Saturday, February 22, 2025
Homeकुछ खासमात प्रथा : उत्तराखंड के गावों में आज भी क्यों जिन्दा है...

मात प्रथा : उत्तराखंड के गावों में आज भी क्यों जिन्दा है यह सामंती अत्याचार।

परिचय :

“मात प्रथा” (Mat System) उत्तराखंड के पुराने टिहरी रियासत, विशेषकर परगना रवाई-जौनपुर क्षेत्र की एक पारंपरिक सामाजिक-आर्थिक प्रथा है। यह प्रथा ग्रामीण समाज में जातिगत पदानुक्रम को दर्शाती है और निम्न जाति के मजदूरों तथा उच्च जाति के संरक्षकों के बीच आपसी निर्भरता को उजागर करती है। हालांकि 1971 में इसे आधिकारिक तौर पर समाप्त कर दिया गया था, लेकिन यह प्रथा अभी भी इस क्षेत्र के रूढ़िवादी और परंपरावादी समाज में अघोषित रूप से जारी है।

मात प्रथा क्या है?

मात प्रथा (Mat System) एक सामंती प्रथा थी, जिसमें कोल्टा और अन्य निम्न जाति के समुदाय उच्च जाति के ब्राह्मणों और ठाकुरों के लिए बंधुआ मजदूर के रूप में काम करते थे। आर्थिक सहायता के बदले में, ये मजदूर अपने संरक्षकों को आजीवन सेवा प्रदान करते थे। इस व्यवस्था के तहत निम्न जाति के परिवारों को भोजन, वस्त्र और जीवनयापन के लिए छोटे भूमि के टुकड़े मिलते थे। हालांकि, यह व्यवस्था निर्भरता और सेवा के एक चक्र को पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनाए रखती थी।

मात प्रथा के मुख्य बिंदु :

1.आर्थिक निर्भरता : निम्न जाति के परिवार अपने संरक्षकों पर पूरी तरह से निर्भर थे।
2.पीढ़ीगत बंधन : यह प्रथा वंशानुगत थी, जिसमें परिवार पीढ़ियों तक अपने संरक्षकों की सेवा करते थे।
3.मूलभूत सुविधाएं : मजदूरों को भोजन, वस्त्र और छोटे भूमि के टुकड़े जैसी न्यूनतम सुविधाएं मिलती थीं।
4. सामाजिक पदानुक्रम : यह प्रथा ग्रामीण उत्तराखंड में प्रचलित जातिगत पदानुक्रम को मजबूत करती थी।

Hosting sale

मात प्रथा का उन्मूलन :

1971 में, मात प्रथा को प्रशासनिक स्तर पर आधिकारिक तौर पर समाप्त कर दिया गया। हालांकि, इस क्षेत्र के गहराई से जड़ें जमाए परंपरागत और रूढ़िवादी मूल्यों के कारण, यह प्रथा अनौपचारिक रूप से जारी है। कई निम्न जाति के परिवार आज भी अपने संरक्षकों पर जन्म, मृत्यु और शादी जैसे महत्वपूर्ण जीवन घटनाओं के लिए निर्भर हैं।

मात प्रथा का स्थायी प्रभाव –

Best Taxi Services in haldwani

इसके उन्मूलन के बावजूद, मात प्रथा की विरासत उत्तराखंड के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने में बनी हुई है। प्रथा का अनौपचारिक रूप से जारी रहना गहराई से जुड़ी सामाजिक प्रथाओं को समाप्त करने की चुनौतियों को उजागर करता है। कई निम्न जाति के परिवारों के लिए, उनके संरक्षकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता उनके दैनिक जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिससे इस निर्भरता के चक्र को तोड़ना मुश्किल हो जाता है।

निष्कर्ष :

उत्तराखंड की मात प्रथा इस क्षेत्र के सामंती अतीत और जातिगत पदानुक्रम के स्थायी प्रभाव की एक झलक प्रस्तुत करती है। हालांकि प्रशासनिक प्रयासों के माध्यम से इस प्रथा को समाप्त करने की कोशिश की गई है, लेकिन इसका अनौपचारिक रूप से जारी रहना समाज में व्यापक सामाजिक और आर्थिक सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

इन्हे भी पढ़े :

रितुरैण और चैती गीत: उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, कुमाऊं-गढ़वाल की अनूठी लोक परंपराएं और वसंत ऋतु के गीत | जानिए पूरी जानकारी

हमारे यूट्यूब चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

 

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments