Home मंदिर तीर्थ स्थल ब्रह्म कपाल – पितरों की मुक्ति के लिए गया से भी आठ...

ब्रह्म कपाल – पितरों की मुक्ति के लिए गया से भी आठ गुना अधिक फलदायी है ये तीर्थ।

0

ब्रह्म कपाल बद्रीनाथ – मित्रों आजकल पितृपक्ष चल रहे हैं , लोग अपने पूर्वजों को तर्पण देते हैं। कई लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए घरों में तर्पण करते हैं और कई लोग बड़े बड़े तीर्थों जैसे गया ,हरिद्वार इत्यादि में पिंडदान करते हैं। पितरों के तर्पण के लिए गया तीर्थ को सबसे अच्छा तीर्थ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भारत में पितरों को समर्पित गया के अलावा एक और तीर्थ है , जिसका नाम है ब्रह्म कपाल। कहते हैं जिन पितरों को गया या अन्य तीर्थों में मुक्ति नहीं मिलती है तो उनका तर्पण ब्रह्म कपाल में किया जाता है।

ब्रह्म कपाल –

यह तीर्थ भारत के चार धामों में से एक और उत्तराखंड के चार धामों में प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ में स्थित है। ब्रह्म कपाल तीर्थ अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। इस तीर्थ के बारे कहा जाता है कि यहाँ जिस भी मृत आत्मा का श्राद्ध होता है उसे तुरंत मुक्ति मिलती है। उसे कभी भी प्रेत योनि में भटकना नहीं पड़ता है। स्कन्द पुराण के अनुसार ब्रह्म कपाल तीर्थ गया तीर्थ से आठगुना अधिक फलदाई तीर्थ है।

जिसे गया से भी मुक्ति नहीं मिलती है उसे यहाँ से तुरंत मुक्ति मिलती है। श्रीमद्भागवत के अनुसार यहाँ सूक्ष्मरूप में दुनिया की महान आत्माएं निवास करती हैं। ब्रह्म कपाल में दिया गया पिंडदान अंतिम पिंडदान होता है। उसके बाद उस पूर्वज के लिए पिंडदान नहीं किया जाता है।

ब्रह्म कपाल

ब्रह्म कपाल पर आधारित पौराणिक कहानी –

पौराणिक कहानियों के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा जी के पांच सर थे। श्रष्टि के निर्माण के समय जब वे अपनी मानस पुत्री देवी सतरूपा पर मोहित हो गए थे ,तब भगवान् शिव भयंकर क्रोध से भर गए ,और उन्होंने ब्रह्मा जी का पांचवा सर काट दिया। जब भगवान् शिव ने ब्रह्मा जी पांचवा सर काटा तो यह सर भगवान शिव के हाथ से चिपक कर रह गया।

ब्रह्मा जी के सर को छुड़ाने भगवान शिव सारी श्रष्टि में भटकने लगे लेकिन उन्हें कहीं भी राहत नहीं मिली। भटकते भटकते जब वे अलकनंदा नदी के किनारे इस शिला पर भगवान् शिव के हाथ से ब्रह्मा जी का सर छूट गया। तब इस स्थान का नाम ब्रह्म कपाल पड़ा। यहाँ भगवान शिव ने अपने ऊपर लगे ब्रह्म हत्या के पाप धोने के लिए तपस्या भी की थी।

भगवान् शिव ने इस स्थान को वरदान दिया था कि जो यहाँ अपने पितरों का श्राद्ध करेगा उसे और उसके कई पीढ़ी के पितरों को मुक्ति मिल जाएगी ,उन्हें कभी भी प्रेतयोनि में नहीं भटकना पड़ेगा। कहते हैं यहाँ भगवान् कृष्ण के निर्देश पर पांडवों ने भी अपने पितरों का तर्पण किया था।

हर साल पितृ पक्ष के दौरान यहाँ काफी भीड़ रहती है। लोग अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए ब्रह्म कपाल दूर दूर से आते हैं।

इन्हे भी पढ़े _

“हवीक या हबीक” उत्तराखंड कुमाऊं में पितृ पक्ष पर निभाई जाने वाली ख़ास परम्परा

पितृ पक्ष में कौवों का महत्व , कौओं का तीर्थ कहा जाता है उत्तराखंड के इन स्थानों को

देवभूमि दर्शन के व्हाट्सअप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Exit mobile version