उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में , श्रावणी पूर्णिमा के दिन , जनयु पुनयु या जनेऊ पूर्णिमा नामक लोकपर्व मनाया जाता है। जैसे कि पहले ही विदित है, उत्तराखंड के लोक पर्व कुछ खास होते हैं, उत्तराखंड के लोक पर्व आपसी प्रेम सौहार्द,एकता और प्रकृति की रक्षा के प्रतीक होते हैं।
रक्षाबंधन जनेऊ पूर्णिमा भी उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में आपसी एकता और प्रेम सौहार्द्र के प्रतीक, के रूप में मनाई जाती है। जन्यू पुन्यु त्यौहार के दिन पुरानी जनेउ त्याग कर नई जनेउ धारण करते हैं। पुरोहित अपने यजमानों को सामूहिक रूप से जनेउ धारण करवाते हैं। जनयु पुनयु के कुछ दिन पहले ही पंडित जी अपने यजमानों तक जनेउ पहुचा देते हैं।या उसी दिन लेकर जाते हैं।
जनयु पुनयु के दिन गाँव के सारे पुरुष नौले या प्राकृतिक जल स्रोत पर इक्कठा होते हैं, तत्पश्चात वहाँ पुरोहित आकर स्नान के पश्चात सभी को, मंत्रोच्चार के साथ जनेउ बदलवाते हैं। मोली बांधते है।
उसके बाद गाव में आकर , गाँव की सभी महिलाओं और बच्चों को भी , रक्षा धागा बाँधा जाता है। उस समय पुरोहित ” एनबद्धोबलीराजा दानवेन्द्रों महाबल:, तेनत्वाम् अपिबंधनामि रक्षे मांचल मांचल:” के मंत्रोच्चारण के साथ ,परमात्मा से समस्त संसार की रक्षा की रक्षा की प्राथना करते हैं।

कुमाऊँ में रक्षाबंधन जनेऊ पूर्णिमा के दिन ,विभिन्न प्रकार के पकवान बनते हैं। जिनमे – पूड़ी , मौसमी सब्जी , दाल बड़े, पूवे , लाल चावल की खीर , पहाड़ी रायता , दाल चावल आदि प्रमुखता से बनते हैं। उत्तराखंड के सभी लोक पर्वों की तरह गाव में इस दिन एक दूसरे को ,दूध दही उपहार में देते हैं।
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पहाड़ों में पहले आमा-बुबु लोग रक्षाबंधन नही पहचानते थे, वे जानते थे केवल जन्यू -पुनयु को । जन्यू पुनयु ही पहाड़ों का असली रक्षाबंधन होता था। और राखी के नाम पर कलावा और एक काली और चमकदार रंग की राखी मिलती थी , जिसे पोजी कहते थे।
कुमाऊनी परम्परा में पहले केवल पुरोहित ही सबको रक्षा धागा बांधते थे। धीरे धीरे जनजागृति ,संचार साधनों के विकास से ,लोगो को पता चला कि यह त्यौहार भाई बहिनों के प्यार के रूप में भी मनाया जाता है। तब से पुरोहित परम्परा के साथ , सनातन परंपरा के रूप में बहिनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं। इससे जनेऊ पूर्णिमा , जनयु पुनयु त्यार में और चार चांद लग गए है।
कुमाऊँ में राखी को पौजी कहा जाता है। पौजी कुमाऊँ का एक पारम्परिक हाथ मे धारण करने वाला आभूषण भी होता है।अब तो रंबरंगी राखियां , एक से एक राखियाँ आ गई है। विगत वर्षों से ,कुमाऊँ की बेटियां ऐपण राखी भी बना रही हैं। लेकिन मुझे अच्छे से याद है, पहले केवल दो प्रकार की राखी मिलती थी, पहली काली या लाल डोर पर पतली चमकीली पट्टी लगाई होती थी। और दूसरी होती थी मौली के धागे से बनी राखी। बाद बाद में फूल वाली राखी भी मिलने लगी।
वर्तमान में जानेवू पनेउ ,जन्यू पुन्यु त्यौहार पर रक्षाबंधन त्यौहार अपनी बढ़त बना रहा है, मतलब आज की वर्तमान पीढ़ी केवल रक्षाबंधन को जानती है,और अपने पारम्परिक त्यौहार जनयु पनयु को भूलने लगी है। इसका मूल कारण पलायन और अपनी परम्पराओं से न जुड़ना है। वर्तमान में कॉन्वेंट स्कूलो ,आधुनिक स्कूलों में अलग अलग शहरों में पढ़ने वाले बच्चों को अपनी, कुमाउनी और गढ़वाली भाषा ठीक से बोलनी नही आती, तो जनेउ पूर्णिमा को क्या पहचानेगे ?
अभी तो पहाड़ो में गिने चुने पुरुष रह गए हैं, और कई गांवों में पुरोहित भी बस परम्परा को पूरा करने के लिए ,जनेवू को भिजवा देते हैं। और यजमान घर पर ही नाह धो कर पहन कर परम्परा का निर्वहन कर लेते हैं।
कहने का तात्पर्य यह है,कि जनेउ पूर्णिमा , जन्यू पुन्यु त्यौहार का मूल था, आपसी एकता, प्रेम और सकारात्मक शक्ति का आवाहन के साथ अपनी परंपरा ,संस्कृति का पालन ,वो कहीं लुप्त सा हो रहा है।
लेख – बिक्रम सिंह भंडारी
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