Home समाचार विशेष जीर्णोद्वार की बाट जोहता कुमाऊं का पौराणिक विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर ।

जीर्णोद्वार की बाट जोहता कुमाऊं का पौराणिक विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर ।

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विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर – उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट नगर को मंदिरों का नगर उत्तर की द्वारिका भी कहा जाता है। इसी मंदिरो के नगर में काशी विश्वनाथ के महत्त्व के बराबर महत्त्व रखने वाला महादेव का मंदिर है जिसे विभाण्डेश्वर महादेव कहा जाता है।

जीर्णोद्वार की बाट जोहता कुमाऊं का पौराणिक मंदिर विभाण्डेश्वर महादेव:

पौराणिक महत्व रखने वाला यह मंदिर आज दिन प्रतिदिन जीर्ण अवस्था में जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार संभवतः जब से इस मंदिर का निर्माण हुआ है तब से इसका जीर्णोद्धार नहीं हुवा है। वर्तमान देख रेख करता श्री गोपाल जोशी जी से महतगाँव निवासी श्री दीवान मेहता जी ने संपर्क किया तो श्री जोशी जी ने बताया कि इस मंदिर का जीर्णोद्वार मंदिर स्थापना से अब तक नहीं हुवा है । कई आश्ववासन भी मिले लेकिन इसके सुधारीकरण की तरफ कुछ भी सकारात्मक नहीं हुवा है।

महान पौराणिक महत्व वाला विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के बड़े मुक्तिधामों में से एक है। सभी जनप्रतिनिधियों और समाज सेवकों और उत्तराखंड सरकार से अनुरोध है कि इस पौराणिक शिवधाम के जीर्णोद्वार में आगे आएं । सरकार से विशेष अनुरोध है कि मानसखंड कोरिडोर की तरह इसके लिए भी योजना बनाएं।

विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर

समाज सेवा और क्षेत्र में सक्रिय महातगांव रतगल निवासी श्री दीवान सिंह मेहता जी ने देवभूमि दर्शन को बताया कि वर्तमान में राणा गांव के श्री गोपाल जोशी जी मंदिर की देख रेख़ करते हैं , जो भी इच्छुक लोग भगवान शिव के इस पावन धाम के जीर्णोद्वार में मदद करना चाहते हैं वे श्री जोशी जी से संपर्क कर सकते हैं।

काशी विश्वनाथ के बराबर महत्व है विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर का :

विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर के बारे में एक पौराणिक कहानी जुड़ी है। कहते हैं मां पार्वती से विवाह के बाद भगवान शिव अपने ससुराल हिमालय राज के घर आए तो उन्होंने सोने की इच्छा जताई । और जब भगवान शिव सोने लगे तब उन्होंने हिमालय के ऊँचे पर्वतों में अपना सिर रखा। कमर रखी नीलगिरि बागेश्वर में और पैर रखे जागेश्वर में। भगवान ने अपना दायां हाथ नागार्जुन पर्वत में रखा और बाया हाथ भुवनेश्वर में रखा। भगवान् शिव का दाया हाथ वरदायी हाथ नागार्जुन में रखा गया इसलिए कहते हैं नागार्जुन में स्थित इस मंदिर का विशेष महत्व है।

भगवान वेदव्यास के अनुसार जो पुण्य काशी विश्वनाथ में दस साल निवास करने से मिलता है वही पुण्य विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर में मात्र दर्शन करने से मिल जाता है।

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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