जौ त्यार– समस्त भारतवर्ष में बसंत पंचमी का त्यौहार 14 फरवरी को मनाया जाता हैं। इस त्यौहार को माँ सरस्वती के जन्मदिन के रूप मनाया जाता है। और माँ सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन से बसंत ऋतू की शुरुवात होती है। बसंत पंचमी के त्यौहार को श्रीपंचमी और माघ पंचमी के नाम से भी मनाया जाता है।
इस दिन बिना मुहूर्त के शुभ काम किये जाते हैं। पीले वस्त्र धारण करके माँ सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। समस्त भारत वर्ष के साथ पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के नगरीय क्षेत्रों में बसंत पंचमी ,श्री पंचमी मनाई जाती है। और उत्तराखंड के पहाड़ी लोक जीवन में यह त्यौहार लोक पर्व जौ त्यार या जौं संक्रांति , यव संक्रांति के रूप में मनाई जाता है।
Table of Contents
बसंत पंचमी, जौ त्यार या सिर पंचमी
उत्तराखंड अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए भारत ही नहीं समस्त विश्व में प्रसिद्ध है। प्रकृति प्रेम और प्रकृति संरक्षण की भावना यहाँ की संस्कृति और परम्पराओं में रची बसी है। उत्तराखंड के तीज त्योहारों में भी प्रकृति प्रेम और प्राणिमात्र की प्रेम और सद्भाव की भवना झलकती है। बसंत पंचमी के त्यौहार को उत्तराखंड के लोक जीवन में जौ त्यार या जौ सग्यान के रूप में मनाया जाता है। इस दिन उत्तराखंड में दान और स्नानं का विशेष महत्त्व है। स्थानीय पवित्र नदियों में स्नान या प्राकृतिक जल श्रोत पर स्नान शुभ माना जाता है। उसके बाद घर की लिपाई पोताई की जाती है।
और घर की दहलीज में सरसों के पीले फूल डालें जाते हैं। घर में पूरी,वड़ा ,खीर, दाल भात ,और घुघते बनाये जाते हैं। मकर संक्रांति की तरह उत्तराखंड के कुमाऊं में जौ त्यार के दिन भी घुघते बनाये जाते हैं। बचपन में घुघुतिया के घुघुते ख़त्म होने के बाद हम पंचमी के घुघुतों की उम्मीद में बैठे रहते थे। उसके बाद कुलदेवों, ग्रामदेवों और पितरों की पूजा करके उनको भोग लगते हैं। बच्चो को पीले कपडे पहनाते हैं। उत्तराखंड में बसंत पंचमी अवसर पर नई फसल की जौ की पत्तियों को देवताओं को चढ़ाकर ,एक दूसरे को आशीष के रूप में चढ़ाते हैं।
घर में महिलाये जौ की पत्तियों को दरवाजों पर लगाती हैं। जौ इस समय नई फसल होती है। नई फसल होने के साथ जौ को सुख और समृद्धि का प्रतीक मन जाता है। इसलिए इस शुभ दिन इसे देवताओं से लेकर घर तक सबको अर्पित किया जाता है या चढ़ाया जाता है। यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन बिना मुहूर्त निकाले सरे शुभ काम किये जाते हैं। बसंत पंचमी के दिन उत्तराखंड में , बच्चों के कान नाक छेदन , यज्ञोपवीत संस्कार , लड़की को पिठ्या लगाना ,साग रखना अर्थ कुमाउनी में सगाई करना। एवं शादी का मुहर्त व् तिथि निश्चित करना ,छोटे बच्चों का अन्नप्राशन जैसे शुभ कार्य किये जाते हैं।
बसंत पंचमी पर कुमाऊं की बैठक होली होती है खास
उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति की प्रसिद्ध कुमाउनी होली वैसे तो पौष माह से शुरू होती है। पौष के बाद कुमाउनी बैठक होली बसंत पंचमी की शाम को गायी जाती है। बसंत पंचमी के बाद प्रसिद्ध बैठक होली ,शिवरात्रि के दिन शाम को गाई जाती है। फिर होली एकादशी को खड़ी होली शुरू हो जाती है।
उत्तराखंड में बसंत पंचमी की शुभकामनाएं-
उत्तराखंड में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर , बसंत पंचमी की शुभकामनायें कुमाउनी में आशीष वचनो के साथ दी जाती हैं। इस दिन लोक पर्व जौ त्यार के अवसर पर ,कुमाऊं में सिर में जौ चढ़ाते हुए जी राया जागी राया ,यो दिन यो बार भेट्ने रया केआशीष वचनो के साथ शुभकामनायें दी जाती हैं। घर के द्वारों पर जऊ लगाकर घर की सुख समृद्धि और सकुशलता की कामना की जाती है।
बसंत पंचमी की शुभकामनाये कुमाउनी में, गढ़वाली बसंत पंचमी की बधाई। या उत्तराखंड की बसंत पंचमी की फोटो हमारे इस लेख से डाउनलोड कर सकते हैं।
बसंत पंचमी की शुभकामनायें कुमाउनी में
“बसंत ऋतू आते ही प्रकृति क कण कण खिली जाँ। अदिम तो आदिम पशु – चाड लै ख़ुशी है जानी। उसिक तो माघक यो पुर महेण जोश दिनी वाल हुन्छ , पे बसंत पंचमी क त्यार हमार जनजीवन कै भौत प्रकारेल प्रभावित करूँ। आजक दिन ज्ञान और कला कि देवी माँ सरस्वती क जनम दिन मानी जान्छ। तुम सबु कै बंसत पंचमी क त्यार की शुभकामना बधाई । तुमर भौल है जो। जी राया जाएगी राया।”
बसंत पंचमी की शुभकामनायें गढ़वाली में
“बसंतक मौसम क आंद ही परकर्ति का कण कण खिल उठ्दि ! मानिख त क्या बल गोर बछुर अर चखुला बी उल्लास से भ्वरे जंदी। उन त माघ को पूरो मैना ही उत्साह दीण वल च ,पर बसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5 ) को त्योहार भारतीय जनजीवन ते बिंडी परकार से प्रभावित करंद। पुरण समय भिटी ही ज्ञान अर कला की देबी सरस्वती को जलमबार मने जांद। आप सब्बयों ते बसंत पंचमी त्यौआर क सुबकामना !!”
बसंत ऋतू पर कुमाउनी कविता
यह कविता ,उत्तराखंड के साहित्यकार व कुमाउनी कवि स्वर्गीय हंसा दत्त पांडेय जी की कविता है, जो कि बसंत ऋतू पर आधारित कुमाउनी कविता है।
कविता चंद लाइन इस प्रकार है-
आहा रे बसंता उनै रै जये , रंग-बहार ल्युनै रै जये,
हाँग-फ़ांग, पुंग-पांगी फूटा, किल्मोदी भूझा,लाल-लाल गुदा,
खिलंड लगा फूल अनेका, लाल,पीला और सफेद,
दैण, पिहलों, स्यार हरिया,रंग-बिरंगा साड़ी पैरिया
डान-कान छाजणों बुरुंशी क फूला, जाण कौला जग रों लाल बलबा,
बहार ऐगे चारों तरफा, हवा बहनै चारों तरफा,
भागी गो जाड़ा , हसनौ बसंता , फूल गई फूल रंग-बिरंगा l
बसन्त लगौनौ कटुक प्यारा,चाड पिटंगा गानैई गीता,
रंगीलो बसंता उनै र जये , घर-घर द्वार-द्वार रंग बरसेये l
आहा रे बसंता उनै रै जये , रंग-बहार ल्युनै रै जये,
“हंसा” करणों अरज आजा, बसन्त-बसंती सतरंग फोकिये ,
उदेख मनखी, बोट-डाव-पक्षी ,हरिया-भारिया खूब खिलैये
आहा रे बसंता उनै रै जये।
इन्हे भी पढ़े _ कुमाउनी आशीष वचन जी राया जगी राया देखने और पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
हमारे व्हाट्सप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें