Monday, May 26, 2025
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पहाड़ी गाय जिसे बद्री गाय भी कहते हैं उसके फायदे जानकर दंग रह जाओगे !

उत्तराखंड की कामधेनु ,पहाड़ की बद्री गाय। जी हां जिस गाय को कम फायदे की बता कर लोगो ने अपनी गोशाला खाली कर दी । और पलायन करके परदेश चले गए। उसी गाय की उपयोगिता आज सरकार के साथ साथ बाकी लोग भी मान रहे हैं।

पहाड़ की बद्री गाय या पहाड़ी गाय –

पहाड़ की बद्री गाय केवल पहाड़ी जिलों में पाई जाती है।इसे “पहाड़ी गाय”के नाम से भी जाना जाता है।ये छोटे कद की गाय होती है।छोटे कद की होने के कारण ये पहाड़ो में आसानी से विचरण कर सकती है।

इनका रंग भूरा,लाल,सफेद,कला होता है। इस गाय के कान छोटे से माध्यम आकर के होते हैं।इनकी गर्दन छोटी और पतली  होती है।

बद्री गायों का औसत दुग्ध उत्पादन 1.2से 1.5लीटर तक होता है। लेकिन कुछ गाएं 6 लीटर तक दूध देती है। इनका दूध उत्पादन समय लगभग 275 दिन का होता है।

इनका मुख्य आहार पहाड़ों की घास,जड़ी बूटियां है। इन्हीं जड़ी बूटियों के कारण इनके दूध और मूत्र में औषधीय गुण होते हैं। इनका दूध,दही,घी विटामिन से भरपूर होता है।

नेशनल ब्यूरो ऑफ़ एनिमल जेनेटिक रिसोर्स (NBAGR) सेंटर करनाल ने भी इन गायों को उपलब्धि को प्रमाणित किया है।

यह उत्तराखंड राज्य के लिए एक तरह की वरदान है। केंद्र सरकार भी इन गायों की ब्रांडिंग की योजना बना रही है।उत्तराखंड राज्य के चम्पावत जिले में इन गायों के विकास के लिए 2012 मे काम शुरू हुआ था।वर्तमान में अन्य जिलों में भी चल रहा है। चमोली में बद्री गाय के घी का अच्छा उत्तपादन चल रहा है।

 बद्री गाय

बद्री गाय का घी –

पहाड़ी क्षेत्रों में जड़ी बूटियां खाने वाली उत्तराखंड की पहाड़ी गाय,दूध से लेकर मूत्र तक औषधीय गुणों से सम्पन्न है। विशेष कर पहाड़ी गाय का घी बहुत लाभदायक होता है। इसकी देश विदेशों में बहुत मांग है।

पहाड़ की बद्री गाय के घी के लाभ –

  • गाय का भोजन जड़ी बूटियां होने के कारण,इनका घी स्वतः ही लाभदायक बन जाता है।
  • इस घी को विलोना विधि से बनाया जाता है, इसलिए इसके औषधीय गुण खत्म नहीं होते हैं
  • बद्री गाय का घी रोग प्रतरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काफी लाभदायक होता है। और स्मरण शक्ति बढ़ती है।
  • यह पाचन के लिए अच्छा है। पित्त और वात को शांत करता है।
  • हड्डियां मजबूत करता है, तथा जोड़ो के दर्द से राहत मिलती है।
  • त्वचा और आंखों के लिए अच्छा होता है।
  • पहाड़ी गाय का घी कॉलेस्ट्रॉल कम करता है।
  • यह घी एंटीऑक्सीडेंट,प्रजनन क्षमता और बाल विकास मे सहायक होता है।
पहाड़ी गाय जिसे बद्री गाय भी कहते हैं उसके फायदे जानकर दंग रह जाओगे !
चमोली में निर्मित पहाड़ी गाय का घी

राज्य में बद्री गाय के घी का उत्पादन –

उत्तराखंड में बद्री गाय के घी का उत्पादन लगभग हर घर में होता है। मगर सरकार की सहायता से कई ग्रोथ सेंटर बनाए गए हैं। इनमे बड़ी मात्रा में बद्री गाय के घी का उत्पादन होता है। इनमे से चमोली का मशहूर बद्री गाय का घी है। तथा चम्पावत मे भी बद्री गाय के घी का उत्पादन किया जाता है। अन्य जिलों में भी घी के ग्रोथ सेंटर चल रहे हैं।

चमोली में महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा पहाड़ी गाय के घी का उत्पादन होता है। इसे वो पारम्परिक वैदिक बिलोना विधि से बनाते हैं। जोशीमठ ब्लॉक में 2 ग्रोथ सेंटर चल रहे हैं।

बद्री गाय का घी कहां मिलेगा –

बद्री गाय का घी उत्तराखंड के  ग्रोथ सेंटर्स में उपलब्ध है। तथा अब बद्री गाय के घी का बाजार बढ़ाया जा रहा है। अब उत्तराखंड का प्रसिद्ध बदरी गाय का घी ऑनलाईन में उपलब्ध है। अमेज़न जैसी ऑनलाईन पोर्टल पर यह घी उपलब्ध है। वर्तमान में कोरोना संक्रमण की वजह से बाजार से आप बद्री गाय का घी नहीं खरीद पाते तो ,कोई बात नही।आप आसानी से अमेज़ॉन से पहाड़ी गाय का घी मंगा सकते हैं।

घी निकालने कि वैदिक बिलोना बिधी –

बिलोना विधि भारत की पारम्परिक घी निकालने की विधि है। इसे हम निम्न बिंदुओं में बताते हैं। सर्वप्रथम दूध को हल्की आंच में खूब देर तक पकने देते हैं। लकड़ी के चूल्हा इस काम के लिए सबसे ज्यादा सही रहता है।
फिर दूध को हल्का ठंडा होने के बाद, पारम्परिक लकड़ी के बर्तनों में दही जमाने रख देते है।

दही प्राकृतिक रूप से जमनी चाहिए, तभी घी में पौष्टिकता रहती है।तत्पश्चात दही को ब्रह्म मुहूर्त में मथनी से मथ कर मक्खन अलग कर लेते है।उस मक्खन को हल्की आंच में गरम करके उसमें से घी निकाल लेते हैं।

पहाड़ी गाय जिसे बद्री गाय भी कहते हैं उसके फायदे जानकर दंग रह जाओगे !
Photo credit- Zindagi plus.com

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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