उत्तराखंड की लोक संस्कृति जितनी विविध और सुंदर है, उतनी ही गहराई उसमें छिपे अनुष्ठानों और आस्थाओं में भी है। पर्वतीय जीवन की आत्मा पानी, मिट्टी और देवत्व से जुड़ी है। इन्हीं जीवनदायिनी तत्वों में से एक है धारापूजन, जो विवाह संस्कार के बाद किया जाने वाला एक लौकिक (सांसारिक) अनुष्ठान है। यह न केवल जल के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है, बल्कि नवविवाहिता के नए जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और निरंतरता का शुभ संकेत भी है।
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धारापूजन क्या है ? | What is dhara pujan ?
धारापूजन (धारा पूजन) उत्तराखंड की एक प्राचीन और भावनात्मक लोक परंपरा है, जो नवविवाहिता स्त्री के ससुराल आगमन के बाद सम्पन्न की जाती है। जब दुल्हन विवाह के बाद पहली बार अपने ससुराल पहुँचती है, तो वह या तो उसी दिन अथवा अगले दिन प्रातःकाल गांव की कन्याओं और कुछ सौभाग्यवती महिलाओं के साथ गांव के जलस्रोत — जैसे नौला, धारा, या गूल (कृत्रिम जलधारा) — की ओर जाती है।
वहां पहुँचकर वे महिलाएं जलदेवता की पूजा करती हैं। पूजा में रोली, अक्षत (चावल), पुष्प और दीपक का प्रयोग किया जाता है। इस पूजा को “धारापूजन” कहा जाता है, जिसमें नववधू अपने ससुराल के जलदेवता से चिर-सौभाग्य, गृहस्थ सुख और संतान की कामना करती है।
पूजा की विधि | dhara pujan Vidhi
धारा पूजन का अनुष्ठान अत्यंत सादगीपूर्ण किंतु भावनात्मक होता है। इसकी प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है —
1. सुबह का शुभ मुहूर्त
नवविवाहिता दुल्हन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनती है। साथ में गांव की कन्याएँ और विवाहित महिलाएं भी पारंपरिक वस्त्रों में सजती हैं।
2. जलस्रोत की ओर प्रस्थान
समूह गीत गाते हुए, हाथों में पूजा की थाली लिए महिलाएं गांव की धारा या नौला की ओर जाती हैं।
3. धारा की पूजा
पहले वे धारा के आसपास की जगह को गोबर से लीपकर पवित्र करती हैं। फिर उस पर ऐपण (Alpana) बनाया जाता है — जो शुभता का प्रतीक है। इसके बाद रोली, चावल, पुष्प, दीपक और जल अर्पित किए जाते हैं। महिलाएं सामूहिक रूप से जलदेवी की स्तुति करती हैं।
स्यौ पूजा माई सीता देई,
स्यौ पूजा माई उरमिणी।
जनम-जनम ऐवन्ती सेवा,
पिंहला ऐंपण थापि सेवा।स्यौ पूजा माई सुन्दरी-मन्जरी,
जनम-जनम पुत्रवन्ती सेवा।
हरिया गोबर लीपी सेवा,
पिंहली ऐंपण थापी सेवा।
यह गीत न केवल जलदेवी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है, बल्कि नववधू के लिए सौभाग्य, दीर्घायु और संतति की मंगलकामना भी करता है।
4. जल का प्रसाद लाना
पूजा के बाद नवविवाहिता एक पात्र में जल भरकर उसे अपने सिर पर रखती है और गीत गाती हुई घर लौटती है। यह जल वह अपने ससुराल के बड़ों, इष्ट-मित्रों को पिलाती है और उनसे आशीर्वाद लेती है।
धारा पूजन का अर्थ और प्रतीकात्मकता
धारापूजन मात्र जलदेवता की पूजा नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव के पारस्परिक संबंध का उत्सव है। इसमें निम्न प्रतीकात्मक अर्थ निहित हैं —
1. जल का पवित्र महत्व
पहाड़ों के गांवों में नौला और धारा ही जीवन के प्रमुख स्रोत थे। लोग जल को “देवता” का रूप मानते थे क्योंकि वही जीवन देता है। इसलिए विवाह जैसे नए जीवन आरंभ के अवसर पर सबसे पहले उसी को प्रणाम किया जाता है।
2. नवविवाहिता का ग्रह-प्रवेश संस्कार
जैसे वर-वधू का सात फेरे विवाह को पूर्ण करते हैं, वैसे ही धारापूजन नववधू के गृहस्थ जीवन का प्रथम संस्कार होता है। यह दर्शाता है कि वह अब अपने नए घर, नए गांव और उसकी प्रकृति से जुड़ चुकी है।
3. सौभाग्य और संतान की कामना
गीतों में बार-बार आने वाली पंक्तियाँ — “जनम-जनम ऐवन्ती सेवा, जनम-जनम पुत्रवन्ती सेवा” — स्त्री के लिए निरंतर सौभाग्य, सुख और मातृत्व की प्रार्थना का प्रतीक हैं।
4. पर्यावरणीय दृष्टि से संदेश
यह अनुष्ठान प्रकृति संरक्षण का लोक संदेश भी देता है — क्योंकि जो समाज अपने जल स्रोतों की पूजा करता है, वह उन्हें कभी नष्ट नहीं करता। यह परंपरा जल-संवर्धन और जल-संरक्षण की लोक चेतना को बनाए रखती है।
उत्तराखंड के विभिन्न अंचलों में धारापूजन
उत्तराखंड के लगभग सभी हिस्सों में यह परंपरा किसी न किसी रूप में जीवित है —
कुमाऊँ क्षेत्र
यहां इसे “धार पूजन” या “नौला पूजन” कहा जाता है। महिलाएं पीली ऐपण बनाकर पूजा करती हैं और जल को “जीवन जल” कहती हैं।
गढ़वाल क्षेत्र
यहां दुल्हन जलदेवी को ‘धारा माई’ कहकर आशीर्वाद मांगती है। पूजा के बाद घर में प्रवेश करने से पहले वह अपने आंगन में जल छिड़कती है।
जौनसार-बावर और रंवाई क्षेत्र
इन इलाकों में जलदेवता को “गूल देवता” कहा जाता है। जल के साथ मिट्टी और तुलसी पत्ते का भी पूजन किया जाता है।
लोक गीतों और स्त्रियों की भूमिका
धारापूजन का सबसे सुंदर पक्ष है — लोकगीत और स्त्रियों का सामूहिक उत्सवभाव। जब महिलाएं समूह में जलदेवी के गीत गाती हैं, तो उसमें लोकसंगीत, भक्ति और स्त्री-अनुभव का अद्भुत संगम होता है। गीतों की पंक्तियाँ जैसे —
एक जो माँगें मैं सईयां को राज,
दूजू माँगूँ लला को काज…
नवविवाहिता की सरल किन्तु गहन भावनाओं को व्यक्त करती हैं — पति का स्नेह और संतान का सुख।
लोकजीवन में धारापूजन का सांस्कृतिक महत्व
धारापूजन का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह लोक जीवन की जड़ों से जुड़ा अनुष्ठान है। इससे समाज के तीन मूल स्तंभ झलकते हैं —
- प्रकृति के प्रति आभार
- सामुदायिक सहभागिता
- स्त्री की सृजनशील भूमिका
यह परंपरा यह भी सिखाती है कि संस्कार सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय भी हैं।
आज के समय में धारापूजन का प्रासंगिक संदेश
आज जब नदियाँ, झरने और पारंपरिक जल स्रोत सूख रहे हैं, धारापूजन हमें यह याद दिलाता है कि पानी केवल संसाधन नहीं, जीवन है। नवविवाहिता द्वारा किया गया यह पूजन केवल पारंपरिक रिवाज नहीं, बल्कि एक पर्यावरणीय शपथ है — कि हम जल का सम्मान करेंगे, उसकी रक्षा करेंगे और उसे स्वच्छ रखेंगे।
निष्कर्ष
धारापूजन उत्तराखंड की जीवंत लोक परंपराओं में से एक है — जहां जल को देवत्व, स्त्री को सृजन और प्रकृति को जीवन माना गया है। यह अनुष्ठान न केवल नवविवाहिता के लिए शुभता और सौभाग्य का प्रतीक है, बल्कि यह भी बताता है कि हमारे पूर्वजों ने जल की पूजा करके पर्यावरण को धर्म का हिस्सा बनाया।
धारापूजन की यही सीख आज भी हमें प्रेरित करती है — कि यदि हम अपने जल, जंगल और जमीन की पूजा करना सीख लें, तो हमारे जीवन में सदैव समृद्धि और सौभाग्य बना रहेगा।
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