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उत्तराखंड में सावन 2025 का प्रारंभ और समापन –
उत्तराखंड में सावन 2025 (Uttarakhand Sawan 2025) का महीना 16 जुलाई 2025 से शुरू होगा और 15 अगस्त 2025 को समाप्त होगा। यह अवधि हरेला पर्व के साथ शुरू होती है, जो उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रकृति और समृद्धि का प्रतीक है। इस वर्ष सावन का पहला सोमवार 21 जुलाई को आएगा, और 16 अगस्त को सिंह संक्रांति के साथ भाद्रपद माह शुरू हो जाएगा। देश के अन्य हिस्सों में सावन की तिथियां भिन्न होती हैं। उदाहरण के लिए, भारत में सावन 22 जुलाई 2024 से 19 अगस्त 2024 तक मनाया गया था। आइए जानते हैं कि उत्तराखंड में सावन की तिथियां क्यों अलग हैं।
सावन की तिथियों में अंतर का कारण :-
उत्तराखंड, हिमाचल और नेपाल में सावन की तिथियां सौर पंचांग पर आधारित होती हैं, जबकि देश के अन्य हिस्सों में पूर्णिमांत या अमांत पंचांग का पालन होता है। काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश मिश्र के अनुसार, यह अंतर हिंदू पंचांग व्यवस्था से उत्पन्न होता है।
- सौर पंचांग: उत्तराखंड, हिमाचल और नेपाल में महीने की शुरुआत सूर्य के राशि परिवर्तन (संक्रांति) पर होती है, जो आमतौर पर 15, 16 या 17 तारीख को पड़ती है। इसीलिए उत्तराखंड सावन 2025 (Uttarakhand Sawan 2025) 16 जुलाई से शुरू होकर 15 अगस्त को समाप्त होगा।
- पूर्णिमांत पंचांग: उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सावन पूर्णिमा के बाद शुरू होकर पूर्णिमा के आसपास समाप्त होता है। इसलिए मैदानों में सावन पूर्णिमा से शुरू होकर पूर्णिमा पर ख़त्म होता है।
- अमांत पंचांग: दक्षिण और पश्चिमी भारत में सावन अमावस्या से शुरू होकर अमावस्या पर समाप्त होता है। इसलिए वहां सावन अमावस्या से शुरू होता है।
यह पंचांग व्यवस्था उत्तराखंड में सावन को अन्य क्षेत्रों से अलग बनाती है।
सावन में उत्तराखंड की सांस्कृतिक परंपराएं –
उत्तराखंड में सावन का महीना धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से विशेष महत्व रखता है। इस दौरान हरेला पर्व मनाया जाता है, जो फसलों और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। कुमाऊं क्षेत्र में बैसि की परंपरा प्रचलित है, जिसमें भक्त 22 या 11 दिन तक भगवान शिव की भक्ति करते हैं।
सावन से जुड़ी पौराणिक कथाएं –
सावन माह का धार्मिक महत्व पौराणिक कथाओं से और गहरा हो जाता है। एक कथा के अनुसार, सावन में देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया। मंथन से प्राप्त रत्नों को आपस में बांट लिया गया, लेकिन जब हलाहल विष निकला, तो उसे कोई धारण नहीं कर सका। भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका शरीर जलने लगा। तब देवताओं ने उन पर जल अर्पित किया, जिससे उनकी जलन शांत हुई। तभी से सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
कांवड़ यात्रा: उत्पत्ति और महत्व –
कांवड़ यात्रा सावन का एक अभिन्न हिस्सा है। मान्यता है कि भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ में गंगाजल लाकर भगवान शिव को चढ़ाया था। कुछ लोग मानते हैं कि त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने इस परंपरा की शुरुआत की। जब मैदानी क्षेत्रों में पूर्णिमांत सावन शुरू होता है, तब हरिद्वार में कांवड़ मेला लगता है। लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेकर अपने स्थानीय शिव मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं।
निष्कर्ष –
उत्तराखंड सावन 2025 (Uttarakhand Sawan 2025) 16 जुलाई को हरेला पर्व के साथ शुरू होगा और 15 अगस्त को समाप्त होगा। सौर पंचांग के कारण इसकी तिथियां देश के अन्य हिस्सों से भिन्न होती हैं। यह महीना भगवान शिव की भक्ति, हरेला जैसे सांस्कृतिक पर्वों और कांवड़ यात्रा के साथ उत्तराखंड की समृद्ध परंपराओं को दर्शाता है। चाहे आप तीर्थयात्री हों या सांस्कृतिक उत्सवों के प्रेमी, उत्तराखंड का सावन एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है।
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