देवभूमि दर्शन में आपका स्वागत है! आज हम उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में स्थित जाख देवता (Jakh Devta Uttarakhand) के बारे में विस्तार से जानेंगे, जो इस क्षेत्र की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, और लोक परंपराओं का एक अनुपम प्रतीक है। जाख देवता की पूजा गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में सदियों से चली आ रही है, और इनके मंदिरों में आयोजित होने वाले मेले (जाख मेला) भक्तों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
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जाख देवता: एक परिचय
जाख देवता उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल, विशेष रूप से टिहरी जनपद के जौनपुर विकासखंड में सबसे अधिक पूजनीय देवताओं में से एक हैं। इनके प्रमुख मंदिर जौनपुर के कांडा गांव में स्थित हैं, जिसे “कांडा जाख” के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को क्षेत्र की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र माना जाता है, हालांकि इसके मूल आधार के बारे में लोग पूरी तरह अनभिज्ञ हैं, जिसके कारण कई जनश्रुतियाँ और कथाएँ प्रचलित हैं। जाख देवता की पूजा में यक्षों (प्राचीन हिमालयी देवताओं) का महत्वपूर्ण स्थान है, और यह परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है।
वर्ष में एक बार वैशाखी के अवसर पर कांडा जाख मंदिर में भव्य मेला (थौलू) आयोजित होता है, जिसमें जाख देवता को पारंपरिक ढंग से नचाया जाता है। यह उत्सव न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि क्षेत्र की एकता और सांस्कृतिक विविधता को भी दर्शाता है।
जाख देवता का इतिहास: पौराणिक और सांस्कृतिक जड़ें –
जाख देवता का इतिहास – हिमालयी क्षेत्रों की प्राचीन यक्ष पूजा से जुड़ा है। पौराणिक और बौद्ध साहित्य में यक्षों का उल्लेख मिलता है, जो प्रकृति और मानव जीवन के संरक्षक माने जाते थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि जाख देवता शिव के एक रूप हैं, जैसा कि एक प्राचीन स्तोत्र में वर्णित है:-
यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै यकाराय नमः शिवाय ॥
इसका अर्थ है कि शिव को यक्ष रूप में पूजा जाता है, जो जाख देवता की उत्पत्ति को शिव से जोड़ता है। गढ़वाल मंडल में यक्ष पूजा की परंपरा कुमाऊं की तुलना में अधिक प्रचलित है, विशेष रूप से चमोली जनपद में, जहां बदरीनाथ-केदारनाथ के बाद जाख देवता की मान्यता सर्वोच्च है।
चमोली के विभिन्न गांवों जैसे कुजा, डुमक, उरगम, कण्डाली, और नारायणकोटी में जाख देवता के मंदिर स्थापित हैं। डुमक गांव के जाख देवता को रुद्रनाथ (शिव) का मंत्री माना जाता है, जबकि तपोण गांव में यह देवता स्वयं अपने मंदिर से बाहर निकलता है। जनश्रुति है कि एक पशुचारक के बोझे में लिंग रूप में यह देवता आया और स्वप्न में प्राप्त आदेश पर स्थापित किया गया। इस तरह, जाख देवता की उत्पत्ति और प्रसिद्धि प्राचीन काल से चली आ रही है।
जाख मेला: एक अनूठी परंपरा –
जाख मेला (Jakh Mela Uttarakhand) जाख देवता की पूजा का सबसे बड़ा उत्सव है, जो वैशाखी के दौरान आयोजित होता है। यह मेला गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है, जो क्षेत्रीय एकता और विविधता को दर्शाता है। शुरू में, कांडा, लगडासू, और कोल्टी गांवों में सामूहिक रूप से थौलू (मेला) आयोजित होता था, जिसमें जाख देवता का डोला इन तीनों गांवों में घुमाया जाता था। लेकिन एक पारस्परिक विवाद के बाद अब यह अलग-अलग दिनों में होता है:
- लगडासू: 13 अप्रैल
- कांडा: 14 अप्रैल
- कोल्टी: 15 अप्रैल
2025 में भी यह मेला इन तिथियों के आसपास आयोजित होने की संभावना है, जो भक्तों और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण होगा। मेले में जाख देवता को नचाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसमें पश्वा (देवता के अवतरण वाला व्यक्ति) चमत्कारी शक्तियों का प्रदर्शन करता है।
रुद्रप्रयाग का जाख मेला –
रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी क्षेत्र में देवशाल गांव में स्थित जाख देवता मंदिर में बैशाख मास, कृष्ण पक्ष, नवमी तिथि को भव्य जाख मेला आयोजित होता है। यह मेला चौदह गांवों के लोगों द्वारा संयुक्त रूप से मनाया जाता है। मेले की तैयारी दो दिन पहले शुरू हो जाती है, जब ग्रामीण भक्ति भाव से लकड़ियाँ, पूजा सामग्री, और खाद्य सामग्री एकत्र करते हैं। एक विशाल अग्निकुंड बनाया जाता है, जिसमें लगभग 100 कुंतल लकड़ियाँ डाली जाती हैं, जो 10 फुट ऊंचा ढेर बनाती हैं।
वैशाखी की रात को अग्निकुंड में आग प्रज्वलित की जाती है, और रात भर नारायणकोटि और कोठेड़ा के ग्रामीण इसकी देखभाल करते हैं। अगले दिन दोपहर में जाख देवता का पश्वा मंदाकिनी नदी में स्नान करता है और ढोल-दमऊ की मधुर धुनों के साथ नारायणकोटि, कोठेड़ा, और देवशाल से होकर जाख धार पहुँचता है। वहाँ, पश्वा अग्निकुंड में नंगे पाँव नृत्य करता है, जो एक चमत्कारी दृश्य प्रस्तुत करता है। इस अग्नि स्नान के बाद पश्वा शीतल जल से स्नान करता है और भक्तों को पुष्प वितरित करता है। मेले का समापन अग्निकुंड की भभूत को प्रसाद के रूप में लेने के साथ होता है।
जाख देवता की चमत्कारी शक्तियाँ –
जाख देवता को चमत्कारी शक्तियों का भंडार माना जाता है, जो उनकी पूजा को और भी रोचक बनाता है। चमोली के तपोण गांव में, हर 6-7 वर्षों में जाख देवता का पश्वा मंदिर से बाहर निकलता है, और पुजारी मुंह पर कपड़ा बांधकर अपवित्रता से बचते हैं। इसी तरह, नारायणकोटि में पश्वा नौ महीने की यात्रा पर निकलता है, और ग्रामीण लाठियाँ लेकर उसे अगले गांव तक ले जाते हैं।
एक अन्य आश्चर्यजनक परंपरा में, विषुवत संक्रांति के उत्सव से पाँच दिन पहले सौ लोग वृक्षों को काटकर अंगार एकत्र करते हैं। उत्सव के दिन पश्वा इन जलते हुए अंगारों पर नृत्य करता है, और उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसी तरह, भटवाड़ी के रथैल में यक्षिणी देवी सहजा के जागर में पश्वा खौलते तेल से पकौड़े निकालता है, बिना किसी क्षति के। ये चमत्कार भक्तों की श्रद्धा को बढ़ाते हैं।
अन्य पूजास्थल और परंपराएँ –
चमोली जनपद के अलावा, जाख देवता के मंदिर नारायणकोटि, कोठेड़ा, और जखधार में भी हैं। कोठेड़ा के मंदिर में ध्यानमुद्रा में पुरुषाकार मूर्ति स्थापित है, और यहाँ सौर संक्रांति, अमावस्या, मंगलवार, और शनिवार को विशेष पूजा होती है। पूजा में पीला चंदन, पीला अक्षत, रोट, और सफेद बकरे की बलि दी जाती है। नारायणकोटि के जाख देवता को पीली वस्तुएं प्रिय हैं, और इनकी यात्रा में ग्रामीणों का सहयोग अनिवार्य है।
जाख देवता की सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता –
जाख देवता की पूजा न केवल धार्मिक विश्वास का हिस्सा है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करती है। यह उत्सव ग्रामीण समुदायों को एकजुट करता है और पर्यटन को बढ़ावा देता है। अग्नि पर नृत्य और चमत्कारी शक्तियों की परंपराएँ इस क्षेत्र की अनूठी धरोहर हैं।
2025 में, वैशाखी (13-15 अप्रैल) के दौरान होने वाला जाख मेला पर्यटन विभाग द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। इस दौरान विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रमों और सुरक्षा व्यवस्थाओं की योजना है, जो भक्तों और पर्यटकों के लिए सुविधाजनक होगी।
जाख मेला 2025: क्या अपेक्षा करें-
9 अप्रैल 2025 को वैशाखी की शुरुआत के साथ जाख मेला की तैयारियाँ जोरों पर होंगी। कांडा, लगडासू, और कोल्टी में अलग-अलग तिथियों पर होने वाले मेले में हजारों भक्त और पर्यटक भाग लेंगे। रुद्रप्रयाग के देवशाल में अग्निकुंड का निर्माण और पश्वा का नृत्य मुख्य आकर्षण होंगे। द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय कला को बढ़ावा देने के लिए विशेष पहल की जाएगी।
निष्कर्ष –
जाख देवता उत्तराखंड गढ़वाल की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक हैं। इनकी पूजा और जाख मेला न केवल धार्मिक आस्था का हिस्सा हैं, बल्कि पर्यटन और सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देते हैं। 2025 में होने वाला यह उत्सव भक्तों और पर्यटकों के लिए एक यादगार अनुभव होगा। क्या आप इस मेले में भाग लेने की योजना बना रहे हैं? अपनी राय कमेंट में साझा करें और जाख देवता की जानकारी के लिए हमारे ब्लॉग को फॉलो करें!
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