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बौखनाग देवता नामक लोक देवता के प्रकोप का परिणाम है उत्तरकाशी टनल हादसा ?

Baukhnaag devta story in Hindi

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बौखनाग देवता
बौखनाग देवता

उत्तरकाशी टनल हादसे में अभी भी 40 मजदूरों की जान हलक में अटकी है। तमाम प्रयासों के बावजूद प्रसाशन अभी तक मजदूरों को बाहर निकालने में सफल नहीं हुवा है। इस हादसे का असल कारण क्या था ? वो बाद की तकनीकी जांचों पता चल जायेगा। लेकिन फ़िलहाल स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार यह हादसा क्षेत्र  शक्तिशाली लोक देवता बौखनाग देवता के प्रकोप के कारण हुवा है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पुराने मनेजमेंट ने पहले टनल के बहार एक देवता का एक छोटा सा मंदिर बनाया था। सभी अधिकारी और मजदूर वहां पूजा करके और सर झुका कर अंदर जाते थे। बाद में नए मैनेजमेंट वो मंदिर तोड़ दिया। और स्थानीय लोगों का मानना है कि इसी कारण लोकदेवता रुष्ट हो गए ,जिनके क्रोध के कारण आज यह दिन देखना पड़ा। स्थानीय ग्रामीणों का मानना है कि यह देवभूमि है। यहाँ की सारी जमीन और प्राकृतिक सम्पदा देवताओं की है। जिनका उपयोग करने से पूर्व लोकदेवताओं की आज्ञा लेना जरुरी है।

कौन हैं बौखनाग देवता –

यह टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी , उत्तराखंड गढ़वाल के पक्षिमोत्तर क्षेत्रों रवाईं एवं भण्डारस्यूं पट्टियों के बहुपूजित नाग देवता हैं। इनका मंदिर रवाईं के  ग्राम भाटिया में है। और इनका एक और मंदिर राड़ी में भी है। इनके पुजारी डिमरी जाती के ब्राह्मण होते हैं। जेठ के महीने में बौखनाग देवता का उत्सव होता है। इनके उत्सव में दूर -दूर तक के लोग सम्मिलित होते हैं। अच्छी फसल और परिवार की सुख समृद्धि के लिए इस उत्सव का आयोजन किया जाता है। उत्सव में स्थानीय लोग अपने लोक गीतों पर जमकर झूमते हैं और अपने आराध्य देव से मनोतिया मंगाते हैं।

यह मेला 12 गांव भाटिया, कफनोल कंसेरू, उपराड़ी, छाड़ा, नंदगांव, चक्कर गांव, चेसना, कुंड, हुडोली आदि गांव के लोकदेवता बौखनाग देवता का मेला है। भाटिया, कफनोल, कंसेरू, नंदगांव में देवता के चार मंदिर हैं। प्रत्येक मंदिर में एक साल के लिए देवता प्रवास करते हैं. 12 गांव में देवता की डोली यात्रा करती है । यात्रा के दौरान हर गांव में देव डोली रात्रि विश्राम करती है । देवता के उत्सव में आराध्य देव से प्रार्थना पूरी होने पर लोग उन्हें छतर चढ़ाते हैं । इसके साथ ही विशाल भंडारे का आयोजन होता है । देवता के मंदिर के पुजारी पर पश्वा अवतरित होते हैं,और वे  मेले में आये हुए ग्रामीणों को अपना आशीर्वाद देते हैं।

इनका मूलस्थान रवांई और भण्डारस्यूं पट्टियों के बीच स्थित पर्वत ( डांडा ) को माना जाता है। सम्पूर्ण रवाई क्षेत्र  में इस देवता  की जय जय कार होती है

यहाँ पढ़े _ उत्तराखंड के नागदेवता और कुमाऊं की नागगाथा ।

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