परिचय एक समय था जब झंगोरा पहाड़ी लोगों का दिन भर का अनिवार्य भोजन हुआ करता था। धीरे-धीरे परिस्थितियां बदलीं, लोग पहाड़ छोड़कर मैदानों में बस गए। लोगों की आय और जीवन स्तर बदल गया। जानकारी के अभाव में झंगोरा जैसे सर्वगुण संपन्न अनाज को लोगों ने तुच्छ समझकर त्याग दिया। आज जब लोगों को इस अनाज के गुणों का पता चल रहा है, तो वे दुगनी कीमत में भी झंगोरा खरीदने को तैयार हैं। झंगोरा का परिचय और महत्व – झंगोरा उत्तराखंड का एक पारंपरिक मोटा अनाज है। इसे अंग्रेजी में Indian Barnyard Millet कहते हैं। संस्कृत में इसे…
Author: Bikram Singh Bhandari
छपेली नृत्य उत्तराखंड : कुमाऊँ की लोक संस्कृति में छपेली गीत (Chhapeli song ) एक ऐसी मुक्तक नृत्य-गान शैली है, जो अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण लोगों के दिलों में बसी हुई है। छपेली लोक नृत्य और छपेली लोक गीत न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि यह कुमाउंनी समाज के प्रेम, श्रृंगार और जीवन के विविध रंगों को भी दर्शाते हैं। यह पारंपरिक कला विवाह, उत्सवों और अन्य शुभ अवसरों पर आयोजित की जाती है, जिसमें गायन और नृत्य का समन्वय इसे दृश्य और श्रव्य काव्य का एक अनुपम संगम बनाता है। छपेली नृत्य उत्तराखंड का स्वरूप : –…
झंडा मेला देहरादून में हर साल होली के पाँचवे दिन मनाया जाने वाला उदासी संप्रदाय के सिखों का धार्मिक उत्सव है। इस उत्सव को गुरु श्री गुरु राम राय के देहरादून आगमन की स्मृति में मनाया जाता है। आइए जानते हैं झंडा मेले का इतिहास, धार्मिक महत्व और इस साल के कार्यक्रम की पूरी जानकारी। झंडा मेला 2025 | Jhanda Mela Dehradun 2025 – इस साल झंडा मेला 19 मार्च से 6 अप्रैल 2025 तक आयोजित किया जाएगा। 16 मार्च 2025: श्री दरबार साहिब में ध्वजदंड लाया जाएगा और गिलाफ सिलाई का कार्य शुरू होगा। 19 मार्च 2025: श्री झंडे…
पूर्णागिरि मंदिर की कहानी : उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित पूर्णागिरि मंदिर (Purnagiri Mandir) न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और पौराणिक कथाओं का अद्भुत संगम भी है। समुद्र तल से लगभग 3000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर अन्नपूर्णा पर्वत पर 5500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। चंपावत से 92 किलोमीटर और टनकपुर से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह धाम श्रद्धालुओं के बीच विशेष महत्व रखता है। पूर्णागिरि मंदिर की कहानी : इतिहास और पौराणिक मान्यताएँ – पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता सती ने आत्मदाह किया, तब भगवान…
उत्तराखंड की पावन धरती पर सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपराएं यहाँ की संस्कृति, समाज, और रिश्तों की गहराई को उजागर करती हैं। ऐसी ही एक अनमोल परंपरा है भिटौली प्रथा (Bhitauli Festival), जो भाई-बहन के स्नेह और माता-पिता के प्रेम का प्रतीक है। यह केवल उपहारों की रस्म नहीं, बल्कि अपनों की खुशहाली की कामना और मायके से जुड़ाव का एक भावनात्मक उत्सव है। आइए जानते हैं कि भिटौली प्रथा क्या है, इसका महत्व, और आधुनिक समय में यह कैसे बदल रही है। भिटौली प्रथा क्या है? इसका अर्थ और महत्व (What is Bhitauli Festival?) “भिटौली” शब्द का…
उत्तराखंड की समृद्ध लोकसंस्कृति में फूलदेई पर्व का विशेष स्थान है, और इस पर्व से जुड़ा चला फुलारी फूलों को गीत इस परंपरा का सुंदर प्रतीक है। यह गीत सिर्फ शब्दों का मेल नहीं, बल्कि पहाड़ों की खुशबू, बसंत के आगमन और लोक परंपराओं की मधुर झंकार है। आइए, इस लोकगीत के बोल, भावार्थ और इसकी गूंज को करीब से महसूस करें। चला फुलारी फूलों को गीत के बोल | Chala Phulari Song Lyrics in Hindi – चला फुलारी फूलों को सौदा-सौदा फूल बिरौला हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि फ्योंली लयड़ी मैं घौर छोड्यावा हे जी घर बौण बौड़ीगे…
समस्त उत्तराखंड में चैत्र प्रथम तिथि को बाल लोक पर्व फूलदेई, फुलारी मनाया जाता है। यह त्यौहार बच्चों द्धारा मनाया जाता है। बसंत के उल्लास और प्रकृति के साथ अपना प्यार जताने वाला यह त्यौहार समस्त उत्तराखंड में मनाया जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में यह त्यौहार एक दिन मनाया जाता है, तथा इसे वहाँ फूलदेई के त्यौहार के नाम से जाना जाता है। कुमाऊं में चैत्र प्रथम तिथि को बच्चे सबकी देहरी पर फूल डालते हैं,और गाते है “फूलदेई छम्मा देई उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में यह त्योहार चैत्र प्रथम तिथि से अष्टम तिथि तक मनाया जाता है।…
उत्तराखंड में हर साल चैत्र माह की प्रथम तिथि यानी 14 या 15 मार्च को फूलदेई पर्व ( phooldei festival ) मनाया जाता है। उत्तराखंड के इस लोक पर्व को बाल पर्व भी कहते हैं। क्योंकि इस त्यौहार में बच्चों की मुख्य भूमिका होती है। बड़ो की भूमिका चावल, गुड़ और दक्षिणा देने तक की होती है। यह त्यौहार कुमाऊं और गढ़वाल दोनों मंडलों में मनाया जाता है। इस त्यौहार में बच्चे अपने आस पास के घरो की दहलीज पर पुष्प चढ़ा कर उस घर की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। कहीं यह त्यौहार एक दिन तो कहीं 15…
गोल्ड-प्लेटेड नेपाली जंतर माला (artificial nepali jantar online shopping ) – परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम – क्या आप अपनी पारंपरिक सुंदरता में एक खास निखार लाना चाहती हैं? नेपाल का यह पारंपरिक आभूषण, नेपाली जंतर माला, अब सिर्फ नज़रदोष से बचाव के लिए नहीं, बल्कि एक स्टाइलिश गहने के रूप में भी पहना जा रहा है। पहले यह माला सिर्फ नेपाली महिलाओं द्वारा पहनी जाती थी, लेकिन अब यह पर्वतीय संस्कृति से ताल्लुक रखने वाली महिलाओं के बीच भी काफी लोकप्रिय हो रही है। आज, जो लोग इसे खरीद सकते हैं, वे इसे सोने से तैयार करवा कर…
फूलदेई 2025 (Phool Dei 2025) उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध लोकपर्व है, जिसे हर साल चैत्र मास की संक्रांति पर मनाया जाता है। यह पर्व प्रकृति प्रेम, समृद्धि और शुभता का प्रतीक है। खासतौर पर पहाड़ी इलाकों में बच्चे सुबह-सुबह फूल चुनकर घरों की देहरी पर सजाते हैं और मंगलकामना गीत गाते हैं। इस लेख में हम जानेंगे फूलदेई पर्व 2025 (Phool Dei 2025) का महत्व, उत्सव मनाने की परंपरा, शुभकामनाएं, और आकर्षक फूलदेई फोटो (Phooldei Photo)। फूलदेई पर एक वीडियो देखें : https://youtu.be/EbGklD2dM4M?si=90C0yEOu-92IIpZ1 फूलदेई 2025 (Phool Dei festival 2025) कब है ? फूलदेई 2025 (Phool Dei 2025) इस वर्ष 14…