बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों ने राज्य की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। 14 नवंबर को घोषित हुए नतीजों में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 243 सीटों वाली विधानसभा में भारी बहुमत हासिल करते हुए 202 सीटें जीत लीं। यह जीत NDA के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि यह 2010 के बाद पहली बार है जब गठबंधन ने 200 से अधिक सीटें हासिल की हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल (यूनाइटेड) ने अपनी सीटों में जबरदस्त इजाफा किया, जबकि भाजपा राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
विपक्षी महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-वाम दलों का गठन) को करारी शिकस्त मिली, जो मात्र 35 सीटों तक सिमट गया। तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी को 25 सीटें मिलीं, जो 2020 की 75 सीटों से आधी से भी कम हैं। कांग्रेस को केवल 6 सीटें नसीब हुईं। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का खाता भी नहीं खुला, जबकि एआईएमआईएम ने सीमांचल क्षेत्र में 5 सीटें जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज की।
यह परिणाम न केवल एनडीए की एकजुटता को दर्शाते हैं, बल्कि बिहार की जनता के विकास, सुशासन और जातिवाद से ऊपर उठकर वोट देने के फैसले को भी रेखांकित करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “महिला-युवा (MY) फॉर्मूले” की जीत बताया, जबकि विपक्ष ने चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाए। आइए, इस जीत के प्रमुख कारणों, सीटों के बंटवारे और प्रभावों पर विस्तार से नजर डालें।
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चुनाव का पृष्ठभूमि: दो चरणों में मतदान, रिकॉर्ड वोटिंग
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को संपन्न कराया गया। कुल 243 सीटों के लिए 7.4 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने हिस्सा लिया, जिसमें वोटिंग प्रतिशत 66.91% रहा—1951 के बाद का सबसे ऊंचा आंकड़ा। पहले चरण में 121 सीटों पर 65.08% और दूसरे चरण में 122 सीटों पर 68.76% मतदान हुआ।
मुख्य मुद्दे बेरोजगारी, प्रवासन, जाति जनगणना, महिला सशक्तिकरण और विकास रहे। एनडीए ने “सुशासन बाबू” नीतीश कुमार के 20 वर्षों के शासन को हाईलाइट किया, जबकि महागठबंधन ने “परिवर्तन” और “जंगलराज” की वापसी का आरोप लगाया। प्रशांत किशोर ने “जन सुराज” के बैनर तले सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन वोट शेयर में असफल रहे।
पार्टी-वार सीटें: NDA का जलवा, महागठबंधन का सूपड़ा साफ
चुनाव आयोग के अंतिम आंकड़ों के अनुसार, एनडीए ने बहुमत के आंकड़े (122) को आसानी से पार कर लिया। भाजपा ने 89 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी का तमगा हासिल किया, जो 2020 की 74 से अधिक है। जेडीयू को 85 सीटें मिलीं, जो 43 से दोगुनी से ज्यादा हैं। अन्य सहयोगियों—लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा—को क्रमशः 19, 5 और 4 सीटें नसीब हुईं।
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महागठबंधन की हालत खराब रही। आरजेडी को 25, कांग्रेस को 6, सीपीआई(एमएल) लिबरेशन को 2, सीपीआई(एम) को 1 और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को 1 सीट मिली। एआईएमआईएम की 5 सीटें मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र से आईं। वोट शेयर में एनडीए को 45.92% (भाजपा 20.08%, जेडीयू 19.25%) मिला, जबकि महागठबंधन को 35.43% (आरजेडी 23%)।
| गठबंधन/पार्टी | जीती सीटें (2025) | 2020 की सीटें | वोट शेयर (%) |
| NDA (कुल) | 202 | 125 | 45.92 |
| – भाजपा | 89 | 74 | 20.08 |
| – जेडीयू | 85 | 43 | 19.25 |
| – एलजेपी(आरवी) | 19 | 1 | 4.97 |
| – एचएएम(एस) | 5 | 4 | – |
| – आरएलएम | 4 | 0 | – |
| महागठबंधन (कुल) | 35 | 110 | 35.43 |
| – आरजेडी | 25 | 75 | 23.00 |
| – कांग्रेस | 6 | 19 | 8.75 |
| – सीपीआई(एमएल)एल | 2 | 12 | – |
| – सीपीआई(एम) | 1 | 2 | – |
| – वीआईपी | 1 | 4 | – |
| अन्य | 6 | 8 | 18.65 |
| – एआईएमआईएम | 5 | 1 | – |
| – जन सुराज | 0 | – | 5-7 (अनुमानित) |
| – निर्दलीय/अन्य | 1 | – | – |
| कुल | 243 | 243 | 100 |
स्रोत: चुनाव आयोग ऑफ इंडिया, 14 नवंबर 2025।
प्रमुख विजेता और हारने वाले: हाई-प्रोफाइल सीटों पर क्या हुआ?
- तेजस्वी यादव (आरजेडी, राघोपुर): महागठबंधन के सीएम चेहरा तेजस्वी ने अपनी सीट पर 14,532 वोटों से जीत दर्ज की, लेकिन पार्टी की कुल हार से निराश।
- मैथिली ठाकुर (भाजपा, अलीनगर): भोजपुरी गायिका मैथिली ने 11,730 वोटों से जीतकर इतिहास रचा। यह सीट मुस्लिम बहुल होने के बावजूद एनडीए के लिए बड़ा संकेत।
- अनंत सिंह (जेडीयू, मोकामा): विवादास्पद नेता अनंत सिंह ने 28,000 से अधिक वोटों से आरजेडी की वीणा देवी को हराया।
- राम कृपाल यादव (भाजपा, दानापुर): केंद्रीय मंत्री ने 29,133 वोटों से आरजेडी के रीतलाल यादव को शिकस्त दी।
- तारकिशोर प्रसाद (भाजपा, कटिहार): 22,154 वोटों से वीआईपी के सौरव कुमार को हराया।
- तेज प्रताप यादव (आरजेडी, महुआ): लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप हार गए; एलजेपी के उम्मीदवार ने उन्हें हराया।
कांग्रेस के कई दिग्गज हारे, जैसे राज्य अध्यक्ष राजेश कुमार (कुटुंबा)। जन सुराज के सभी उम्मीदवार असफल रहे।
जीत के 5 प्रमुख कारण: महिला वोट, जाति समीकरण और सुशासन का जादू
एनडीए की जीत के पीछे कई कारक हैं:
- महिला वोटरों का झुकाव: जेडीयू को महिलाओं से सबसे ज्यादा समर्थन मिला। शराबबंदी, छात्रा साइकिल योजना और महिला आरक्षण जैसे कदमों ने काम किया। महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से 3% अधिक रहा।
- जाति सीट-शेयरिंग का स्मार्ट फॉर्मूला: भाजपा ने ऊपरी जातियों (20%) पर कब्जा किया, जबकि जेडीयू को ईबीसी (27%) और दलित (16%) का मजबूत समर्थन मिला। एलजेपी ने पासवान वोट बैंक संभाला।
- सुशासन vs जंगलराज का नैरेटिव: NDA ने नीतीश के 20 वर्षों के विकास को हाईलाइट किया, जबकि आरजेडी पर “जंगलराज” का ठप्पा लगा।
- प्रशांत किशोर का बंटाधार: जन सुराज ने महागठबंधन के वोट काटे, लेकिन खुद जीरी नहीं।
- मोदी मैजिक और संगठन: पीएम मोदी की रैलियों और भाजपा की ग्रासरूट मशीनरी ने अंतिम दौर में लहर लाई।
विपक्ष की हार के कारण: जातिवादी छवि, कांग्रेस की कमजोरी और एकजुटता की कमी। राहुल गांधी ने “वोट चोरी” का आरोप लगाया, लेकिन एनडीए ने इसे खारिज किया।
प्रभाव: नीतीश का दसवां शपथग्रहण, राष्ट्रीय राजनीति पर असर
नीतीश कुमार 16 नवंबर को दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, जो बिहार का रिकॉर्ड होगा। भाजपा के सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा उपमुख्यमंत्री बने रहेंगे। यह जीत 2029 लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के लिए बूस्टर है, खासकर बंगाल और यूपी में। विपक्ष के लिए यह झटका है—आरजेडी अब विपक्ष के नेता का पद भी दांव पर।
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प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “यह विकास की जीत है। बिहार में निवेश आएगा, रोजगार बढ़ेगा।” नीतीश ने “एनडीए की एकजुटता” को श्रेय दिया। बिहार अब “विकसित बिहार” की ओर बढ़ेगा, लेकिन विपक्ष के आरोपों से विवाद बरकरार रहेगा। यह चुनाव बिहार की राजनीति को नया आकार देगा—जाति से ऊपर उठकर विकास की ओर। अगले पांच वर्ष बिहार के लिए निर्णायक साबित होंगे।
