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पावड़ा गीत | किसी वीर या देवता की वीरता का बखान करने वाली लोकगीत विधा।

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फोटो : जागर गायिका रामेश्वरी भट्ट साभार अनंत हिमालया

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पावड़ा :

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में किसी वीर पुरुष अथवा देवता  के जीवन से संबंधित उसके वीरता पूर्ण घटनाओं का वर्णन जिन गीतों में किया जाता है उन्हें गढ़वाल में पावड़ा गीत कहा जाता है। यह कुमाऊँ के “कटकु ” , भड़गामा ,या राजस्थान के रासो गीत की तरह होते हैं गढ़वाल में देवताओं के पावड़ो में गोरिल देवता एवं नागराजा के पावड़े काफी प्रसिद्ध है।

गोरिल के पवाड़े में कहा गया है कि तैमूर लंग अपनी विशाल तुर्की सेना को लेकर पहाड़ों पर आक्रमण एवं लूटपाट करने की दृष्टि से दिल्ली से चलता हुआ बिजनौर जिले में स्थित गढ़मुक्तेश्वर के पास अपने कटक के साथ आगे बढ़ रहा था तो गोरिल ने अपने महर एवं फड़्त्याल वीर योद्धाओं एवं नाथपंथी साधुओं की फौज को संगठित करके उस पर आक्रमण करके उसके प्रसार को आगे बढ़ने से रोक दिया था।
पावड़ा गीत | किसी वीर या देवता की वीरता का बखान करने वाली लोकगीत विधा।
इस प्रकार गढ़वाल पर मंडराते हुए इन क्रूर विधर्मियों के विध्वंश से इसे बचा लिया था। देवता संबंधी इन पावड़ों का गान सामान्यतः जागरों के समय यहां के वाद्यवादकों ढोली, औजी, दास आदि के द्वारा किया जाता है। नागर्जा के पंवाड़े में उसे श्री कृष्ण, गोविन्द आदि नामों से पुकारा जाता है। उसके घड़ियालें में उसकी उन बाललीलाओं, जो उन्होंने ब्रज में की थीं, उनका बखान किया जाता है।
इनके अलावा गढ़वाल की वीरांगना तीलू रौतेली के पावड़े लोगों के बीच खूब प्रचलित हैं। और कत्यूरी राजा धाम देव के पावड़े गाये जाते हैं। और सरु कुमेन और गढ़ु सुम्याल के प्रेम कथा के पावड़े गाये जाते हैं।
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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