स्कंध के नवें अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं—
“पत्रं पुष्पं फलं तोय यो मे भक्त्या प्रयच्छति, तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।”
अर्थात, यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा और शुद्ध चित्त से मुझे पत्ता, पुष्प, फल या जल अर्पित करता है, तो मैं उसे स्वीकार ही नहीं करता—उसका भोग भी लगाता हूं। यही भाव शिव महापुराण में भी प्रतिध्वनित होता है, जहां भगवान शिव को धतूरा, हरसिंगार, नागकेसर के श्वेत पुष्प, सूखे कमल गट्टे, कनेर, आक, कुश आदि अतिप्रिय बताए गए हैं। संदेश साफ है—ईश्वर धन, ऐश्वर्य या छप्पन भोग के नहीं, भाव के भूखे हैं।
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देहरादून में मसूरी रोड पर स्थित प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर इसी भाव का साकार प्रतिबिंब है—एक ऐसा शिवालय, जहां कोई दान स्वीकार नहीं किया जाता। न चढ़ावा, न गुप्त दान। बस श्रद्धा।
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हरियाली के बीच, सड़क किनारे स्थित एक अनूठा शिवालय
देहरादून के घंटाघर से करीब 12 किलोमीटर दूर, कुठाल गेट के पास हरी-भरी पहाड़ियों के बीच सड़क किनारे स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। अपनी सादगी और नियमों के कारण यह देहरादून के सबसे विशिष्ट धार्मिक स्थलों में गिना जाता है। यहां दर्शन सभी कर सकते हैं, पर मंदिर परिसर में फोटोग्राफी वर्जित है।
मंदिर के मुख्य द्वार पर लगा एक शिलापट—जिस पर निर्देश स्पष्ट अंकित हैं— कि यहां किसी भी प्रकार का चढ़ावा स्वीकार्य नहीं। यह अनुशासन ही इसकी पहचान है।
स्फटिक शिवलिंग: मंदिर का दुर्लभ आकर्षण-
प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर का मुख्य आकर्षण है यहां स्थापित दुर्लभ स्फटिक शिवलिंग। स्फटिक को ‘बर्फ का पत्थर’ भी कहा जाता है—लाखों वर्षों तक हिम परतों में दबे रहने से बना यह पत्थर पारदर्शी, कठोर और अत्यंत पवित्र माना जाता है। शिवलिंग का तेज और शीतल आभास श्रद्धालुओं को भीतर तक शांत कर देता है।
प्रसाद नहीं, सेवा—दिनभर चाय और लंगर-
यहां आपको न तो प्रसाद की दुकान मिलेगी, न मिठाई। श्रद्धालु शिवलिंग पर केवल जल अर्पित कर सकते हैं। इसके बदले मंदिर की रसोई से मुफ्त चाय और दैनिक लंगर (हलुवा, खीर, चना, पूड़ी) मिलता है। खास बात यह कि चाय जिस कप में पीते हैं, उसे स्वयं धोना होता है—सेवा का भाव यहीं से शुरू होता है। श्रद्धालुओं के लिए मुफ्त गंगाजल की व्यवस्था भी उपलब्ध है।
150 त्रिशूलों से सजी अनूठी वास्तुकला –
मंदिर की छत पर बने लगभग 150 त्रिशूल इसकी पहचान को और भव्य बनाते हैं। लाल और नारंगी रंगों से सजी दीवारें, बीच में काले रंग का झूला—यह सब मिलकर मंदिर को अलग ही आभा देते हैं। शिलापट के अनुसार, यह निजी संपत्ति है, जिसका निर्माण शिवरत्न केंद्र, हरिद्वार द्वारा 1990–91 में कराया गया। इसके निर्माता योगीराज मूलचंद खत्री का परिवार है।
सावन और महाशिवरात्रि में उमड़ती है आस्था –
मंदिर को रोज फूलों से सजाया जाता है। सावन और महाशिवरात्रि पर यहां विशेष पूजाएं होती हैं और श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। शांत वादियों के बीच स्थित इस मंदिर के पास से दून घाटी का मनोहारी दृश्य दिखता है। हां, सड़क किनारे होने के कारण पार्किंग सीमित है, फिर भी मसूरी जाने वाले अधिकांश यात्री यहां रुककर दर्शन अवश्य करते हैं।
‘प्रकाश’ + ‘ईश्वर’ = प्रकाशेश्वर
‘प्रकाशेश्वर’ शब्द प्रकाश और ईश्वर के संयोजन से बना है—अर्थात, जीवन में ज्ञान का प्रकाश लाने वाला ईश्वर। शिव सहस्त्रनामावली में भगवान शिव को ‘प्रक्षय’ यानी ज्ञान का प्रकाश भी कहा गया है। इस अर्थ में प्रकाशेश्वर नाम पूरी तरह सार्थक प्रतीत होता है।
व्रत में क्या खाएं: हल्का, सात्विक और संतुलित-
महाशिवरात्रि जैसे व्रतों में फल, जूस और जल का सेवन शरीर को संतुलित रखता है। संतरा, खीरा, पपीता, सेब उत्तम हैं। मूंगफली, मखाना, सिंघाड़ा, साबूदाना की खीर या फलाहारी उपमा भी लिया जा सकता है। दिनभर 7–8 गिलास पानी अवश्य पिएं। यदि पूरे दिन उपवास रखें, तो अगले दिन हल्का भोजन ही लें—भारी भोजन से पाचन गड़बड़ा सकता है।
निष्कर्ष
प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर हमें याद दिलाता है कि ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग भव्यता से नहीं, भाव से बनता है। यहां न दान है, न दिखावा—सिर्फ श्रद्धा, सेवा और शांति। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, और शायद यही कारण है कि यह मंदिर दिलों में बस जाता है।
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