Friday, November 22, 2024
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कुमाऊं के कलुवा देवता और गढ़वाल के कलुवा वीर की रोचक कहानी !

कुमाऊं में लोक देवता ग्वेल देवता के साथ अवतरित होने वाले लोक देवता कलुवा को कुमाऊं में ग्वेल देवता का प्रमुख सहयोगी और भाई माना जाता है। कुमाऊं में लोक देवता ग्वेल देवता के साथ अवतरित होने वाले लोक देवता कलुवा को कुमाऊं में ग्वेल देवता का प्रमुख सहयोगी और भाई माना जाता है। इतिहासकार और उत्तराखंड के शोधकर्ता यह मानते हैं कि कलुवा एक नागपंथी सिद्ध थे। अपनी सिद्धियों के कारण उसने नाथपंथ में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था। कलुवा वीर के सम्बन्ध में कुमाऊं और गढ़वाल में अलग अलग संकल्पनाएँ पायी जाती हैं।

कुमाऊं में प्रचलित कहानियों के अनुसार कलुवा  गोरिया देवता की माता कालीनारा के पुत्र और गोरिया के भाई माने जाते हैं। कहते हैं जब ग्वेल देवता का जन्म हुवा तो कलिनारा की सौतों ने ग्वेल देवता को वहां से हटाकर उनकी जगह खून से सना सिलबट्टा रख दिया और कलिनारा से कहा कि  तेरी कोख से यह सिलबट्टा पैदा हुवा है। कहते हैं कि उस खून से सने सिलबट्टे को देख कर कन्नारा बहुत दुखी हुई। उसने अपने इष्ट देवताओं से प्रार्थना की कि यदि आप मेरे सच्चे ईष्ट देव होंगे तो इस पत्थर में जान फूंक दो।

कहते हैं कन्नारा की प्रार्थना पर देवों  ने अपनी शक्ति उस पत्थर में जान फूंक दी। तबसे वे ग्वेल देवता के प्रमुख सहयोगी व् भाई कलुवा देवता के रूप में प्रसिद्द हुए। कुमाऊं के पालीपछाऊं क्षेत्र में इसकी जागर अधिक लगाई जाती है तथा यह अधिकतर अनुसूचित जाती वाले लोगो के शरीर में अवतार लेता है।

कुमाऊं की कतिपय जागर गाथाओं में बताया जाता है कि इनका जन्म कैलाघाट में हुवा था। इसे मारने के लिए इसके गले में घनेरी, हाथों में हथकड़ी से बांध कर एक गड्डे में डाल दिया था। बाद में ऊपर से भारी भरकम चट्टानों से दबा दिया। किन्तु कलुवा वीर सब तोड़ कर बहार आ गया। इनको इनके काळा होने की वजह से कलुवा कहते होंगे। कहते हैं इनके साथ बारह बायल और चार वीर चलते हैं। जिनके प्रचलित नाम हैं, रगुतुवावीर, सोबूवावीर, लोड़ियावीर और चौथियावीर।

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काला कलुवा तेरी काली जात, तोई चलाऊं रे कलुवा
छंचर का दीन, मंगल की रात। काला कुलवा उसरालि
पाटली, नौ सौ घुंगरू, नौ सौ ताल। बाजे घुंगरू बाजे
ताल। कलुवा नाचे चोर चोर। बाटे नाचे, घाटे नाचे।
वीर नाचे, सिंगा नाचे। महादेव पार्वती के आगे नाचे।
बोल मर दुलन्तो आयो, आला कासट सुकन्तो आयो।
सुका कासट  मोलतो लायो। इस दस दिशा
तोड़न्तो आयो। बीस दिशा मोड़न्तो आयो। दस भेड़ा
की बली झुकन्तो आयो, षाजा, बुषण
दुकन्तो आयो।

कुमाऊं के कलुवा देवता और गढ़वाल के कलुवा वीर की रोचक कहानी !
कलुवा देवता थान ग्राम -उजगल अल्मोड़ा

कलुवा के बारे में नागपंथ के इन रखवाली मन्त्रों से सिद्ध होता है कि यह नागपंथी सिद्ध था। और नागपंथ से शिक्षा ग्रहण करके इसने अपना अलग पंथ चलाया जिसके अनुयायियों के नाम के आगे कलुवा शब्द जोड़ा गया।  जैसे – उर्स कलुवा ,धर्म कलुवा , मेण कलुवा, नीच कलुवा ,हँकारी कलुवा आदि। किन्तु यह परम्परा आगे नहीं चल पायी।

गढ़वाल में इन्हे कलुवा वीर के नाम से पूजा जाता है। वहां इनकी गिनती सिद्ध नाथपंथी वीरों में होती है। और इन्हे यहाँ लोकदेवता के रूप में नचाया जाता है। यहाँ इन्हे एक प्रचंड देवशक्ति के रूप में पूजा जाता है। यदि इनके मंदिर में कोई घात डालता है तो सामने वाले को उसी समय  टाइम दण्डित करने में देर नहीं करते हैं।

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कामरूप जाप में इसकी वेषभूषा के विषय में कहा गया है, एसा पूत कलुवा आया। हात पर अमरू का कोलंगा (सोटा)। लुवा की फावड़ी, बथथरी जामो, नादि अर सैली, सिंगी, झोली, मेखला, बोड़ण (ओढ़ना) कछोटी पैरने का आकार हैं। ‘इसी पांडुलिपि में इसके सम्बन्ध में यह भी कहा गया है, प्रथमे जउ की धूनी,जउ की धूनी उप्र कुछ ग्रास, ग्रास ऊपरि घास धरास,उपरि शिव शंकर, शिव संकरी उपरी अरू को पूतझाडू,झाडू का पूत कलुवावीर।’

साभार – उत्तराखंड ज्ञानकोष

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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