देहरादून: उत्तराखण्ड की मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने वनाग्नि के स्थायी समाधान और चीड़ की पत्तियों (पिरूल) से कम्प्रेस्ड बायो गैस (सीबीजी) उत्पादन की संभावनाओं पर गम्भीरता से कार्य करने के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक की। इस बैठक में इंडियन ऑयल के अधिकारियों के साथ ऊर्जा, ग्राम्य विकास, पंचायती राज एवं वन विभाग के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि इंडियन ऑयल पिरूल को सीबीजी उत्पादन में फीड स्टॉक के रूप में प्रयोग करने के साथ-साथ जैविक खाद और ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग की संभावनाओं का अध्ययन कर रिपोर्ट शासन को प्रस्तुत करे। उन्होंने इंडियन ऑयल को एक आंतरिक कमेटी गठित करने और डिटेल फिजीबिलिटी रिपोर्ट जल्द से जल्द शासन को सौंपने के लिए कहा।
बैठक में यह भी बताया गया कि उत्तराखण्ड में पिरूल की कुल उपलब्धता में से लगभग 40 प्रतिशत कलेक्शन की संभावनाओं के बाद 60,000 से 80,000 टन प्रतिवर्ष सीबीजी उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है। राज्य में पिरूल की प्रतिवर्ष 1.3 से 2.4 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) की सकल उपलब्धता है, और चीड़ के जंगल राज्य में 400,000 हेक्टेयर में फैले हुए हैं, जहां प्रति हेक्टेयर 2-3 टन पिरूल उपलब्ध है।
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मुख्य सचिव ने इस प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए गढ़वाल और कुमाऊं में संभावित एक-एक स्थान की पहचान करने के निर्देश भी दिए। उन्होंने वन विभाग, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग को इस प्रोजेक्ट पर सक्रियता से कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
बैठक में प्रमुख सचिव श्री आर के सुधांशु, सचिव श्री आर मीनाक्षी सुन्दरम, श्री दिलीप जावलकर सहित वन, नियोजन, वित्त, ऊर्जा विभाग तथा इंडियन ऑयल के अधिकारी मौजूद रहे।
इस पहल से न केवल वनाग्नि की समस्या का समाधान होगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे और पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
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