Thursday, April 24, 2025
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कैंची धाम के चढ़ावे से क्यों नहीं बनता उत्तराखंड में बाबा का अस्पताल?

उत्तराखंड, अपने प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक महत्व के लिए विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन इस खूबसूरत राज्य की एक बड़ी समस्या है – स्वास्थ्य सेवाएँ। पहाड़ी क्षेत्रों में अच्छे अस्पतालों की कमी और बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं का अभाव यहाँ के निवासियों के लिए एक गंभीर चुनौती है। इस बीच, कैंची धाम, नीम करौली बाबा का पवित्र आश्रम, एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में उभर रहा है, जो रोज़ाना हज़ारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। लेकिन इस धाम के चढ़ावे से जुड़ा एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है, जो उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर सवाल उठाता है।

पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाओं का संकट-

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ लंबे समय से उपेक्षित हैं। यहाँ अस्पतालों की संख्या जनसंख्या के अनुपात में बेहद कम है, और जो अस्पताल हैं, उनमें विशेषज्ञ डॉक्टर, आधुनिक उपकरण, और बुनियादी सुविधाओं की कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में मरीज़ों को प्राथमिक उपचार के लिए भी लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, और गंभीर मामलों में उन्हें हल्द्वानी, देहरादून, या दिल्ली जैसे शहरों की ओर रुख करना पड़ता है।

उत्तराखंड सरकार ने हाल के वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के प्रयास किए हैं। उदाहरण के लिए, 2024 में 276 डॉक्टरों की भर्ती और 632 एएनएम, सीएचओ, और नर्सिंग अधिकारियों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई है। इसके बावजूद, पर्वतीय क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी और उप जिला चिकित्सालयों का अभाव अब भी एक बड़ी समस्या है। आयुष्मान योजना के तहत पर्वतीय क्षेत्रों में निजी अस्पतालों में बिना रेफरल के इलाज की सुविधा दी गई है, लेकिन इन अस्पतालों की संख्या भी सीमित है।

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कैंची धाम के चढ़ावे से क्यों नहीं बनता उत्तराखंड में बाबा का अस्पताल?

कैंची धाम: आध्यात्मिक केंद्र या जाम का कारण?

नैनीताल जिले में स्थित कैंची धाम, नीम करौली बाबा का आश्रम, आज एक वैश्विक तीर्थ स्थल बन चुका है। सोशल मीडिया और मशहूर हस्तियों जैसे विराट कोहली के दर्शन के बाद यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ में भारी इज़ाफा हुआ है। हर दिन हज़ारों भक्त बाबा का आशीर्वाद लेने पहुँचते हैं, जिसके कारण हल्द्वानी से कैंची धाम तक के मार्ग पर घंटों जाम की स्थिति बन जाती है।

प्रशासन ने इस समस्या से निपटने के लिए भवाली और आसपास अस्थाई पार्किंग की व्यवस्था की है, लेकिन यह समाधान अभी भी अपर्याप्त है। स्थानीय लोग और यात्री जाम में फँसने से परेशान हैं, और यह स्थिति उत्तराखंड के पर्यटन और दैनिक जीवन पर भी असर डाल रही है।

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कैंची धाम का चढ़ावा: उत्तराखंड से बाहर क्यों?

कैंची धाम में रोज़ाना भारी मात्रा में चढ़ावा चढ़ता है, जिसमें नकदी, सोना, चाँदी, और अन्य मूल्यवान वस्तुएँ शामिल हैं। हाल ही में एक पॉडकास्ट में नीम करौली बाबा के पुत्र धनंजय शर्मा ने खुलासा किया कि कैंची धाम का अधिकांश चढ़ावा उत्तराखंड से बाहर, किसी अरविंद अस्पताल में भेजा जाता है। यह तथ्य स्थानीय लोगों और भक्तों के लिए आश्चर्यजनक और निराशाजनक है।

उत्तराखंड में मरीज़ों की कोई कमी नहीं है। पहाड़ी क्षेत्रों में लोग बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि कैंची धाम का चढ़ावा स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए क्यों नहीं उपयोग किया जा रहा? नीम करौली बाबा के तीन मुख्य वचन – सबको प्यार करो, सभी की सेवा करो, सबको भोजन दो – सामाजिक कल्याण और सेवा पर केंद्रित हैं। फिर भी, यह चढ़ावा स्थानीय समुदाय की सबसे बड़ी ज़रूरत, यानी स्वास्थ्य सेवाओं, को संबोधित करने में उपयोग क्यों नहीं हो रहा?

क्या हो सकता था समाधान?

कैंची धाम का चढ़ावा यदि उत्तराखंड में ही निवेश किया जाए, तो यहाँ के स्वास्थ्य परिदृश्य को बदलने की क्षमता है। कुछ संभावित समाधान इस प्रकार हो सकते हैं:

बाबा के नाम पर मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल:-

अल्मोड़ा, नैनीताल, या हल्द्वानी के आसपास नीम करौली बाबा के नाम से एक मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल बनाया जा सकता है। यह अस्पताल स्थानीय लोगों और यात्रियों को मुफ्त या रियायती इलाज प्रदान कर सकता है।
बाबा के भक्त डॉक्टर, जो देश-विदेश में फैले हैं, इस अस्पताल में स्वैच्छिक सेवा दे सकते हैं, जैसा कि बाबा की शिक्षाओं में सेवा भाव पर ज़ोर दिया गया है।

कैंची धाम के चढ़ावे से क्यों नहीं बनता उत्तराखंड में बाबा का अस्पताल?

मोबाइल मेडिकल यूनिट्स:

पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ बड़े अस्पताल बनाना संभव नहीं, वहाँ मोबाइल मेडिकल यूनिट्स शुरू की जा सकती हैं। ये यूनिट्स ग्रामीण क्षेत्रों में नियमित स्वास्थ्य जाँच, दवाएँ, और प्राथमिक उपचार प्रदान कर सकती हैं।

स्थानीय चिकित्सा प्रशिक्षण केंद्र:

कैंची धाम के चढ़ावे से स्थानीय युवाओं के लिए नर्सिंग और मेडिकल टेक्नीशियन प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं। इससे न केवल रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का उन्नयन:

मौजूदा उप-स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को आधुनिक उपकरणों और विशेषज्ञ डॉक्टरों से लैस किया जा सकता है, ताकि स्थानीय लोग गंभीर बीमारियों का इलाज अपने गाँव के पास ही करा सकें।

स्थानीय पहाड़ी समाज की पुकार –

उत्तराखंड के लोग जाम में फँसने और दूर-दराज के शहरों में इलाज के लिए भागने से तंग आ चुके हैं। कैंची धाम, जो नीम करौली बाबा की शिक्षाओं का प्रतीक है, स्थानीय समुदाय की इस पुकार का जवाब बन सकता है। यदि चढ़ावे का एक हिस्सा भी स्थानीय स्वास्थ्य सुविधाओं में निवेश किया जाए, तो यह न केवल बाबा के सेवा भाव को साकार करेगा, बल्कि पहाड़ों के लोगों के जीवन में एक ठोस बदलाव लाएगा।

निष्कर्ष –

उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाएँ एक गंभीर संकट से जूझ रही हैं, और कैंची धाम जैसे आध्यात्मिक केंद्र इस संकट को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। नीम करौली बाबा के चढ़ावे को उत्तराखंड के बाहर भेजने के बजाय, इसे स्थानीय अस्पतालों, मोबाइल मेडिकल यूनिट्स, और प्रशिक्षण केंद्रों में निवेश करना बाबा की शिक्षाओं को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। यह समय है कि कैंची धाम न केवल आध्यात्मिक शांति का केंद्र बने, बल्कि पहाड़ों के लोगों के लिए स्वास्थ्य और उम्मीद का प्रतीक भी बने।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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