Friday, July 26, 2024
Homeसंस्कृतित्यौहारसातों आठो पर्व, बिरुड़ पंचमी

सातों आठो पर्व, बिरुड़ पंचमी

उत्तराखंड की भूमि अपने विशेष लोकपर्वों के लिए प्रसिद्ध है। इन्ही लोक पर्वों में से एक पर्व है ,सातो आठो लोक पर्व। भगवान् के साथ मानवीय रिश्ते बनाकर, उनकी पूजा अर्चना और उनके साथ आनंद मानाने का त्यौहार है, सातू आठू त्यौहार। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ व कुमाऊँ के सीमांत क्षेत्र में मनाया जाने वाला यह त्यौहार प्रतिवर्ष भाद्रपद की पंचमी से शुरू होकर अष्टमी तक चलता है। 2023 में सातों आठों पर्व  21 अगस्त 2023 बिरुड़ पंचमी से शुरू होगा। 23 अगस्त 2022 को सातो और 24 अगस्त को आठो मनाया जाएगा।

सातू आठू पर्व में महादेव शिव को भिनज्यू (जीजाजी ) और माँ गौरी को दीदी के रूप में पूजने की परम्परा है। सातो आठो का अर्थ है सप्तमी और अष्टमी का त्यौहार। भगवान शिव को और माँ पार्वती को अपने साथ दीदी और जीजा के रिश्ते में बांध कर यह त्यौहार मनाया जाता है। यही इस त्यौहार की सबसे बड़ी विशेषता है। कहते है ,जब दीदी गवरा( पार्वती ) जीजा मैशर (महेश्वर यानि महादेव ) से नाराज होकर अपने मायके आ जाती है ,तब महादेव उनको वापस ले जाने ससुराल आते है।  दीदी गवरा की विदाई और भिनज्यू (जीजाजी) मैशर की सेवा क रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार कुमाऊँ सीमांत में सांतू आंठू के नाम से तथा ,नेपाल में गौरा महेश्वर के नाम से मनाया जाता है। इस लोक पर्व को गमारा पर्व भी कहा जाता है।

भाद्रपद की पंचमी

भाद्रपद की पहली पंचमी से शुरू होती है त्यौहार की तैयारी , भाद्र  पंचमी को बिरुड पंचमी के रूप में मनाया जाता है।  इस दिन एक साफ ताबें के बर्तन में ,गाय के गोबर से पंच चिन्ह बनाकर उसपे दुब अक्षत करके उसमे पांच या सात प्रकार का अनाज भिगोने डाल दिया जाता है। इन  अनाजों में मुख्यतः गेहू ,चना, सोयाबीन , उड़द ,मटर,गहत, क्ल्यु  बीज होते हैं। सातू (सप्तमी) के दिन जल श्रोत पर धो कर ,आठू (अष्टमी) के दिन गमारा मैशर (गौरी महेश ) को चढ़ा कर ,फिर स्वयं प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। तथा सभी लोग ऐसे बिरुड रूप में चढ़ाकर आशीष देते हैं। इसलिए इस पंचमी को बिरुड़ पंचमी भी कहते हैं।

बिरुड़ पंचमी

सातों के दिन सजाई जाती है गमरा दीदी

Best Taxi Services in haldwani

सातों (सप्तमी ) के दिन महिलाये इक्क्ठा ,होकर गांव के प्राकृतिक जल स्रोत पर जाती हैं। पांच जगह अक्षत करके ,मगल गीत गाते हुए , वहां बिरूड़ो को धो कर लाती हैं।  बिरुडो को वापस  पूजा घर में रख कर ,गमारा दीदी का श्रृंगार किया जाता है।  गमारा दीदी पर्वती को बोलते हैं। गमारा दीदी का श्रृंगार के लिए महिलाएं सोलह श्रंगार करके धान के खेत से एक विशेष पौधा सौं और धान के पौधे लाती हैं। उससे डलिया में गमरा दीदी को सजाया जाता है। फिर लोकगीत गाते हुए गाँव के उस स्थान पर रख देते हैं, जहां बिरुड़ पूजा का आयोजन होता हैं। और पंचमी के दिन भिगाये गए उन बिरुड़ से गमरा दीदी ( गौरी मा) की पूजा होती है। इस शुभावसर पर अखंड सौभाग्य और संतान की मंगल कामना के लिए सुहागिन महिलाएं, गले व हाथ मे पीली डोर धारण करती हैं। पुरोहित सप्तमी की पूजा करवाते हैं।  महिलाएं ,लोकनृत्य तथा लोकगीतों का आनंद लेती हैं।

आठों ( अष्टमी ) के दिन भिन्ज्यू महेश्वर (महादेव) गमारा दीदी ( पार्वती ) को मनाने आते हैं ससुराल –

आठू (अष्टमी) के दिन सभी महिलाएं एक स्थान पर जमा होकर , खेतों में से डलिया में सौं और धान के पौधे लेकर भिन्ज्यू महेश्वर (भगवान शिव ) की प्रतिमा बनांते हैं। और लोकगीतों के साथ उन्हें माँ पार्वती के साथ स्थापित किया जाता है। ऐसी मान्यता है,कि इस दिन भगवान शिव रूठी हुई माँ पार्वती को मनाने ससुराल आते हैं। पंडित जी पूजा करवाते है। बिरुड़ चढ़ाए जाते हैं। तथा एक महिला सभी को सांतू आंठू की कथा या बिरुड़ अष्टमी की कथा सुनती है।

कुमाऊं के लोकदेवता कलविष्ट देवता की कहानी को विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

बिरुड़ अष्टमी की कथा

एक गावँ में बुजुर्ग दम्पति के सात पुत्र और सात बहुएं थी। किन्तु किसी को भी संतान प्राप्ति नही थी। इस कारण बुजुर्ग दंपत्ति बहुत दुखी थे। एक बार वह आदमी कहीं जा रहा था, उसे रास्ते मे ,सोलह श्रंगार की हुई औरतें बिरुड़ धोते हुए दिखी,तो उसने जिज्ञासावश पूछ लिया कि आप क्या कर रही हो ? तो उन महिलाओं ने कहा कि, वे गौरा महेश के लिए बिरुड़ धो रही हैं। उस आदमी ने कहा कि इससे क्या होता है ? तब महिलाओं ने सातो आठो पर्व के बारे में विस्तार से उनको समझा दिया।

सारी जानकारी लेकर वह मनुष्य उत्साहित होकर बोला , मैं भी सातो आठो ,बिरुड़ अष्टमी का अनुष्ठान करूँगा,अपने परिवार में। घर जाकर उसने अपनी पत्नी को बताया। पत्नी ने अपनी सबसे लाड़ली बहु को बुलाया ,उसे बिरुड़  का विधान करने को कहा।  उस बहु ने बिरुड़ भीगाते समय चख लिए ,तब सास ने कहा की तुमने इस को चख कर इसका विधान खंडित कर दिया है।  फिर उसने दूसरी बहु को बुलाया , उसने भी यही गलती की।  ऐसा करते करते उसने सभी 6 बहुओं को बुलाया सभी ने कोई न कोई गलती करके विधान खंडित कर दिया।

अंत में उसने अपनी सातवीं बहु को बुलाया , इस बहु को वह बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी।  वो लोग उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे , इसलिए अंत में उसको बोला कि तुम बिरुड़ भिगाओ। बहु ने नहाया धोया और पुरे विधि विधान से बिरुड़  भीगा दिए। कुछ समय बाद ,वो गर्भवती हो गई।  अगला सातों आठों आने से पहले उसका पुत्र भी हो गया।  इधर घर में संतान तो आ गई लेकिन  जो बहु नापसंद थी उसकी संतान हुई। अब सास को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।  इधर सास ने अपने पति को बोला नए बालक के बारे में पंडित जी से पूछ कर आओ।  उधर सास पति से पहले जाकर पंडित को पैसे देकर अपने पक्ष में कर लिया ,उसको बोला की तुम बच्चे के बारे में नकारात्मक बोलना।  पंडित मान गया।

कुछ दिन बाद फिर सातो आठो आने वाली थी, तब सास ने अपनी आखिरी बहु से कहा की , मुझे पता चला है ,की तुम्हारे पिता की मृत्यु  हो गई है। तुझे वहां जाना चाहिए  बच्चे को मै  देख लुंगी। बेटी रोते   बिलखते अपने मायके गई ,जिस दिन मायके गई उस दिन आठो था ,और उसके मायके में बढ़िया पूजा चल रही थी।  उसकी माँ ने अपनी बेटी को मायके में देखा तो पूछा ,आज तो त्यौहार है ,तुझे ससुराल  में होना चाहिए ,तू यहाँ क्या कर रही है ? और तेरा  बेटा कहा है ? बेटी ने सारा वृतांत अपनी माँ को बता दिया।  तब माँ ने कहा पुत्री मुझे तेरा पुत्र खतरे में है।

उधर पंडित ससुर को बालक के बारे  में गलत सलत बताता है। बोलता है यह बालक अपशकुनी है। जब पति निराश घर लौटा तो सास इसी मौके का फायदा उठा कर पति को भड़का देती है ,और बच्चे को मारने की बात करती है।  दोनों मिलकर बच्चे को पास के नौले में डुबाकर आ जाते हैं।

उधर बहु रास्ते भर सरसों फेकते आती है , और वो हरी भी हो जाती है।  जब वो नौले के पास पहुँचती है तो, वहां उसकी छाती भर आती है ,और वह नौले में अपनी दूध से सनी छाती को धोने उतरती है ,तो बच्चा उसके गले में पड़ी सातो आठो  की डोर को पकड़ लेता है। वह अपने बच्चे को लेकर ससुराल पहुँचती है।  तब उसकी सास कहती है ,मैंने तो इसे मरने के लिए छोड़ दिया था ,तुझे यह जिन्दा कैसे मिला ? तब बहु ने कहा कि  मुझे मेरे अच्छे कर्मो का फल मिला है। मैंने लोगो की भलाई की इसलिए मुझे अच्छा फल मिला।  तब सास को अपनी गलती  का अहसास होता है।  वो अपने किये पर माफ़ी मांगती है।

इस कथा की समाप्ति के बाद बिरुड़ को पकाकर उनका प्रसाद बनाया जाता है। गौरी महेश को चढ़ाने के बाद लोग एक दूसरे को चढ़ाते व् बाँटते है।

लोकगीतों एवं लोक नृत्यों की धूम रहती है बिरुड़ पंचमी ,सातो आठो पर्व में –

सातो आठो त्यौहार में तीन चार दिन कुमाऊनी लोक गीत और लोक नृत्य  झोड़ा ,चचेरी  आदि की धूम मची रहती है।  गांव की महिलाएं , पुरुष रोज शाम को ,आनंद के साथ पुरे गावं की सुख समृद्धि के लिए ,नाचते गाते हैं। आनंद उत्सव मानते हैं।

बिरुड़ पंचमी , सातों आठों में फौल फटकना की रस्म –

सातो आठो के शुभ अवसर पर एक विशेष रस्म भी निभाई जाती है। इस रस्म में एक बड़े कपडे के बीच में बिरुड़ और फल रखते हैं।  फिर दोनों तरफ से पकड़ कर उसे ऊपर को उछालते हैं। शादी शुदा महिलाएं और कुवारी कन्यायें  अपना आँचल फैलाकर इसे  समेटने की कोशिश करती हैं।  जिसके आँचल में यह फल और प्रसाद अटकते हैं , ऐसा माना जाता है की उन्हें अखंड सौभाग्य और मंलकारी संतान की प्राप्ति होती है।

गमरा महेशर की विदाई

गमरा दीदी और भिनज्यू  के साथ आनंद के दिन बिताने के बाद ,उनकी विदाई का समय भी आ जाता है।  लोग अपनी बेटी और जमाई को ,लोकगीत और ढोल नगाड़ों की धूम के साथ विदा करते हैं। गोरी महेश की मूर्ति को स्थानीय मंदिर में विसर्जित कर दिया जाता है। जिसे सिवाना या सिला देना की रस्म भी कहा जाता है। सातो आठो  पर्व के बाद पिथौरागढ़ में कही कही हिलजात्रा का आयोजन भी किया जाता है।

यहाँ भी देखे – हमारे पूर्वज कुमाऊनी में गिनती किस पद्धति से गित्नते थे , जानने के लिए यहाँ क्लीक करें।

उपसंहार –

उत्तराखंड की संस्कृति और परम्परा ,अपनी विशेष रस्मो और त्योहारों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। उत्तराखंड अपने विविध त्योहारों से जनमानस को नई नई सीख देता है। उत्तराखंड के त्यौहार प्रकृति को समर्पित और लोक कल्याण कारी तथा आनंद और हर्सौलास से ओतप्रोत होते हैं। प्रस्तुत त्यौहार सातो आठो ,भगवान् को अपने मानवीय रिश्तों में बांध कर भक्ति के चरमसीमा का प्रदर्शन करता है। और बिरुड़  के रूप में पौष्टिक भोजन का सेवन इस त्यौहार को स्वास्थ्य को और फसलों को समर्पित त्यौहार बनाता है।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments