Home मंदिर वृद्ध जागेश्वर – जहाँ विष्णु रूप में पूजे जाते हैं भगवान् शिव।

वृद्ध जागेश्वर – जहाँ विष्णु रूप में पूजे जाते हैं भगवान् शिव।

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वृद्ध जागेश्वर मंदिर –

वृद्ध जागेश्वर जागेश्वरधाम से 7 किलोमीटर ऊपर दक्षिण-पश्चिम में पैदल मार्ग एक पहाड़ी पर वृद्ध जागेश्वर (शिव) का मूल स्थान है। जागेश्वर की पवित्र नदी जटागंगा का उद्गम स्थल भी यहीं है। यहां से हिमालय का भव्य दृश्य दृष्टिगोचर होता है। शिखर पर स्थित इस देवालय के 1 किमी. पूर्व दण्डेश्वर महादेव का शिखर शैली का देवालय भी स्थित है। इसके विषय में एक जनश्रुति है कि एक बार जब एक चन्द्रवंशी एक युद्ध के लिए जा रहे थे तो उन्हें यहां पर रात हो गयी और उन्होंने यहीं पर अपना डेरा डाल दिया।

जब उनके सैनिक विश्राम स्थल हेतु झाड़ियां साफ करने लगे तो उन्हें एक शिवलिंग मिला। राजा ने उसे भगवान का स्वरूप मानकर उसकी पूजा अर्चना की और मनौती मांगी कि यदि मैं युद्ध में विजयी हुआ तो यहां पर मंदिर का निर्माण कराऊंगा। भगवान् की कृपा से वह विजयी हुआ और उसने इस मंदिर का निर्माण कराया। स्थानीय लोगों की इसके प्रति बड़ी आस्था है। उनकी मान्यता है कि यहां पर अखंड ज्योति जलाने से संतान लाभ होता है। इस ज्योति के विषय में यह भी मान्यता है कि एकटक दृष्टि से दीपक की लौ की ओर देखते रहने से यदि वह रक्तवर्णी दिखाई दे ओर समरूप में जलती रहे तो मनोकामना पूर्ण अवश्य होती है।

वृद्ध जागेश्वर

भगवान् विष्णु के रूप में होती है शिव की पूजा –

इसके सम्बन्ध में विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि यहां पर भगवान् शिव के  शिवलिंग की पूजा शिव के अनुरूप न होकर विष्णु के अनुरूप होती है, क्योंकि अन्य शिवालयों के समान इसे दाल-चावल का भोग न लगाकर वैष्णव देवालयों के समान मालपुओं का भोग लगाया जाता है। यहां के लोगों का कहना है कि यहां पर भगवान् शंकर ने शिव के रूप में दर्शन न देकर विष्णु के रूप में दर्शन दिये थे।

भगवान् जागनाथ के दर्शनों से पूर्व इसका दर्शन आवश्यक माना जाता है। इसके 1 किमी. नीचे कालीगांव के निकट एक चट्टान पर दो पदचिह्न बने हैं, जिन्हें भगवान् शंकर के पद चिह्न माना जाता है।कहा जाता है इस पहाड़ी पर चढ़ते हुए अब वे थक गये थे तो वे विश्राम के लिए कुछ देर यहां पर रुके थे।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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