Sunday, November 17, 2024
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उत्तराखंड के वीर भड़ गढ़ू सुम्याल की वीर गाथा, गढ़वाल में जिसकी वीर गाथा के पवाड़े गाये जाते हैं।

“उत्तराखंड में एक से बढ़कर एक वीर भड़ो ने समय -समय पर जन्म लेकर इस पवित्र देवभूमि को गौरवान्वित किया है। इन्ही महान वीर भड़ो में से वीर भड़ गढ़ू सुम्याल की वीर गाथा का संकलन कर रहें हैं। यह लोकगाथा प्रेम ,त्याग ,वीरता ,साहस और षङयन्त्र से युक्त है। गढ़वाल में गढू सुम्याल के पवाड़े गाये जाते हैं। पवाड़े गढ़वाल मंडल में किसी वीर योद्धा अथवा देवता के जीवन से जुड़ी अलौकिक और अद्भुद पराक्रम से सम्बंधित गाथा गीतों को पवाड़े कहा जाता है।”

वीर भड़ गढ़ू सुम्याल की वीर गाथा

उत्तराखंड के वीर भड़ गढ़ू सुम्याल का जन्म लगभग सन् 1365 ई० में तत्कालीन गढ़वाल – राज्य की दक्षिण-पूर्वी सीमा पर स्थित ” तल्लि खिमसरि हाट” में हुवा था। इनके पिता का नाम श्री ऊदी सुमयाल और माता का नाम श्रीमती कुंजावती देवी था। गढ़ू सुम्याल के जन्म से कुछ माह पहले इनके पिता श्री ऊदी सुमयाल का निधन हो गया था । इनके खिमसरि हाट के पास ‘रुद्रपुर’ नामक स्थान के मलिक रुदी सुम्याल गढ़ू सुम्याल के पिता ऊदी सुम्याल के चचेरे भाई थे।रूदी सुम्याल, ऊदी सुम्याल से मन ही बैर रखते थे। एक बार की बात है, माल की दून क्षेत्र के लोगों ने बहुत समय से कर नही दिया था। कर उगाही के लिए दोनो भाई  रुदी सुम्याल और ऊदी सुम्याल माल की दून गए। उन्होंने वीरता का प्रदर्शन  करते हुए माल की दून में कर उगाही की । बहुत सारी खाद्य सामग्री, धनराशी लगान के रूपमें प्राप्त की। माल की दून की विजय के बाद जब सारा सामान लेकर नौकर-चाकरों के साथ दोनो भाई वापस आ रहे थे, तो बड़े भाई रूदी सुम्याल के मन में पाप आ गया।

उसने चालाकी दिखाते हुए सारा राशन, पैसा, नौकर सब अपने गाँव भिजवा दी । जब एक पुरानी पनचक्की के पास ऊदी भोजन करके विश्राम कर रहे थे, तब रूदी सुम्याल ने मौका पाकर, धोके से चक्की के पत्थर से ऊदी सुम्याल की हत्या कर दी। और तल्ली खिमसार हाट जाकर उसने यह बात फैला दी कि, उदी सुम्याल ‘माल युद्ध में मारा गया है। यह खबर सुनते ही उदी की माता व पत्नी शोक-बिह्वल हो गई। किन्तु उसी समय कुंजावती देवी गर्भवती थी! भावी सन्तान को जीवन देने के इरादें से उन्होंने जीने की ठानी।

अब स्थिती यह थी कि रुदी सुम्याल के पास अन्न, धन की कोठरियां भरी हुई थी। गाय-भैसों के गुठयार भरे थे। और ऊदी सुम्याल की नौ खम्ब की तिबरी में मक्खियां भिन – भिना रही थी। खाने को अन्न नही था। उनके परिवार की दयनीय हालत हो रही थी। ऐसी परिस्थितियों में गढ़ू सुम्याल का जन्म हुवा । गढ़ू सुम्याल में बचपन से ही भड़ो वाले गुण थे। सुडौल शरीर का स्वामी गड़ू दिखने में चाँद की तरह सुन्दर था । और गजब का साहस और तेजी थी उसमे। माँ कुंजावती ने भी उसे शास्त्र चालन की शिक्षा और वीरगाथाएं सुनाकर और मजबूत बना दिया था।

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एक दिन गढ़ू सुम्याल खेलते-खेलते जंगल में चले गए। वहा उनका सामना बाघ से हुवा। इन्होंने बाघ की दोनो भुजाएं पकड़ कर उसके नाक मे नकेल डाल कर माँ के सामने ले आए। फिर माँ के कहने पर उस बाघ को छोड़ दिया। इस प्रकार वीर भड़ गढू की वीरता का यशोगान दिन प्रतिदिन चारों ओर फैल रहा था। एक बार तल्ली खिमसारी हाट में भयंकर अकाल पड़ गया। इनकी दादी का निधन हो गया और इनके खाने-पीने के बुरे हाल हो गए। एक दिन इनकी माता ने कहा, जाओ अपने ताऊ जी से छास मांगकर लाओ। उनके पास बारह बीसी भैसी हैं।  अर्थात 220 भैस हैं। गढ़ु सुम्याल अपने ताऊ के पास गया उसने छास मांगी तो,रुदी सुम्याल उससे पहले ही जला-भुना था, उसने गुस्से से बोला, लाख रूपये ला और भैसी ले जा! गढ़ु उदास होकर घर आ गया। घर में उसकी माँ ने उसे एक लाख रुपयों से भरा तुंगेला दिया ,जिसे उसके पिताजी छुपा के गए थे।

लाख रुपयों से भरा तंगेला लेकर वीर भड़ गढ़ु सुम्याल अपने ताऊ के पास गया,ताऊ ने उसे लाख रूपये में केवल एक भैस दी। और घर आकर माँ से पता चला की वो भी बांज भैसी थी। गढ़ु सुम्याल को बहुत क्रोध आया। वे चुपचाप जंगल गए और ताऊ की छानी के नजदीक भैस की छानी बनाई। और रात को अपने ताऊ की बारह बीसी यानि 220 भैसों को खोलकर ले आये। जब उसके ताऊ के सात बेटों को इसका पता चला तो वो ,मन मरोस कर रह गए। वीर गढ़ू सुम्याल से उलझने की हिम्मत किसी में नहीं थी।

वीर भड़ गढ़ू सुम्याल
फोटो : साभार गूगल । फोटो काल्पनिक है।

उसी  जंगल’ में इस प्रकार भैसों  के साथ रहते-रहते एक दिन इन्हें ‘बांसुरी ” बनाने की सूझी। किन्तु जैसे ही गढु सुम्याल पास  के एक जंगल -में एक “नो पोरी का बाँस” काट ही रहे.थे कि गरुड़ चन्द” के सैनिक आ गये; किंतु  इन्द्दोंने उन सैनिकों को तुरन्त यमलोक पंहुचा दिया। उसके बाद इन्होने अपनी मुरली को बजाना शुरू किया तो उसमे से बावन बाजा छत्तीस स्वर निकलने लगे। चूँकि वह स्थान वर्तमान का कुमाऊं गढ़वाल बॉर्डर था। उस समय उस स्थान से कुछ दूर पर दुप्यालि कोट की नवयुवती घास काट रही थी। उस नवयौवना का नाम था सरु कुमैण। एक बात और बता दें इस कहानी को सरूली और कुम्याल की प्रेम कथा भी कहते हैं। सरु कुमैण के रूप सौंदर्य के बारे में भक्त दर्शन लिखते हैं, हाथ नीं लियेंदी, भुयाँ नी धरेंदी, रंसकदि बाँही, छमकदि चूड़ी, जिरेलों पिडो, नौन्‍्यालो गाथा, खंखरियालो मांथो, बड़ी भरकर ज्वान। “सरूली ने जब वीर भड़ गड़ू सुम्याल की बांसुरी की धुन सुनी तो वह मोहित हो गई। और गढू सुम्याल के खरक में आ गई। इस खबर की बावत उन्होंने अपनी माँ को खबर भेजी। तब उनकी माता ने बाजे -गाजे के साथ कुछ लोगों को नव बहु को लाने भेजा। तब गढ़ु सुम्याल नव विवाहिता सरु कुमैण को धूमधाम से टल्ली खिमसारी हाट लाये।

इनकी सफलता और समृद्धि से उनका ताऊ रुदी सुम्याल और भी जल भुन गया। उसने अपने सातों बेटों और चौदह नातियों के साथ मिलकर एक प्रपंच रचा। इन्होने गढ़ु को अपने घर बुलाया और दिखावटी प्यार जताते हुए कहा, मेरे प्यारे बेटे! तुम्हारे पिता माल की दून साधने गए थे, लेकिन वहां से कभी नहीं लौटे। तुम्हे एक राजपूत होने के नाते अपने पिता का बदला लेना चाहिये ! मैं तुम्हे रास्ता बताऊंगा ! और हर तरीके से तुम्हारी मदद करूँगा। गढ़ु सुम्याल सीधे साधे थे, वे उसके बहकावे में आ गए। माता और नई बहु ने बहुत समझायाये  ,लेकिन भी प्रण ले चुके थे।  या यूँ कह सकते हैं ,इनका राजपुताना खून उबाले मारने लगा था। इन्होने सरु को समझाया, चिंता मत करों! अपना ख्याल रखना और माता की सेवा करते रहना। मैं जल्दी लौट कर आऊंगा।

घर से अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित होकर निकल गए माल की दून के लिए। लेकिन आधे रस्ते में इनके ताऊ ने भी इनके साथ छल किया! इनको गलत रास्ता बताकर, इनको घनघोर जंगल में पंहुचा दिया। वहां रास्ता ही नहीं मिला और जंगली जानवरों का अलग भय था।  लेकिन अपनी कुलदेवी के आशीर्वाद और अपनी सूझ-बुझ से, चौरसु दून पहुंच गए। और वहां अपनी शक्ति और साहस से शत्रुओं का सर्वनाश कर दिया। गढ़ु सुम्याल ने वहां से रस्याला (कर और अन्न) अपने घर के लिए भेज दिए। और खुद पूरी माल की दून साधने के विचार से वहीँ रुक गए। लेकिन इनका ताऊ यहाँ पर भी षड्यंत्र खेल गया! उसने सारा अन्न व धन रस्ते में ही झपट कर अपने घर रख लिया।

इधर इनकी माता और पत्नी को खाने की परेशानी होने लगी। क्योकि सारा सामान ताऊ ने हड़प लिया था। और रूदी सुम्याल ने तल्ली खिमसारी हाट में ये खबर फैला दी की गढ़ू सुम्याल भी अपने पिता की तरह, शत्रुओं के हाथ मारा गया है। उसने सरु को कई प्रलोभन दिए कि ,गढ़ु को भूल जाय और मेरे बड़े पुत्र से शादी कर ले। लेकिन सरु पतिव्रता स्त्री थी उसने रुदी सुम्याल को साफ मन कर दिया। फिर वो दुप्यालिकोट सरु के भाइयों को मनाने पंहुचा लेकिन सरु के भाइयों को भी उसका यह सुझाव पसंद नहीं आया। आखिर में वह सरु के मामा के गांव गया। मामा के साथ मिलकर उसने एक षडंयत्र रचा! सरु का मामा उसके घर आया और यह बोल के सरु को घर से ले गया कि अगले दिन उसे दुगने सामान के साथ वापस भेज देगा। लेकिन अगले दिन उसके मामा ने धोके से, सरु को शौका जनजाति के रूपा शौक को बेच दिया।

जब सरु को इस षङयन्त्र का पता चला तो वो घबरा गई। फिर उसने अपनी कुलदेवी को याद किया और धैर्य के साथ युक्ति निकाली, उसने शौकों को बोला कि मैंने बारह वर्ष का व्रत लिया है और मैं तब तक न तो बात कर सकती हूँ ,और न ही तुम्हारे पास रह सकती हूँ। बारह वर्षो के व्रत के आश्वाशन पर वह रूपा शौक प्रदेश चला गया। और सरु अपने पति गढ़ू सुम्याल की याद में ,अशोक वाटिका की सीता की तरह भगवान को याद करके दिन गुजारने लगी। उधर गढ़ु सुम्याल की माता को जब इस षङयन्त्र का पता चला ,तब वो पहले विक्षिप्त सी हो गई। फिर उसे होश आया ,तो उसने गढ़ु को सन्देश भेजकर उसे वापस बुला लिया।

खिमसारी हाट पहुंचकर जब गढ़ू सुम्याल को वास्तविकता का पता चला तो इनका क्रोध चरम सीमा पर पहुंच गया। इनकी माँ ने भी कहा कि, तेरे ताऊ का पाप का घड़ा भर गया है। उससे अपने परिवार का बदला ले। तभी मुझे शांति मिलेगी। ताऊ की ताकत ज्यादा थी, और गढ़ु सुम्याल अकेले थे। उन्होंने एक युक्ति सोची, रात को अपने ताऊ को सहपरिवार खाने पर बुलाया ,और जब वे सो गए तो एकमात्र दरवाजा बंद करके, लीसे की सहायता से उस छानी में आग ला दी। इस तरह दुष्ट ताऊ सहपरिवार मृत्यु को प्राप्त हुवा। उनकी माता को अति प्र्सनता हुई और उन्होंने भी प्राण त्याग दिए। माता की अंत्योष्टि के बाद ये सरु को ढूढ़ने अपने ससुराल गए। वहां जेठू ने सारा विवरण सुना दिया। फिर गढ़ु तिमलयाली गए वहां इन्होने तांडव मचा दिया। सबका संहार करने के बाद ये जोगी के वेश में सरु की तलाश में भटकने लगे ! वर्षों भटकने के बाद इन्हे एक बूढ़ी स्त्री मिली! उसने बताया कि तुम्हारी पत्नी शौकों के घर में कैद है। सदव्रत लिया है। ऐसी सती स्त्री मैंने अपने जीवन में नहीं देखि ! वो अभी भी अपने बढ़ वर्ष के सदवर्त पर अडिग है।

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गढ़ु ने वह जाकर सरु को पहचान लिया! वर्षों बाद दो प्रेमियों का आकस्मिक मिलन से दोनों खुश हो गए ! गढ़ु ने दुगने साहस से सभी शौकों का संहार कर दिया !और सरु को लेकर घर के लिए निकल पड़े। रस्ते में अचानक रूपा शौक ( जो बहार गया था उसने पीछे से तलवार से वार कर दिया ! लेकिन गढ़ु सुम्याल ने उसे भी यमपुरी पंहुचा दिया। गढ़ु सुम्याल पर तलवार का घाव गहरा था ,लेकिन सरु की सूझबूझ और महादेव के आशीर्वाद से गढ़ु सुम्याल ठीक हो गया है। फिर दोनों ख़ुशी -ख़ुशी घर लौटे और तल्ली खिमसारी हाट में राज्याभिषेक करके ख़ुशी -ख़ुशी जीवन यापन करने लगे। इनके राज में इनकी प्रजा बहुत सुखी थी।

संदर्भ – भक्तदर्शन की किताब गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ के आधार पर !

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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