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बोराणी का मेला – संस्कृति के अद्भुत दर्शन के साथ जुवे के लिए भी प्रसिद्ध है यह मेला

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दीपावली के ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को पिथौरागढ़ के बोराणी नामक स्थान पर सैम देवता के मंदिर में लगता है  प्रसिद्ध बोराणी का मेला। संस्कृति के अद्भुत  रूप दर्शनों के साथ जुवे के लिए भी प्रसिद्ध है यह मेला। यह उत्तराखंड के अन्य मेलों के सामान यह मेला भी धार्मिक और व्यवसायिक है।

इस मेले की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मेले के लिए नजदीकी पुलई और चापड़ गांव के बोरा उपजाति के लोग ढोल दमु के साथ नाचते गाते बाइस फ़ीट ऊँची पहाड़ी मशाल ( पके हुए चीड़ के तने से फाड् कर निकाली हुई ) लाते हैं। इस मशाल को मंदिर के पास गाढ़ दिया जाता है।

रात भर इसी मसाल के उजाले में लोग नाचते गाते रहते हैं। दूसरे दिन सुबह दर्शन और पूजा पाठ करके अपने घरों को  जाते हैं। दूसरी तरफ मेला इस इलाके में जुवे के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मेले में पहले स्थानीय जुवारियों के अतिरिक्त बाहर से आने वाले जुवारी भी अड्डा लगाने लगे थे। लेकिन प्रसाशन के हस्तक्षेप के बाद इसमें काफी कमी आ गई है।

बोराणी का मेला

आर्थिक रूप से इस मेले में पानी के घराटों के पत्थर के पाट और पत्थर के बर्तन और सिलबट्टे काफी प्रसिद्ध थे। इस अलावा यहाँ के कुलथीया बोरा लोगों द्वारा बनाये गए भांग के रेशो का खूब व्यपार होता था। कुमाऊं और नेपाल क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में यहाँ आकर खरीदारी करते हैं। बोराणी का मेला उत्तराखंड के प्रसिद्ध सांस्कृतिक मेलों में एक है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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