Friday, November 22, 2024
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श्राद्ध की बिल्ली, कुमाउनी लोककथा

मित्रो आजकल समस्त देश के साथ पहाड़ों में भी पितृपक्ष चल रहे हैं। साथ साथ खेती का काम भी चल रहा है। इन्ही पितृपक्ष श्राद्धों पर आधारित एक रोचक कुमाउनी लोककथा श्राद्ध की बिल्ली का यहाँ संकलन कर रहें हैं। यदि अच्छी लगे तो अपने समुदाय में सांझा अवश्य करें।

कुमाऊं मंडल के किसी गांव में एक बुढ़िया और उसकी बहु रहती थी। बुढ़िया ने एक बिल्ली पाल रखी थी। बुढ़िया रसोई में खाना बनाने या किसी भी अन्य कार्य करती थी तो ,उसकी बिल्ली म्याऊ -म्याऊ करके  चूल्हे के पास बैठ जाती थी। बिल्ली की आदत ठैरी कभी किसी बर्तन में मुँह मार देती थी। अब श्राद्ध के दिन खेती के काम के साथ -साथ कई और काम भी हो जाते थे।  श्राद्ध के लिए सामान भी  लगाना होता था। बिल्ली म्याऊ -म्याऊ आदत से डर लगा रहता था कि ,कही कोई सामान जूठा ना कर दे। इसलिए जब बुढ़िया के पति का श्राद्ध होता था ,तो बुढ़िया  श्राद्ध ख़त्म होने तक बिल्ली को एक टोकरे से ढक कर रखती थी।यह काम वह हर साल के  श्राद्ध पर करती थी ,श्राद्ध के दिन वो पहले ही टोकरी ढूंढ कर रख लेती थी। बुढ़िया के इस काम को उसकी बहु बड़े ध्यान से नोट करती थी।

समय बीतता गया बहु सयानी  हो गई। सास दुबली पतली होती गई। बुढ़िया एक बार बीमार पढ़ गई। बहु ने अपनी सास की बहुत सेवा पानी की लेकिन बुढ़िया नहीं बच पायी। उसी साल बुढ़िया की बिल्ली भी मर गई। बुढ़िया के गुजरने के एक साल बाद जब बुढ़िया का श्राद्ध आया।  श्राद्ध के दिन बहु सुबह -सुबह मुँह अंधेरे में उठ कर पड़ोस में कमला के घर पहुंच कर बोली , “कमला दीदी ! आज में तुमसे एक चीज मांगने आयी हूँ। मना मत करना ! वो थोड़ी देर के लिए आपकी बिल्ली की जरुरत थी। फिर वापस कर दूंगी।” कमला बोली , “आज थोड़ी देर के लिए तुम्हे बिल्ली की क्या जरुरत पड़ गई ?”

बहु बोली, “अरे! दीदी कल मुझे याद रहा नहीं। इसलिए आज सुबह आई हूँ। बात ऐसी है कि जब तक सास जिन्दा थी ,वो ससुर के श्राद्ध के दिन बिल्ली को टोकरे से ढक देती थी। जब श्राद्ध पूरा हो जाता तब वो टोकरा उठाती थी। अब सास की पाली हुई बिल्ली भी मर गई ! मैंने सोचा क्यों ना थोड़ी देर के लिए कमला दीदी से बिल्ली मांग कर ले आऊ ,टोकरा तो घर में ही है। श्राद्ध पूरा होते ही आपकी बिल्ली आपको लौटा दूंगी।”

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कमला ने हॅसते हुए बिल्ली बहु को दे दी और कहा , ‘ श्राद्ध पूरा होते ही ,”श्राद्ध की बिल्ली ” लौटा देना। हम अपने श्राद्ध के दिन बिल्ली के लिए कहाँ  जायेंगे ! !!

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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