Home मंदिर तीर्थ स्थल भीमताल का छोटा कैलाश ,जहा से शिव ने देखा राम -रावण युद्ध।

भीमताल का छोटा कैलाश ,जहा से शिव ने देखा राम -रावण युद्ध।

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chota kailash bhimtal

उत्तराखंड के नैनीताल जिले के भीमताल ब्लॉक में भगवान् शिव का एक देवालय है। इस मंदिर को छोटा कैलाश कहते हैं। वैसे तो पूरा उत्तराखंड ,पूरा हिमालयी क्षेत्र भगवान भोलेनाथ का घर है। लेकिन पहाड़ों में कुछ स्थान ऐसे हैं जिनका भगवान शिव के साथ खास जुड़ाव है। उनमे से एक खास स्थान भीमताल का छोटा कैलाश धाम है।

खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है छोटा कैलाश भीमताल पहुंचने के लिए –

छोटा कैलाश के नाम से प्रसिद्ध यह तीर्थ नैनीताल जिले में बहुत ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ पहुंचने के लिए हल्द्वानी से अमृतपुर होते हुए पिनरो गांव पहुंचना होता है। पिनरो गांव से शुरू होती है लगभग ३-४ किलोमीटर की खड़ी चढाई। ये चढ़ाई पूरी करने के बाद आता है प्राचीन शिव मंदिर जो इस पहाड़ी के टॉप पर स्थित है।

यहाँ पहुंचने के लिए भवाली से भीमताल जंगलिया गांव से भी है। यह मंदिर जिस पहाड़ी पर बना है वो पहाड़ी अन्य पहाड़ियों से ऊँची है। छोटा कैलाश भीमताल का सफर एक यादगार सफर होता है। पहाड़ी पर चढ़ते समय सर्पाकार टेढ़े -मेढ़े मार्गो पर उचाई में चलना अपने आप में आनंददायक अनुभव होता है।छोटा कैलाश धाम से चारों ओर का दृश्य बड़ा ही मनभावन दिखता है।

धार्मिक मान्यता एवं पौराणिक कथा –

छोटा कैलाश धाम भीमताल अपने धार्मिक और पौराणिक महत्त्व के लिए विश्व विख्यात है। कहते हैं यहाँ सतयुग से अखंड धूनी जल रही है। यह अखंड धुनि जलने का कारण बताते हैं कि, भगवान् भोलेनाथ और माता पार्वती ने सतयुग में यहाँ एक दिन बिताया था।  कहते है यह स्थान भगवान शिव का प्रिय स्थानों में से एक है।

भगवान् शिव सतयुग में ही नहीं बल्कि हर युग में निवास हेतु यहाँ आते रहते हैं। इसलिए इसे छोटा कैलाश धाम भी कहते हैं। पौराणिक गाथाओं में बताते हैं कि त्रेता युग में जब भगवान् राम और रावण का युद्ध चल रहा था ,तब भगवान् शिव ने यहीं बैठकर राम -रावण का युद्ध देखा था। इसके अलावा बताते हैं कि द्वापर युग में पांडव भाई भी यहाँ आये थे।

भीमताल का छोटा कैलाश ,जहा से शिव ने देखा राम -रावण युद्ध।
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शिवरात्रि का विशेष महत्व है छोटा कैलाश भीमताल में –

सावन और माघ के महीने में यहाँ भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है। क्योकि ये दोनों महीने भगवान् शिव के प्रिय महीने हैं। इसके अलावा यहाँ भगवान् शिव के प्रिय त्योहार महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। शिवरात्रि के दिन छोटा कैलाश में बहुत बड़ा मेला लगता है। शिवरात्रि के दिन श्रद्धालु यहाँ दूर -दूर से आकर पूजा -अर्चना करते हैं।

महाशिवरात्रि की रात को कई श्रद्धालु यहाँ रात को जागरण करते हैं। इसके अलावा कई श्रद्धालु सतयुगी अखंड धुनि के सामने हाथ बांधकर रात भर खड़े होकर भगवान शिव से वर मांगते हैं। जिसके हाथ खुल जाएँ तो उसे धूनी के आगे से हटा दिया जाता है। मान्यता है कि यहाँ शिवलिंग की पूजा करके ,वरदान मांगने वाले की इच्छा अवश्य पूरी होती है। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त यहाँ चांदी का छत्र चढ़ाते हैं।

छोटा कैलाश भीमताल कैसे पहुंचे –

भीमताल के इस प्रसिद्ध शिवधाम पहुंचने के लिए आपको सर्वप्रथम हल्द्वानी आना होगा। हल्द्वानी रेल ,सड़क एवं  वायुमार्ग से भलीभांति जुड़ा है। हल्द्वानी से आगे रानीबाग से होते हुए भीमताल के अमृतपुर गांव पहुंचकर वहां से पहाड़ी रास्ता पकड़कर अंतिम गांव पिनरो पंहुचा जा सकता है। पिनरो गांव से एक खड़ी चढ़ाई वाली पगडण्डी शुरू होती है ,जो टेड़े -मेढे सर्पाकार खड़ी चढ़ाई में चढ़ाते हुए शिवधाम छोटा कैलाश पहुँचाती है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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