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उज्याव संगठन की तरफ से जल्द हल्द्वानी में होने जा रहा है कुमाउनी भाषा युवा सम्मलेन !

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कुमाउनी भाषा प्रेमियों के लिए खुश खबर ! उत्तराखंड कुमाउनी भाषा और संस्कृति के प्रचार -प्रसार में प्रयासरत उज्याव संगठन आगामी 24 दिसंबर 2023 को हल्द्वानी में कुमाउनी भाषा सम्मलेन करने जा रहा है।

उत्तराखंड की क्षेत्रीय भाषाओँ कुमाउनी और गढ़वाली के प्रचार और प्रसार में कई संगठन और  बुद्धिजीवी लोग प्रयासरत हैं। इनका मूल उद्देश्य अपनी क्षेत्रीय भाषा का प्रचार और उसे सविंधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाना है। इन्ही संगठनों में एक संगठन है उज्याव संगठन। जिसका पूरा नाम है उज्याव कुमाउनी भाषा लिजी युवा तराण समिति।  उज्याव कुछ भाषा,संस्कृति प्रेमी  कुमाउनी युवाओं द्वारा गठित संगठन है जिसका मूल लक्ष्य कुमाउनी भाषा का प्रचार और सवर्द्धन करना और विशेषकर युवाओं में कुमाउनी भाषा के प्रति जागरूकता पैदा करना है।

उज्याव का हिंदी अर्थ होता है प्रकाश , और युवा तराण का अर्थ होता है युवाओं की ताकत !और अपने नाम के अनुसार यह संगठन अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण निष्ठा से प्रयासरत है। युवाओं के इस संगठन का उदय 26 दिसम्बर 2021 को तेरहवे कुमाउनी भाषा सम्मेलन में हुवा था। तबसे आज तक यह संगठन अलग अलग माध्यमों से कुमाउनी भाषा के प्रचार में प्रयासरत है। यह संगठन प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को ऑनलाइन माध्यम से कुमाउनी काव्य गोष्ठी का आयोजन करवाता है। इस संगठन के सदस्य स्कूलों में जाकर कुमाउनी भाषा के विकास और संरक्षण के लिए जन जागरूकता अभियान चलाते हैं।

उज्याव संगठन

अपने पुनीत लक्ष्य में आगे बढ़ते हुए अब यह संगठन आगामी दिसंबर माह में एक दिवसीय कुमाउनी भाषा युवा सम्मेलन और युवा सम्मान समारोह का आयोजन करने जा रहा है। जिसके लिए संगठन ने 24 दिसम्बर 2023 रविवार का दिन चुना है। और स्थान है – रुद्राक्ष बैंकट हाल नवाबी रोड हल्द्वानी। इस अवसर पर संगठन के अध्यक्ष श्री दीपक भाकुनी ( पहाड़ी दीपू ) जी ने कुमाउनी भाषा प्रेमी पहाड़ के युवाओं और बुद्धिजीवी आदरणीय वरिष्ठ लोगों को सम्मेलन में शामिल होने का अनुग्रह किया है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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