Friday, April 18, 2025
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पल्टन बाजार देहरादून | देहरादून की रौनक का इतिहास और ‘पल्टन’ नाम की दिलचस्प कहानी

देहरादून की रौनक कहे जाने वाले पल्टन बाजार का नाम आज हर देहरादून वासी की जुबान पर है। यह बाजार जहां एक ओर खरीदारी का प्रमुख केंद्र है, वहीं इसके पीछे छुपा सैन्य और ऐतिहासिक इतिहास इसे और भी खास बना देता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बाजार का नाम ‘पल्टन’ क्यों पड़ा और यह नाम कैसे एक पहचान बन गया।

‘पल्टन’ नाम की उत्पत्ति: सेना से जुड़ा इतिहास –

‘पल्टन’ शब्द की जड़ें सीधे तौर पर भारतीय सेना से जुड़ी हैं। अंग्रेजी शब्द “Platoon” (पलटन) का मतलब होता है एक सैन्य टुकड़ी। ब्रिटिश काल के दौरान देहरादून एक प्रमुख सैन्य छावनी हुआ करता था। इसी क्रम में, देहरादून के राजपुर रोड के एक हिस्से में सिरमौर बटालियन की तैनाती की गई थी।
सैनिकों की मौजूदगी, उनकी जरूरतों को पूरा करने वाली दुकानों और गोदामों के कारण यह क्षेत्र धीरे-धीरे एक बाजार का रूप लेने लगा, जिसे स्थानीय लोग ‘पलटन वालों का बाजार’ कहने लगे। और यहीं से इसका नाम पड़ा – पल्टन बाजार।

सैन्य छावनी से व्यावसायिक केंद्र तक का सफर –

सन् 1872 में देहरादून से लगभग दो मील दूर बिंदाल नदी के पश्चिम में 550 एकड़ भूमि सेना को दी गई, जहां 2nd गोरखा रेजिमेंट के लिए एक बड़ा कैंटोनमेंट (छावनी) क्षेत्र विकसित हुआ। इसके बाद 1874 में पल्टन बाजार से सेना का स्थानांतरण हुआ और इस क्षेत्र की जिम्मेदारी सुपरिंटेंडेंट ऑफ दून H.C. Ross को सौंप दी गई।

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जब सैनिकों की टुकड़ी यहाँ से स्थानांतरित हुई, तो पीछे रह गया एक बाजार — जिसमें सैनिकों की वर्दियों की दुकानों से लेकर रोजमर्रा की ज़रूरत की सामग्री बिकने लगी। उस समय की कुछ दुकानें आज भी मौजूद हैं, विशेषकर मच्छी बाजार और सिंधी स्वीट शॉप के आस-पास, जहां सैनिक वेशभूषा की दुकानों की मौजूदगी आज भी इस इतिहास की गवाही देती है।

पल्टन बाजार की पहचान –

यह बाजार सिर्फ खरीदारी का स्थान नहीं रहा, बल्कि एक ऐसा केंद्र था जहां सैनिकों और नागरिकों का मेल होता था। राजपुर नहर से जुड़ा प्राचीन कुआं, मंदिर परिसर, और पुराना फव्वारा – ये सभी उस काल की जीवनशैली और स्थापत्य के चिह्न हैं। पल्टन बाजार की गलियाँ, पुरानी दुकानें और भीड़ आज भी उस सैन्य अतीत की गूंज सुनाती हैं।

आज का पल्टन बाजार –

समय के साथ, पल्टन बाजार ने एक सांस्कृतिक और व्यावसायिक केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाई है। आज यहाँ आधुनिक ब्रांड्स की दुकानें, पारंपरिक मिठाइयाँ, गारमेंट्स, स्टेशनरी, और इलेक्ट्रॉनिक्स से भरी दुकानों की भरमार है, लेकिन इसके मूल में बसी है एक ऐतिहासिक विरासत।

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निष्कर्ष –

पल्टन बाजार का नाम केवल एक संज्ञा नहीं, बल्कि देहरादून के सैन्य इतिहास का प्रतीक है। यह बाजार उस दौर की याद दिलाता है जब सैनिकों की टुकड़ी यहां तैनात थी और इसी के कारण इस क्षेत्र का नाम पड़ा – पल्टन बाजार।
यदि आप कभी देहरादून आएं, तो पल्टन बाजार की सिर्फ खरीदारी नहीं, उसकी इतिहास से जुड़ी गहराइयों को भी महसूस करें।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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