Home राज्य बैकुंठ चतुर्दशी मेले का शुभारम्भ ! कमलेश्वर मंदिर में जागरण करेंगे दंपत्ति

बैकुंठ चतुर्दशी मेले का शुभारम्भ ! कमलेश्वर मंदिर में जागरण करेंगे दंपत्ति

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श्रीनगर उत्तराखंड के प्रसिद्ध कमलेश्वर महादेव मंदिर में प्रसिद्ध बैकुंठ चतुर्दशी मेले का शुभारम्भ हो गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार कैबिनेट मंत्री श्री धन सिंह रावत ने मेले के अवसर पर पूजा अर्चना की। प्रत्येक वर्ष की तरह इस साल भी लगभग 200 से अधिक दंपत्ति संतान सुख की उम्मीद में प्रसिद्ध वैकुण्ठ चतुर्दशी के मेले में खड़ रात्रि जागरण करेंगे।

कमलेश्वर महादेव नाम से प्रसिद्ध शिव का मंदिर श्रीनगर गढ़वाल में स्थित है। मान्यता है की इस मंदिर का निर्माण गुरु शंकराचार्य जी ने किया था। उत्तराखंड के इस प्रसिद्ध मंदिर में भगवान शिव ,गणेश और गुरु शंकराचार्य जी की मूर्तियां स्थापित हैं।

बैकुंठ चतुर्दशी पर मिलता है संतान सुख का आशीर्वाद –

वैसे तो इस मंदिर में मुख्यतः तीन वार्षिक उत्सव मनाये जाते है। जो अचला सप्तमी , शिवरात्रि और बैकुंठ चतुर्दशी। वैकुण्ठ चर्तुदशी के दिन यहाँ भव्य मेला लगता है। और रात को निसंतान दंपत्ति संतान की उम्मीद में रात भर हाथ में दिया रखकर जागरण करते हैं। मान्यता है कि इस प्रकार पूजा करने से निसन्तानं दम्पतियों को भगवान् शिव संतान सुख का आशीर्वाद देते हैं।

क्या है खड़ रात्रि जागरण –

उत्तराखंड में मान्यता है कि खास त्योहारों या शुभ दिन हाथ में दीपक लेकर रात्रि भर देवता को स्मरण करने या साधना करने  से देवता संतान सुख का वरदान देते हैं। इस साधना को खड़े दिए की पूजा ,खड़रात्रि जागरण भी कहते हैं। उत्तराखंड के कमलेश्वर महादेव मंदिर के साथ साथ गणनाथ मंदिर ,जागेश्वर बागेश्वर ,कुर्मासिनी आदी मंदिरों में यह पूजा की जाती है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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