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इगास बग्वाल 2024 | igas bagwal 2024 date

उत्तराखंड का लोकपर्व इगास पर्व

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Igas bagwal

उत्तराखंड का लोकपर्व इगास बग्वाल उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली के ठीक ग्यारह दिन बाद, देवउठनी एकादशी के दिन एक लोक पर्व मनाया जाता है, जिसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है। इगास बग्वाल का अर्थ होता है एकादशी के दिन मनाई जाने वाली बग्वाल या दीपवाली। पहले बग्वाल के रूप में पत्थर युद्ध का अभ्यास होता था। और यह बग्वाल अधिकतर दीपावली के आस पास मनाई जाती थी। इसलिए पहाड़ों में दीपावली के पर्व को बग्वाल कहा जाता है। धीरे धीरे प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन होते रहे और बग्वाल के रूप में पत्थर युद्ध अभ्यास की जगह नई परम्पराओं ने स्थान ले लिया।

क्यों मानते हैं इगास पर्व –

इगास पर्व को वर्तमान में पशुधन सुरक्षा और विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पशुओं को नहला धुला कर, साफ सफाई के बाद उन्हें पिंडा अर्थात पौष्टिक आहार खिलाया जाता है। उनकी उत्तम स्वास्थ और दीर्घायु की कामना की जाती है। इगास पर्व मानाने के पीछे एक दूसरा कारण यह है कि , ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार इस दिन गढ़वाल के वीर भड़ (वीर योद्धा) माधो सिंह भंडारी ,तिब्बत विजय करके वापस गढ़वाल लौटे थे।

इगास बग्वाल 2024 | igas bagwal 2024 date
Igas bagwal

उनके विजयोत्सव की ख़ुशी में यह पर्व मनाया जाता है।  कहा जाता है ,कि मुख्य दीपवाली के दिन माधो सिंह भंडारी युद्ध में व्यस्त होने के कारण उनकी प्रजा ने भी दीपवाली नहीं मनाई ,जब वे विजय होकर वापस आये उसके बाद एकादशी के दिन सबने मिलकर विजयोत्सव मनाया। इसके अलावा  कुछ लोग यह बताते हैं  कि राम जी के अयोध्या लौटने का समाचार पहाड़ो में 11 दिन बाद मिला ,इसलिए यहाँ ग्यारह दिन बाद बग्वाल मनाई जाती है।  यह कारण पूर्ण तह अतार्किक और मिथ्या है।

धूम धाम से मनाई जाएगी इगास बग्वाल 2024 –

विगत वर्षों में डिजिटल जानकारियों के आदान प्रदान के कारण लोगो को उत्तराखंड के लोक पर्व इगास बग्वाल के बारे में अधिक पता चला और जन जागरूकता बढ़ी। सामाजिक संगठनों और नेताओं व् सरकार ने भी हाल फिलहाल में इस लोकपर्व का खूब प्रचार किया। उत्तराखंड सरकार पिछले साल से प्रतिवर्ष सरकारी अवकाश दे रही है। विगत वर्षो की तरह उत्तराखंड में  12 नवंबर 2024 को  लोक पर्व इगास बग्वाल धूम धाम से मनाई जाएगी।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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