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भासर देवता :-
भासर देवता का मंदिर गढ़वाल क्षेत्र के टिहरी जनपद की कड़ाकोट पट्टी के कफना नामक गांव में स्थित है। इसका निशान होता है लोहे का त्रिशूल या कटार। इनके बारे में कहा जाता है कि यह नागराजा का मामा तथा अन्य देवताओं का बूढ़ा मामा हैं। माँ चन्द्रवदनी देवी इनकी बहिन है। भासर देवता की माता का नाम मेघमाला है। क्षेत्रपाल, घण्टाकर्ण, नगेल देवता आदि को इनका भाई भी माना जाता है।
इसमें असीम शक्ति व सामर्थ्य माना जाता है। बिजली गिराना, पानी को दूध बना देना आदि इनकी शक्ति के परिचायक हैं। अग्नि की ज्वलनशक्ति को शमन करके इसे निष्प्रभावी कर देना भी इनकी अलौकिक शक्ति का परिचायक है। ये मकानों के भीतर रखे जादू-टोनों को प्रकट कर देते हैं । इस प्रकार यह अनेक विलक्षण शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं।
लोगों का मानना है कि इस देवता का पश्वा शुद्धजल को दूध में परिवर्तित कर देता है और एक सेर घी की बनी हुई रुई की बत्ती को, जब वह भर-भर जलने लगती है, तो सहज ही निगल लेता है। श्रद्धालु भक्त जो इसे देता है, देवता उस पर प्रसन्न होता है। इस भेंट को ‘देवता सोवन पयाली’ अर्थात् स्वर्ण का स्वादिष्ट भोग कहते हैं। ज्ञातव्य है कि देवताओं की शब्दावली में अग्नि को सुवर्ण कहा जाता है। इस देवता का पश्वा इस प्रकार के अनेक चमत्कारों का प्रदर्शन करता है। यह उनियालों का इष्ट देवता है और वही इसके पुजारी भी हैं। इनके अतिरिक्त यह कठैत, राजपूत, रावत आदि क्षत्रिय जातियों का भी इष्ट देवता है।
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संदर्भ – प्रो DD शर्मा की किताब उत्तराखंड ज्ञानकोष। एवं डॉ. वाचस्पति मैठाणी।