लक्ष्मी देवी टम्टा उत्तराखंड की पहली दलित महिला स्नातक थी। तथा वे उत्तराखंड की पहली दलित महिला सम्पादक भी थी। हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में लक्ष्मी देवी का योगदान महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड की पहली अनुसूचित जाती की महिला स्नातक का सम्मान प्राप्त लक्ष्मी देवी टम्टा ने समता पत्रिका के माध्यम से अनुसूचित जाती के लोगो की आवाज को बुलंद स्वर प्रदान किया। तथा दलित वर्ग की शिक्षा समानता के लिए सदा प्रयासरत रही।
लक्ष्मी देवी टम्टा का जन्म १६ फरवरी १९१२ को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुवा था। इनके पिता का नाम गुलाब राम टम्टा और उनकी माता का नाम कमला देवी था। हाईस्कूल तक की शिक्षा इन्होने नंदन मिशन स्कूल अल्मोड़ा वर्तमान में इसका नाम एडम्स गर्ल्स इंटर कालेज है। या यूँ कह सकते हैं कि एडम्स गर्ल्स इंटर कालेज का पुराना नाम नंदन मिशन स्कूल था। उस समय अनुसूचित जाती के लोग अछूत समझे जाते थे। और उस समय सामान्य जाती के लोग ही कम पढ़े या अनपढ़ होते थे। और अनुसूचित जाती के व्यक्ति द्वारा शि.क्षा प्राप्त करना ,लोहे के चने चाबने जैसा दुष्कर था। ऐसे समय आप ने एडम्स से 10th पास करके 1934 में बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। उत्तराखंड की प्रथम दलित स्नातक होने का गौरव भी प्राप्त किया। 1936 में बनारस विश्वविद्यालय से डी*टी और विवाह के उपरांत मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।
पुराने समय में स्त्रियों की दशा शिक्षा और सामाजिक समानता में सोचनीय थी। लक्ष्मी देवी टम्टा जी ने उस समय सामाजिक विरोध और सामाजिक संघर्षो को सह कर या उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद 1931 में राष्ट्रीय पत्र के सम्पादक मुद्रक ,प्रकाशक मदन मोहन नागर के पुत्र महिपत राय नागर के साथ इन्होने अन्तर्जातीय विवाह किया। महिपत राय नागर एक गुजरती ब्राह्मण थे। उस समय अल्मोड़ा से समाज सेवी मुंशी हरिप्रसाद टम्टा समता का सम्पादन करते थे। लक्ष्मी देवी टम्टा इनकी भांजी लगती थी। समता अख़बार का सम्पादन 19३५ से लगातार शुरू किया था। हरिप्रसाद टम्टा एक प्रसिद्ध समाजसेवी थे। दलित ,पिछड़े, अनुसूचित जाती के लिए अपने अख़बार समता में सामाजिक समानता और शिक्षा के लिए आवाज उठाते थे।
1935 में मुंशी हरिप्रसाद टम्टा ने अपनी भांजी को समता पत्रिका का विशेष सम्पादक का कार्यभार दिया। लक्ष्मी देवी टम्टा उत्तराखंड की पहली अनुसूचित जाती की महिला सम्पादक थी।लक्ष्मी देवी की धारदार लेखनी से देश व् राज्य के पिछड़े वर्ग की सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक समस्याओं को उभरा। वह एक तेज तरार संपादक थी। लक्ष्मी देवी के सम्पादकीय और अन्य लेखों का इंतजार दलित वर्ग के साथ साथ सवर्ण वर्ग और अंग्रेजों को भी रहता था। लक्ष्मी देवी जी कुछ समय कन्या इंटर कॉलेज की प्रधानचर्या भी रहीं।
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अंततः 70 वर्ष की उम्र में ,फरवरी 1982 में पहाड़ की पहली दलित महिला सम्पादक की मृत्यु हो गई। लक्ष्मी देवी टम्टा उत्तराखंड की पहली हरिजन सम्पादक और कुमाऊं मंडल के शिपकारों की मजबूत आवाज थी वो। कुमाऊं हरिजन समाज की प्रकाश स्तम्भ थी।