Home संस्कृति ओड़ा भेटना – स्याल्दे बिखौती मेले की प्रसिद्ध परम्परा।

ओड़ा भेटना – स्याल्दे बिखौती मेले की प्रसिद्ध परम्परा।

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ओड़ा भेटना

ओड़ा भेटना –

ओड़ा भेटना की प्रथा उत्तराखंड की कुमाऊँ मंडल के द्वाराहाट के स्याल्दे बिखौती मेले के अवसर पर निभाई जाने वाली परम्परा है। ‘ओड़’ का अर्थ है विभाजक चिह्न । द्वाराहाट बाजार में सड़क के किनारे एक पाषाणी संरचना है, जिसे ओड़ा माना जाता है। मेले के दिन इन धड़ों के द्वारा इस पाषाण खण्ड पर लाठियों से मारने की परम्परा है और इसका अपना इतिहास भी है ।

कहा जाता है कि पिछले समयों में एक बार यहां के शीतलादेवी के मंदिर में पहले दर्शनों को लेकर दो धड़ों के बीच मतभेद हो जाने से उनके बीच खूनी संघर्ष हो गया था, जिसमें होने वाले दल के मुखिया का सिर काटकर यहां पर गाड़ दिया गया था। और दोनों के बीच विभाजन के लिए इस पत्थर का ‘ओड़ा’ बना दिया गया था। मारे गये धड़े के लोग यहां पर ओड़ा भेटने, श्रंद्धांजलि अर्पित करने के लिए जाते हैं, किन्तु दूसरे धड़े के लोग इस पर लाठियों से प्रहार करते हैं।

पिछले समयों में इसमें पहले प्रहार करने को लेकर दोनों धड़ों-आल और गरख, के बीच कभी-कभी खूनी संघर्ष भी हो जाया करते थे, किन्तु कालान्तर में इस संघर्ष के परिहार के लिए प्रशासन की ओर से विधि-विधान कर दिये जाने से अब प्रथम दिन अर्थात् बिखौती को नौज्यूला धड़े के लोग अपने परम्परागतं लोकवाद्यों के साथ बड़ी भारी संख्या में इस स्थान पर। एकत्र होकर परम्परागत लोकगीतों के साथ अपने धड़े के वीर योद्धा के इस स्मारक का दर्शन, स्पर्शन कर उसे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

आने वाले दो दिनों में अन्य दो धड़ों के लोग मारूबाजों की धुनें बजाते हुए इस स्थान पर आते हैं तथा अपने प्रतिद्वन्दी इस वीर के स्मारक पर लाठियों से प्रहार उसके प्रति अपने क्रोध की अभिव्यक्ति करते हैं। कहा जाता है कि एक बार इस संघर्ष में यहां पर एक कैड़ावीर की मृत्यु हो गयी थी, इसलिए अब कैड़ा रौ वालों का नगाड़ा स्याल्दे मेले में नहीं आता है।

अपनी बारी पर विजयी धड़े के लोग अपने नियत मार्गों से हाथों में लाठियां थामे मारूबाजे बजाते हुए व हुंकार भरते हुए वहां पहुंचते हैं। उस समय उसका माहौल ऐसा होता है जैसे कि रणवांकुरे वीर रणभूमि में अपने शत्रुओं पर प्रहार करने जा रहे हों और उस ओड़े पर ऐसे ही प्रहार करते हैं जैसे कि शत्रु पर प्रहार कर रहे हों । इस प्रकार सभी दल ओड़ा भेटना की रस्म पूरी करते हैं

साभार – प्रो dd शर्मा ,” उत्तराखंड ज्ञानकोष “

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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