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घ्वीड़ संक्रांति या घोल्ड संक्रांति –
उत्तराखंड परम्पराओं और त्योहारों का प्रदेश है। यहाँ हर सकारात्मक ऊर्जा देने वाली या सकारात्मक ज्ञान देने वाली चीजों को पूजा जाता है। इसीलिए इसको देवभूमि कहते हैं। उत्तराखंड में संक्रांति का विशेष महत्व है। लगभग हर संक्रांति को कुछ ना कुछ त्योहार होता है। संक्रांति को स्थानीय भाषा मे संग्रात भी कहते हैं।
साधारण शब्दो मे कहा जाय तो, उत्तराखंड में त्योहार को संग्रात कहते हैं। मित्रो आज हम आपको उत्तराखंड के गढ़वाल का लोक पर्व घ्वीड़ संक्रांति ,घोल्ड संक्रांति , घोल्ड त्योहार बारे में संशिप्त जानकारी देने की कोशिश करेंगे। यह त्यौहार जेष्ठ माह की वृष संक्रांति के दिन मनाया जाता है।
उत्तराखंड गढ़वाल का लोक पर्व घ्वीड़ संक्रांति , घोल्ड संक्रांति ,घोलड संक्रांति या घोरड़ संक्रांति के नामों से मनाया जाने वाला त्योहार ,ज्येष्ठ मास की वृष संक्रांति 14 या 15 मई को मनाया जाता है। यह त्योहार भी उत्तराखंड के अन्य लोक त्योहारों की तरह प्रकृति को समर्पित है। घवीड संक्रांति के दिन गढ़वाल में नए अनाज (रवि की फसल, गेंहू और मसूर ) के घवीड बनाये जाते हैं। और अपने पितरों और कुल देवताओं को चढ़ा कर ,और बच्चों को खेलने एवं खाने देते हैं।
गढ़वाल में नयी फसल का पहला हिस्सा देवो को अर्पित किया जाता है –
सरल शब्दों में कहें तो, जेष्ठ वृष संक्रांति के दिन नई फसल का पहला भोग , पितरों एवं देवताओं को चढ़ा कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। तथा एक विशिष्ट पकवान को घविड (जंगली भेड़ ) के रूप में बनाया जाता है। जिसे बच्चे खेलते हैं । माला बनाते हैं, खेलते हैं और उसे किंगोड़ा ( किलमोड़ा ) की लकड़ी की तलवार से मारने का खेल करते हैं। (गढ़वाल का लोक पर्व )
उत्तराखंड में वृष संक्रांति के दिन नए अनाज के आटे को गुड़ के पाक मिला कर गूथ लिया जाता है। फिर उसको घ्वीड़ ( पहाड़ी भेड़, जंगली भेड़ ) के आकार में बना लिया जाता है। फिर उसको नई फसल की दाल मसूर की आँखे लगा दी जाती है। फिर उन घिव्ड, घवीड को गर्म सरसों के तेल में तल लेते हैं।
यह प्रक्रिया ठीक कुमाऊँ के घुगुति बनाने जैसी है। जो कि मकर संक्रांति के दिन बनाये जाते हैं छोटे बच्चे बड़े उत्त्साह के साथ किंगोड़ा कि लकड़ी की तलवारें बनवाते हैं। फिर उससे घ्वीड को काटते हैं। उससे खेलेते हैै।
घ्वीड़ संक्रांति ,घोल्ड संक्रांति ,घोल्ड त्योहार के दिन घवीड के साथ अन्य पकवान भी बनते हैं। जैसे पूरी कचोरी आदि, फूलदेई, फुलारी के बचे हुए चावलो से पापड़ी भी बनाई जाती है।
घ्वीड़ संक्रांति , घोल्ड संक्रांति नए अनाज का देवताओं और पितरों को चढ़ा कर उनका आशीर्वाद लेने का त्योहार हैं।
निवेदन –
उत्तराखंड लोक त्योहारों का और परम्पराओं का प्रदेश है। यहाँ की परम्पराएं और त्योहार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति से जुड़ी है। प्रकृति से प्रेम , प्रकृति की रक्षा और प्रकृति का संवर्धन हमारी परंपराओं और त्योहारों में साफ झलकता है। मगर वर्तमान में हम पलायन और आधुनिकता की दौड़ में और दूसरी परम्पराओं को अपनाने के चक्कर मे अपनी प्रकृति प्रेमी स्वरूप और अपनी परम्पराओं को भूल रहे हैं।
अपनी प्रकृति देवी से बिमुख हो रहे हैं।और यही कारण है, प्रकृति हमसे दूर हो रही है,रुष्ट हो रही है।और हम कोरोना जैसी बीमारियों और बादल फटने जैसी आपदाओं से ग्रसित हो रहे हैं।
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इन्हें भी देखें –
उत्तरकाशी का शक्ति मंदिर जहां आदि शक्ति मां भगवती निवास करती है,एक दिव्य त्रिशूल में ।