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उत्तराखंड के आभूषण
सिर के आभूषण
शिशफुल: यह फूल की तरह सिर पर रखा जाने वाला आभूषण हैं। सुहागिन महिलाएं गहना जंजीर और हुक की सहायता से पहनती हैं।
मांगटीका: यह महिलाओं के सुहाग का प्रतीक हैं। जंजीर से जुड़ा यह वृताकार आभूषण मांग से माथे के बीच शुभ अवसरों पर पहना जाता हैं। मांगटीका और शीशफूल लगभग एक जैसे आभूषण होते हैं। दोनों को सर में पहना जाता है।
सुहागबिंदी या बिंदी: सुहागिन महिलाओं द्वारा सुहाग की बिंदी का प्रयोग किया जाता है। यह बिंदी कहीं -कहीं चांदी की भी बनाई जाती हैं।
बंदी (बांदी): यह पुराना आभूषण है, जो पाजेब के जैसा होता है। वर्तमान में यह अधिक प्रचलन में नहीं है।
कानों के आभूषण-
मुर्खली या मुर्खी/मुंंदडा: यह सोने या चांदी की बनी होती है। इन्हें कानों के किनारे छेदकर पहना जाता हैं।
बाली: यह कान के निचले भाग में छेद करके पहनी जाती है।
कुंडल: चांदी या सोने से बने इस आभूषण पर मीनाकारी होती है। इस पर किसी पुष्प या मोर आदि की आकृति बनी होती हैं।
कर्णफूल (कनफूल): यह पूरे कान को ढकने वाला आभूषण है, जो ऊपर की ओर पतला तथा नीचे चौड़ा होता हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में कनफूल (कर्णफूल) अधिक पहना जाता है।
तुग्यल (तुगल्य): कुमाऊं मंडल में प्रचलित, कानों का यह जेवर चपटी पट्टी के आकार का होता है, जो सोने या चांदी का बना होता है। इस पर हरे -लाल नगीने जड़े रहते हैं।
इन आभूषणों के अतिरिक्त कानों में झुमके, झुपझुपी, उतरौली, जल -कंछव और मछली भी पहनी जाती हैं।
नाक के आभूषण
नथ (नथुली): कुमाऊं तथा दोनों गढ़वाल क्षेत्रो में नथ या नथूली सुहाग का प्रतीक तथा प्रमुख आभूषण है। इनकी बनावट मैदानी भागों की नथ से भिंन होती है। यह अर्द्वव्यास की गोलाकार छल्ले जेसी आकृति होती है, जिसके निचले भाग में लाल और हरे रंग के तीन सितारे होते है। इसे एक चांदी की जंजीर से हुक द्वारा बालों पर लटकाकर नाक पर पड़ने वाले भार को कम किया जाता है। टिहरी गढ़वाल की नथ, अपनी विशिष्ट बनावट और भार के कारण बहुत प्रसिद्ध है। कहीं -कहीं इसे बेसर भी कहा जाता हैं। कुमाऊनी नाथ थोड़ी बड़ी होती है। आजकल चलन में टिहरी की नथ है, जिसे चन्द्रहार नथ भी कहते हैं।
बुलाक: यह पहाड़ी क्षेत्रों का विशिष्ट आभूषण है। इसका ऊपरी भाग उल्टे ‘=’ के आकार के हुक द्वारा जुड़ा रहता है। बुलाक का मध्य भाग चौड़ा होता है, जो नीचे की ओर शंक्वाकार आकृति ले लेता है। नाक के बीच के भाग को छिदवाकर ही बुलाक पहनी जा सकती है।
गले के आभूषण-
गुलूबंद (गुलबंद या गुलोबंद): यह भी सुहाग का प्रमुख आभूषण है। इसे गले की गोलाई को छूते हुए पहना जाता है। कुमाऊं क्षेत्र में गुलूबंद को रामनवमी भी कहा जाता हैं। गुलूबंद का स्थान वर्तमान में लॉकेट ने ले लिया है। यह कुमाऊं क्षेत्र का पारम्परिक आभूषण भी है।
लॉकेट: यह बहुत प्रचलित स्वर्ण आभूषण है, जिसे हार भी कहा जाता है। यह प्रायः सोने का बनाया जाता है। ऐसे उत्तराखंड का पारंपरिक आभूषण तो नहीं कह सकते लेकिन वर्तमान में इसकी अच्छी डिमांड है।
चरयो: यह माला होती है, जिसमें चांदी या सोने के दानों के साथ लाख या थलीपोत के दाने क्रम से जड़े रहते हैं। यह पहाड़ी महिलाओं का पसंदीदा आभूषण है।
मंगलसूत्र: यह उत्तराखंड का प्रमुख व लोकप्रिय आभूषण है। हलाकि हिन्दू धर्म की सभी सुहागिने इस आभूषण को धारण करती हैं। यह सुहाग की प्रमुख निशानी होती है।
हसुली: यह जन साधारण का लोकप्रिय आभूषण है। संपन्न परिवारों में सोने की हसूली भी पहनी जाती है।
कंठीमाला: यह माला सोने या चांदी के खांचों में नग जड़कर बनाई जाती है। जैसे नाम से ही विदित है कि, कंठ का मतलब गला और माला, अर्थात गले में पहनी जाने वाली माला।
मूंगो की माला: यह साधारण माला होती है, जिसे विशुद्ध रूप से डोरे पर मूंगे के दानों द्वारा या बीच -बीच में चांदी या सोने की गांठें पिरोकर बनाया जाता हैं।
हाथ के जेवर-
धगुला: इसे धागुली या धामुल भी कहा जाता है। मैदानी क्षेत्रों में यह आभूषण ‘खंडवे ‘ के नाम से प्रचलित हैं। धगुले, सोने या चांदी में रांगा मिलाकर बनाया जाते हैं। इन्हे नवजात को नामकरण के समय उपहार दिया जाता है।
पौंछी/पौजी: इसे दोनों हाथों की कलाइयो पर पट्टी के रूप में पहना जाता हैं। प्रत्येक पौछीं तीन या पांच पंक्तियों में लड़ियो से बनी रहती है। इसका प्रत्येक दाना शंकु के आकार का होता है। सुदूर ग्रामीण अंचलों एवं जनजातियों में पौछी का प्रचलन अभी भी है।
अंगूठी या गुठी: इसे मुनडी, मुंदडी या मुद्रिका भी कहा जाता है। पुरुषों में भी अंगुठी का बराबर का प्रचलन है। अमूमन इस पर विभिन्न प्रकार के नग और पत्थर जड़े होते हैं।
चूड़ी: विशुद्ध रूप से स्वर्ण निर्मित होती है। प्रत्येक हाथ पर ४-६ चूड़ियां पहनी जाती हैं। लाख से निर्मित चूड़ियों का प्रयोग भी किया जाता है।
कंगन:> यह चूड़ी से दुगुनी या तिगुनी बड़ी होती है। मैदानी भागों में यह कंगना या चूड़ा कहलाता है। इसका भार २० ग्राम से ५० ग्राम तक रखा जाता है। चूड़ियां की भांति यह भी कलात्मक होते हैं।
गोंखले: यह आभूषण चांदी से बनाए जाते हैं, जिन्हें बाजूबंद भी कहा जाता है। इसमें चांदी के ५ या ७ रूपयें या अठिनियो को जंजीरनुमा आकार में पिरोया जाता हैं, जिन्हें दोनों हाथों के बाजुओं पर विशेष प्रयोजन हेतु पहनने का प्रचलन है।
कमर के जेवर
तगड़ी (तिगड़ी): यह कमर में पहने जाने वाला एकमात्र आभूषण है, जिसे पेटी या करधनी भी कहा जाता है। तगड़ी, प्रायः चांदी से बनाई जाती है। तगड़ी विशेष अवसरों पर ही पहनी जाती है। इसे संपन्नता का प्रतीक माना जाता है।
पैरों के आभूषण
झिंवरा: इन्हें झांवर भी कहा जाता है। यह जोड़े में बनाए जाते है। इन्हें पिंडलियों पर पहना जाता है। इसका भार १००-१०० ग्राम रखा जाता है। ये भीतर से खोखले होते हैं, जिनके अंदर छोटे -छोटे कंकड़ या बीज डाल दिया जाते हैं, जिनसे छम -छम की मधुर ध्वनि उत्पन्न होती हैं।
पौटा: पांव की एडी से छत्ते तक पहने जाने वाले पौटे धुमावदार होते हैं। इनके पीछे भाग में गोल सिक्के की आकृति बनी होती हैं।
पाजेब(जेवर): इन्हें पैजबी भी कहा जाता हैं। पहले यह चौड़ी पट्टी के रूप मे होती थी, जिस पर छोटे -छोटे घुंघरू बंधे रहते थे, किंतु वर्तमान में अपने मूल स्वरूप से यह मात्र एक जंजीर के रूप मे रह गई है।
बिछुवा: यह पैरो की अंगूठे से लगी उंगली में सुहागन स्त्रियों द्वारा पहने जाते हैं। आजकल अन्य उंगलियो में भी विछुवे पहनने का प्रचलन हो गया है।
बच्चों के आभूषण: बच्चों के आभूषण भी प्रायः चांदी के बनाए जाते हैं, जो जन्मदिन, उत्सव या पहली बार ननिहाल आने पर स्वजनों द्वारा भेंट किए जाते हैं। गले के लिए हसुली, हाथों के लिए छोटे -छोटे धागुलियां, पैरों की पाजेब (पेंजनिया) तथा सोने की जंजीर बच्चे को दिये जाने वाले प्रमुख आभूषण है।
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