कमलेश्वर महादेव मंदिर नामक भगवान शिव का अतिप्रसिद्ध पौराणिक मंदिर, गढ़वाल की प्राचीन राजधानी श्रीनगर में स्थित है। आबादी से लगभग एक किलोमीटर दूर पक्षिम में रोड और अलकनंदा नदी के बाएं तट पर स्थित है। केदारखंड के अनुसार यह मंदिर हिमालय के पांच प्रमुख महेश्वर पीठों में से एक पीठ है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। 1960 ई में इस मंदिर का पूर्निर्माण बिड़ला परिवार ने करवाया था। कमलेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड में भगवान् शिव के अलावा ,गणेश और आदि गुरु शंकराचार्य जी की मूर्तियां स्थापित हैं।
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कमलेश्वर मंदिर का नामकरण –
इस मंदिर के नामकरण पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार रावण वध के उपरांत ब्रह्महत्या से मुक्त होने के लिए भगवान् राम ने यहाँ प्रयाश्चित स्वरूप शिवलिंग की स्थापना करके एक हजार कमल के फूलों से उसकी आराधना करने का संकल्प लिया। जब भगवान् राम पूजा कर रहे थे ,तब भगवान् शंकर ने उनकी परीक्षा लेने के निमित से एक कमल पुष्प छुपा दिया।
जब भगवान् राम ने 999 फूल अर्पित कर दिए ,और एक फूल कम पड़ गया तो उन्होंने पुष्प की जगह अपनी एक आँख भगवान् शिव को समर्पित कर दी। राम जी की भक्ति से खुश होकर भगवान् शिव ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिए। राम जी के द्वारा अर्पित की गई आँख को लौटाकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्त कराया। इस मंदिर का नाम कमलेश्वर मंदिर पड़ गया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने एक हजार कमल दल से भगवान भोलेनाथ की पूजा का प्रण किया लेकिन भोलेनाथ ने भगवान् विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल छुपा दिया। तब भगवान विष्णु ने एक कमल की जगह अपनी आँख अर्पित करने का निश्चय किया। उनकी निश्छल पूजा से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया।
मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी को होती है ,निःसंतानों की मनोकामना पूर्ति –
इस मंदिर में तीन प्रमुख वार्षिक उत्सव मनाये जाते हैं,- अचला सप्तमी, शिव रात्रि और वैकुण्ठ चतुर्दशी। इन तीनो उत्सवों में कार्तिक पूर्णिमा के पहले दिन पड़ने वाली वैकुण्ठ चतुर्दर्शी खास है। इस दिन दूर -दूर से श्रद्धालु आकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। निसंतान महिलाएं संतान सुख की कामना के साथ ,इस दिन रात भर हाथ में दीपक लेकर जागरण करती हैं।
खड़े दिए की पूजा करने वाली महिलाएं ,नारियल ,दो नीबू , दो अखरोट ,पंचमेवा ,चावल अपनी कोख से बांधकर रातभर घी से भरा जलता दिया लेकर खड़ी रहती है। महिला का पति इस प्रक्रिया को लगातार करता है। प्रातः इस दिए को अलकनंदा में प्रवाहित करके मंदिर में महादेव का अभिषेक और पूजा अर्चना करते हैं । लोगों का विश्वास है कि ,दीपधारित तपसाधना से उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
उत्तराखंड समाज में एक गहन आस्था रही है कि ,विशेष पर्वों पर निसंतान दम्पति या महिला यदि देव विशेष या भगवान् भोलेनाथ के सामने उनके विशेष देवस्थल में रात भर हाथ में जलता दीपक लेकर जागरण करते हैं तो उसे मनवांछित संतान की प्राप्ति होती है। इस दीपसाधना को खड़रात्रि जागरण , दिए जगाना या खड़ा दीपक पूजा अथवा खड़ा दीया पूजा कहते हैं। श्रीनगर के कमलेश्वर मंदिर के अतिरिक्त कुमाऊं के सोमेश्वर में स्थित गणनाथ मंदिर में भी वैकुण्ठ चतुर्दर्शी को रात्रि दीप जगरण किया जाता है। इन दो मंदिरों के अलावा उत्तराखंड के जागेश्वर ,बागेश्वर ,काटेश्ववर ,नंदाभ्रामरी , कूर्मासनी ,भद्राज ,व्यनधुरा और छोटे कैलाश आदि मंदिरों में यह दीप साधना की जाती है।
2024 में वैकुण्ठ चतुर्दर्शी को संतान प्राप्ति हेतु खड़ा दीपक साधना कार्तिक शुक्ल चतुर्दर्शी 14 नवंबर 2024 की रात्रि को किया जायेगा। पूजा के लिए फोन द्वारा या मंदिर में जाकर रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए, हम इस लेख के अंत में इस मंदिर प्रबंधन का फेसबुक पेज का लिंक दे रहें है। आप उसके द्वारा सम्पर्क कर सकते हैं।
कमलेश्वर मंदिर उत्तराखंड कैसे पहुंचे –
कमलेश्वर मंदिर श्रीनगर उत्तराखंड पहुंचने के लिए ,देहरादून ,ऋषिकेश तक ट्रैन , हवाई जहाज और बस आदि से पहुंचने के उपरांत श्रीनगर गढ़वाल के लिए बस टेक्सी आदि द्वारा आसानी से पंहुचा जा सकता है। श्रीनगर मैन मार्किट से लगभग 1 किलोमीटर दूर स्थित यह प्रसिद्ध मंदिर।
कमलेश्वर महादेव मंदिर का फेसबुक पेज पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें . उनके फेसबुक पेज से आप खड़ी पूजा के रजिस्ट्रेशन के बारे में अत्यधिक जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।
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