Monday, May 13, 2024
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पहाड़ी पिसी नूण, पहड़ियों का अपना यूनिक स्वाद !

पहाडों मे लोग मेहनतकश होते हैं। पहले सडकें बहुत कम थी, यातायात के साधन नही थे तो आदमी पैदल चला करते थे। मेहनत करने से नमक की कमी हो जाती होगी तो नमक ज्यादा खाया जाता था। फिर पहाडों मे प्रचुर मात्रा मे फल वगैरह होते थे तो उनके साथ नमक खाया जाता था। पहाड के लोगो ने तब कई प्रकार के मसाले वगैरह मिलाकर नमक को स्वादिष्ट बना दिया। आज भी पहाडों मे कई जगह पहाड़ी पिसी नूण के नाम से नमक बेचकर स्वरोजगार को बढावा दिया जा रहा है और पहाड के नमक  के स्वाद को देश विदेश भेजा जा रहा है।

पहाडो मे नमक की बात करूं तो सबसे पहले बारी आती है एक मसालेदार नमक की जो संयोगवश बन पडा होगा।  सिलबट्टे पर घर के मसाले, लहसन, राई, मेथी, भांग पुदीना, आदि, पीसा जाता है तो सिल बट्टे पर थोडा थोडा स्वाद सारी चीजों का रच जाता है. जब उस पर नमक के कणिक पीसे जाते थे तो बिना मसाला डाले मसालेदार नमक तैयार हो जाता था। इस नमक के स्वाद का जवाब नही।

अब आते हैं दूसरे नमक पर – ये हुवा लूण के कणिक, यानि पहले बिकने वाला डली वाला नमक। इसको हमने बचपन मे जब ईजा को समय न हो वो रोटी पकाकर चली गई और सब्जी न हो तो तब रोटी के साथ ऐसे ही टपुक जैसा कटकाकर खाया है। आज के लोगो को अटपटा लगे पर बचपन मे नमक के कुटक कुटुक करने मे मजा आता था। कभी कम तो कभी ज्यादा नमक जीभ मे अलग अलग स्वाद देता था।

पहाड़ी पिसी नूण

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एक नमक ऐसे भी बनता था – कढाई मे तेल डालकर जीरा या धनिया डालकर दो चार नमक के कणिके डाल देते थे। अब तेल को अचारी तेल की तरह और नमक को कटकाकर रोटी बुका लेते थे। इसका भी अपना मजा था।

एक नमक बनता था जतकाव (प्रसव के बाद) महिलाओ के लिए या कई बार बीमार लोगो के लिए – जिसे पकाई लूण कहते थे। नमक को खूब पानी डालकर कढाई मे डालकर आँच पर चढा दिया जाता था। फिर पूरा पानी भिटकाकर (पकाते पकाते सुखाकर) नमक को बिलकुल सूख जाने पर रख लिया जाता था। शायद ये इसलिए भी करते होगे ताकि समुद्री नमक से गन्दगी निकल जाय।

अब बारी आती है पहाड के सर्वाधिक प्रचलित भांग के नमक की, भाग के नमक के बिना पहाड की कई चीजें अधूरी है।  खटाई या सना हुवा चूख (नीबू) की तो इसके बगैर कल्पना भी नही की जा सकती है।  भांग का नमक  घी के साथ रोटी तो प्रिय नाश्ता हुवा।  मडुवे की रोटी के साथ तो स्वाद का जवाब नही। भांग के बीजो को भूनकर नमक के साथ सिलबट्टे पर पीस लो भांग का नमक तैयार, भांग की तरह ही अलसी का नमक भी बनाया जाता है। ये बहुत गुणकारी माना जाता है। इसको रोटी आदि के साथ और खटाई के साथ प्रयोग करते हैं।

एक नमक बनता है जीरे का, कच्चे जीरे को नमक के साथ पीसकर बनाया जाता है। ये ककडी के साथ और काफल के साथ बढिया लगता है। काफल मे सरसों का कच्चा तेल डालकर जीरे का नमक मिलाकर खाओ मजा न आए तो पैसे वापस। लहसुन की कलियों का नमक नासपाती और बडे मेहल  के साथ जमता है। लहसुन की पत्तियों का नमक सने हुए नीबू आदि मे पडता है। हरी मिर्च, धनियां का नमक ककडी के साथ एकदम मस्त होता है। माल्टा वगैरह मे जीरे धनिया पत्ती मिर्च का नमक खाया जाता है। छांछ मे जीरा पुदीने का नमक डालकर बढिया लगता है।

इसके अलावा तिल भूनकर तिल का नमक, धुंगार का नमक, दुन (धुंगार) का नमक, भंगीर के बीजो का नमक (गदुवे के डावे) के साथ, मेथीदाना को भूनकर मेथी का नमक भी बनता है। ये बाय-बात के लिए फायदेमंद होता है। धनिये के हरे बीजो का नमक भी बनता है। ये जौले के साथ मजेदार होता है। जौले के साथ जीरे का नमक भी खाते हैं।

नमक मुख्य रूप से यही  बनते थे। इसके अलावा अपनी कल्पनाशक्ति से जीरा, धनिया (पत्ता, साबुत) लहसुन, पुदीना, आदि से मसालेदार नमक बन जाते थे। इसके अलावा एक पल्लूण भी प्रयोग होता था जिसे हिन्दी मे काला नमक कहते हैं।  इसको खाने से पदैन बास आती थी पर गैस वगैरह बनने पर हाजमा खराब होने पर इसका प्रयोग करते थे।

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पहाड़ी पिसी नूण
लेखक परिचय –
पहाडी पिसी लूण पर यह ज्ञानवर्धक लेख श्री विनोद पंत खंतोली जी के फेसबुक वाल से साभार लिया गया है। श्री विनोद पंत खंतोली कुमाउनी हास्य कवि के साथ -साथ बहुत अच्छे व्यंग लेखक भी हैं। हाल ही में इनकी कुमाउनी हास्य व्यंग की किताब फसकटैल प्रकाशित हुई है। यदि आप कुमाउनी भाषा में हास्य व्यंग पढ़ना चाहते हैं तो इस किताब को ऑनलाइन मंगा सकते हैं। इसे मंगाने का विवरण नीचे पोस्टर में दिया है।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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