Saturday, May 10, 2025
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सोमनाथ मेला 2025: उत्तराखंड का सांस्कृतिक और व्यावसायिक उत्सव

Somnath mela masi Almora

सोमनाथ मेला उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के मासी गांव में रामगंगा नदी के तट पर, सोमेश्वर महादेव मंदिर के सामने आयोजित होने वाला एक प्रसिद्ध उत्सव है। यह मेला चखुटिया कस्बे से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण मेलों में से एक है।

यह न केवल सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समृद्ध है, बल्कि व्यावसायिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। पहले यह मेला काशीपुर के चैती मेले की तरह पशुओं के व्यापार के लिए जाना जाता था, लेकिन अब बदलते समय के साथ यहां आधुनिक और पारंपरिक वस्तुओं का व्यापार होता है। मेले की शुरुआत बैसाख माह के अंतिम रविवार से होती है। पहले यह 8 से 10 दिन तक चलता था, लेकिन वर्तमान में यह लगभग एक सप्ताह तक आयोजित होता है।

सोमनाथ मेले का ऐतिहासिक महत्व

सोमनाथ मेले का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है। कन्नौज से दो राजपूत परिवार—कनोडिया और कुलाल—उत्तराखंड के तल्ला गेवाड़ क्षेत्र में आकर बसे। कनोडिया परिवार ने रामगंगा नदी के दाहिने तट पर और कुलाल परिवार ने बाएं तट पर अपना ठिकाना बनाया। इस क्षेत्र में अन्य लोग भी बसे, लेकिन कनोडिया और कुलाल राजपूतों का प्रभाव सर्वोपरि था। माना जाता है कि सोमेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कनोडिया राजपूतों ने करवाया था। इसके बाद बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर मासी में सोमनाथ मंदिर के पास मेला शुरू हुआ।

शुरुआत में कनोडिया और कुलाल राजपूतों के बीच मित्रता थी, लेकिन बाद में किसी कारणवश इनमें दुश्मनी हो गई। यह दुश्मनी इतनी बढ़ गई कि कनोडिया राजपूतों ने कुलाल राजपूतों के मुखिया की हत्या कर दी और उन्हें मासी छोड़ने के लिए मजबूर किया। उसी समय, एक कन्नौजी ब्राह्मण रामदास, जो बद्रीनाथ की यात्रा से लौट रहे थे, मासी में बस गए और यहीं शादी करके गृहस्थ जीवन शुरू किया। उनके वंशज आज मासीवाल कहलाते हैं। कुलाल राजपूतों ने मासी छोड़ते समय अपनी सारी संपत्ति रामदास को सौंप दी और वे सल्ट में बस गए। लेकिन उनके मन में सोमनाथ मेले की याद हमेशा बनी रही।

अंग्रेजी शासनकाल में कुलाल वंशजों और मासीवाल समुदाय ने अपने-अपने क्षेत्रों में थोकदारी (स्थानीय प्रशासनिक अधिकार) प्राप्त कर लिया। एक वर्ष सोमनाथ मेले के अवसर पर, कुलाल वंश के एक उत्साही युवक सोबन सिंह, जिनकी उम्र मात्र 20 वर्ष थी, ने अपनी मां से मेले में जाने की जिद की। उनकी मां ने पुराने इतिहास का हवाला देकर मना किया और चेतावनी दी कि कनोडिया राजपूत उन्हें मार सकते हैं। लेकिन सोबन सिंह की जिद के आगे मां को झुकना पड़ा। उन्होंने बताया कि मासी में उनके सहयोगी मासीवाल लोग रहते हैं, जिनकी मदद ली जा सकती है।

सोबन सिंह ने मासीवाल समुदाय और वाद्य यंत्र बजाने वाले लोगों की मदद से कनोडिया राजपूतों के प्रमुख मालदेव कनोडिया को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद वह सकुशल सल्ट लौट आए। वापस लौटकर उन्होंने मासीवाल समुदाय का धन्यवाद किया और वादा किया कि अगले साल से वह मेले के पहले दिन ढोल-नगाड़ों, पताकाओं और मेलार्थियों के साथ मासी पहुंचेंगे। अपने वादे के अनुसार, अगले साल वह भव्य तरीके से सोमनाथ मेले के पहले दिन पहुंचे। तब से मेले का पहला दिन सल्टिया मेला के नाम से जाना जाता है।

सोमनाथ मेले की अनूठी परंपरा: ओड़ा भेटना

सोमनाथ मेले की सबसे खास परंपरा है ओड़ा भेटना, जिसमें कनोडिया और मासीवाल समुदाय के लोग रामगंगा नदी में पत्थर फेंककर पानी उछालते हैं। यह प्रतीकात्मक रस्म पहले दोनों समुदायों के बीच तनाव का कारण थी, क्योंकि एक साथ रस्म निभाने से खून-खराबे का खतरा रहता था। इस समस्या को हल करने के लिए अंग्रेजी प्रशासन ने व्यवस्था बनाई कि एक साल कनोडिया समुदाय और अगले साल मासीवाल समुदाय यह रस्म निभाएगा। यह परंपरा आज भी मेले का मुख्य आकर्षण है और इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

सोमनाथ मेले का व्यावसायिक महत्व

मासी का सोमनाथ मेला उत्तराखंड के प्रमुख व्यावसायिक मेलों में से एक है। पहले यह मेला चैती मेले की तरह पशुओं के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन अब यहां आधुनिक और पारंपरिक वस्तुओं का व्यापार होता है। खास तौर पर डांग के जूतों का व्यापार यहां बहुत लोकप्रिय था। यह मेला स्थानीय व्यापारियों और खरीददारों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है, जहां हस्तशिल्प, आधुनिक उत्पाद और अन्य वस्तुओं की खरीद-बिक्री होती है। यह मेला स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है और व्यापारियों के लिए एक शानदार अवसर है।

सोमनाथ मेला क्यों है खास?

  • सांस्कृतिक धरोहर: ओड़ा भेटने की अनूठी परंपरा और सल्टिया मेले का उत्साह इस मेले को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाता है।
  • ऐतिहासिक महत्व: कनोडिया और कुलाल राजपूतों के बीच के संघर्ष और मासीवाल समुदाय की कहानी इस मेले को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बनाती है।
  • व्यावसायिक अवसर: पारंपरिक हस्तशिल्प से लेकर आधुनिक वस्तुओं तक, यह मेला खरीदारी के लिए एक शानदार मंच है।
  • प्राकृतिक सौंदर्य: रामगंगा नदी और सोमेश्वर महादेव मंदिर के पास का प्राकृतिक दृश्य मेले को और आकर्षक बनाता है।

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संदर्भ

यह लेख नंदन सिंह बिष्ट की पुस्तक गीलो गेवाड़ और प्रो. डी.डी. शर्मा की पुस्तक उत्तराखंड ज्ञान कोष पर आधारित है।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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