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कंडोलिया देवता के रूप में विराजते हैं, गोलू देवता पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में

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कंडोलिया मंदिर पौड़ी गढ़वाल का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिला मुख्यालय से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर प्राकृतिक, नैसर्गिक सुंदरता के बीच बसा है। इसके चारों ओर ऊँचे और सुंदर देवदार, बांज आदि के सघन वृक्ष हैं। पौड़ी समुद्र तल से 1814 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

इस मंदिर के पास कंडोलिया पार्क  भी स्थित है। जो उत्तराखंड का पहला  लेज़र थीम पार्क है। कंडोलिया मंदिर की चोटी से हिमालय की चोटियों और गंगवारस्यू घाटी के रमणीय दर्शन होते हैं। कहते हैं कि कंडोलिया देवता चंपावत से पौड़ी आये डुंगरियाल नेगी जाती के लोंगो के कुल देवता हैं, जिन्हें भूमिदेवता का सम्मान देकर कंडोलिया देवता के रूप में पूजा जाता है। कंडोलिया मन्दिर से 2 किलोमीटर दूर भगवान शिव का पौराणिक मंदिर क्यूंकालेश्वर मंदिर स्थित है। तथा 1.5 किलोमीटर दूर एशिया का दूसरा सबसे ऊंचा  रांसी स्टेडियम है। यहाँ प्रतिवर्ष हजारों लोग कंडोलिया ठाकुर जी के दर्शनों के लिए आते हैं।

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कंडोलिया देवता

कंडोलिया देवता की कहानी –

कंडोलिया देवता के बारे में अनेक कहानिया प्रचलित हैं। कुछ स्थानीय लोगो का मानना है कि ये भगवान शिव का स्वरूप हैं। जब पौड़ी के पहले निवासी पौड़ी आये ,तब वे अपने साथ देवता को लेकर आये। पहले कंडोलिया देवता को नीचे पौड़ी में मंदिर था। बाद में कंडोलिया ठाकुर किसी के स्वप्न में आये उन्होंने कहा कि मेरा मंदिर ऊँचे स्थान पर होना चाहिए। फिर कंडोलिया देवता का मंदिर ऊँचे टीले पर स्थापित किया गया।

चंपावत के डुंगरियाल नेगी जाती के लोग जो पौड़ी में बसे हुए हैं,वे इनके पुजारी हैं। यहाँ के लोग इन्हें धावड़िया देवता के नाम से भी पुकारते थे। क्योंकि क्षेत्र में कोई भी संकट आने वाला होता था तो , ये आवाज लगाकर लोगों को आगाह कर देते थे।

दूसरी कहानी इस प्रकार है, कि चंपावत से डुंगरियाल नेगी जाती के लोग पौड़ी आये और अपने साथ अपने इष्टदेवता गोलु देवता ( गोरिल देवता ) को कंडी में रख कर लाये । या यह कहानी इस प्रकार भी है, बहुत साल पहले पौड़ी के डुंगरियाल नेगी जाती के लोगों के लड़के की शादी कुमाऊं से हुई । तब कुमाऊं की दुल्हन अपनी कंडी में अपने इष्ट देवता गोलू देवता को पौड़ी लाई इसलिए इनका नाम कंडोलिया देवता पड़ा।

कंडोलिया ठाकुर  से जुड़ी हर कहानी का अर्थ एक ही निकलता है, कि इनसे कोई और नही स्वयं उत्तराखंड के न्याय के देवता गोलू देवता हैं। क्योंकि गोलू देवता को ही भगवान शिव के गौर भैरव का अवतार माना जाता है। और गोलू देवता को भूमिया देवता के रूप में भी पूजा जाता है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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