उत्तराखंड और समस्त हिमालयी क्षेत्र को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र अपने अंदर कई रहस्य समाहित किये है। इन्ही रहस्य्मयी स्थलों में एक है केदारनाथ का रेतस कुंड। जैसा की हमको पता है अप्रैल मई से बाबा केदार के कपाट खुल जाते हैं और अक्टूबर नवंबर केदारनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं। केदारनाथ भगवान् शिव का ग्यारहवा ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है। इसके आस पास कई चमत्कारिक और रहस्य्मय ,रमणीक स्थान हैं ,जो बहुत उच्च धार्मिक महत्व के स्थान हैं।
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रेतस कुंड केदारनाथ में स्थित एक चमत्कारिक कुंड है –
केदारनाथ में कई चमत्कारिक कुंड हैं ,उनमे से एक है रेतस कुंड। केदारनाथ के दाई ओर लगभग 500 मीटर दूर सरस्वती नदी के किनारे स्थित है। इस कुंड की खासियत यह है कि इस कुंड के किनारे जाकर भगवान् शिव की जय जयकार करने से या ॐ नमः शिवाय का उच्चारण करने से इस कुंड में बुलबुले उठते हैं। इसकी यही खासियत के कारण यह कुंड काफी प्रसिद्ध है।
श्रद्धालु इस कुंड के पानी को भगवान् शिव के आशीर्वाद या प्रसाद समझकर पीते भी हैं। 2013 की केदारनाथ आपदा में यह कुंड मलवे में दब गया था। वर्तमान में इसे ढूंढकर पुनर्निर्मित कर लिया गया है। वैसे यहाँ अमूमन पानी शांत रहता है। जैसे ही शिव की जैकार होती है तो यहाँ बुलबुले उठते हैं। रेतस कुंड के जैसा उत्तरकाशी में मंगलाछू ताल नामक एक ताल है। इसके किनारे ताली बजाने या आवाज करने से इस ताल में भी बुलबुले उठते हैं।
इसके बारे पत्र पत्रिकाओं में शोध लेख के रूप में लिखा है कि हिमालयी क्षेत्रों में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ पानी महीन छेदों से बाहर आता है। जब इसके आसपास हलचल या आवाज होती है तो धरती के बारीक दरारों के माध्यम से हवा पानी पर दबाव बनाती है। इस वजह से पानी बुलबुलों के माध्यम से बाहर आता है। हालांकि रेतस कुंड के बारे में कहा जाता है यहां केवल भगवान् शिव की जैकार करने से पानी में बुलबुले उठते हैं।
पढ़े _इस तालाब के किनारे ताली बजाते ही उठते हैं बुलबुले !
रेतस कुंड पर आधारित पौराणिक कथा –
रेतस कुंड के इतिहास या निर्माण के बारे में यह पौराणिक कथा प्रचलित है। पौराणिक कथा के अनुसार जब तीनो लोको में ताड़कासुर ने हाहाकार मचाया था ,और उसे भगवान ब्रह्मा जी ने शिव पुत्र के हाथों मृत्यु का वर दिया था। उधर माँ पार्वती भगवान् शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रही थी। लेकिन भगवन शिव अनंतकाल के ध्यान में थे। और इधर देवराज इंद्र और देवता ताड़कासुर के अत्याचारों से परेशान थे। लेकिन भगवान् शिव अपने ध्यान से वापस नहीं आ रहे थे। भगवान् शिव का ध्यान भी नहीं तोड़ सकते ,क्योकि भगवान् शिव का क्रोध सबको पता था।
शिव का क्रोध जगाना मतलब अपनी मृत्यु को दावत देना। फिर भी देवराज इंद्र ने कामदेव को भगवान् शिव की तपस्या को भंग करने के लिए राजी कर लिया। जब कामदेव ने शिव की तपस्या भंग की तो शिव की तीसरी आँख से निकली क्रोधाग्नि ने कामदेव को भस्म कर दिया। जब कामदेव भस्म हो गए तो उनके दुःख में देवी रति ( कामदेव की पत्नी ) के आखों से निकले आसुओं से बना केदारनाथ का रेतस कुंड।
रेतस कुंड के बीचों बीच में केदारनाथ की तरह वृषभ आकार का शिवलिंग है। देवी रति के आसुओं से बने इस कुंड का बहुत धार्मिक महत्त्व है। जो भक्तजन केदारनाथ के दर्शनार्थ आते हैं ,वे रेतस कुंड का दर्शन करने अवश्य जाते हैं। वहां शिव की जयजयकार करते हैं। और प्रसाद रूप में इस कुंड का जल भी ग्रहण करते हैं।
रेतस कुंड की वीडियो –
#रेतस_कुंड (Retas Kund)केदारनाथ में स्थित चमत्कारी कुंड,
केदारनाथ मंदिर से करीब 500मीटर दूर सरस्वती नदी के तट पर रेतस कुंड स्थित है। ऐसा केदारखंड में लिखा गया है कि यहां ऊं नम: शिवाय का जप करने पर पानी में बुलबुले उठते हैं।
ये वीडियो इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है#ॐ_नमः_शिवायः🕉️🔱🙏🏻🚩 pic.twitter.com/0nlogmMCXv— Deepak Parihar (Sanatani) (@Deepak57923140) October 31, 2022
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