जौलजीबी मेला 2025 कब है?
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जौलजीबी मेला का परिचय
भारत, नेपाल और तिब्बत—इन तीनों देशों की परंपराओं का संगम है अंतरराष्ट्रीय जौलजीबी मेला। यह मेळा काली, गोरी और सरयू नदियों के संगम स्थल पर आयोजित होता है और पिथौरागढ़ से लगभग 68 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मेला प्रतिवर्ष 14 नवम्बर से 24 नवम्बर के आस पास तक होता है।
यहाँ व्यापारी अपने-अपने देश के स्थानीय उत्पाद, हस्तशिल्प, ऊनी कपड़े, जड़ी-बूटियाँ और पारंपरिक व्यंजन लेकर आते हैं। मेले का स्वरूप सामुदायिक, धार्मिक और वाणिज्यिक — तीनों होता है।
अंतरराष्ट्रीय स्वरूप और सांस्कृतिक आदान-प्रदान
1962 के बाद तिब्बती व्यापारियों की उपस्थिति घट गई, लेकिन आज भी तिब्बती उत्पाद और शिल्प दिल्ली, मेरठ और बड़े शहरों के व्यापारी लाकर मेले में बेचते हैं। मेले में नेपाल के कलाकार और व्यापारी भी प्रमुख रूप से आते हैं, जिससे यह वाकई एक अंतरराष्ट्रीय उत्सव बन जाता है।
जौलजीबी मेला का इतिहास
यह मेला 1914 में गजेंद्र बहादुर पाल द्वारा आरंभ किया गया था। 1974 तक पाल वंश के संरक्षण में चला, और 1975 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे अपने संरक्षण में ले लिया और मेले की शुरुआत 14 नवंबर (जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन) से करने का निर्णय लिया। 2007 के बाद मेले का आयोजन उत्तराखण्ड के पर्यटन व संस्कृति विभाग द्वारा होता है।
मेला की खासियतें –
- स्थानीय उत्पाद: ऊनी वस्त्र, रिंगाल के सामान, पारंपरिक आभूषण, जड़ी-बूटियाँ।
- लोककला और लोकगीत: कुमाऊँ-गढ़वाल और नेपाल के लोक कलाकार प्रस्तुत करते हैं।
- पशु मेला: बैल, घोड़े और अन्य पशुओं का व्यापार।
- खाद्य संस्कृति: पहाड़ी व्यंजन—स्थानीय स्वाद का आनंद लें।
- नदी संगम का दृश्य: काली, गोरी और सरयू का पवित्र मिलन।
कैसे पहुंचे — ट्रैवल गाइड
निकटतम रेलवे स्टेशन: काठगोदाम (हल्द्वानी)।
निकटतम हवाईअड्डा: पंतनगर, पिथौरागढ़
सड़क मार्ग: हल्द्वानी/टनकपुर से पिथौरागढ़ तक बस/टैक्सी; पिथौरागढ़ से जौलजीबी लगभग 68 किमी।
ट्रैवल टिप: पहाड़ी रास्तों पर सावधानी रखें, बारिश/धुंध के दौरान समय योजना लचीली रखें और स्थानीय होमस्टे या लॉज पहले से बुक कर लें।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
संगम स्थल पौराणिक महत्व रखता है — मेले के दौरान लोग संगम स्नान करते हैं और विविध धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं। जागरण, भजन-कीर्तन और लोक पूजा मेले का हिस्सा होते हैं।
उपसंहार –
अगर आप लोक संस्कृति, पर्वतीय जीवन और हस्तशिल्प का असली अनुभव लेना चाहते हैं तो 14 नवंबर — 24 नवंबर 2025 के बीच जौलजीबी मेला अवश्य जाएँ। यह मेला व्यापार, संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता का अद्वितीय मेल है।
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