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उत्तराखंड के पंच केदार –
केदारनाथ की जानकारी विस्तार से पढ़ने के बाद आइए अब जानते है भगवान शिव के पंच केदार के बारे में –
1 . केदारनाथ
2. मध्यमेश्वर
3. तुंगनाथ
4. रुद्रनाथ
5. कल्पेश्वर
केदारनाथ –
यह मुख्य केदारपीठ है। इसे पंच केदार में से प्रथम कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, महाभारत का युद्ध खत्म होने पर अपने ही कुल के लोगों का वध करने के पापों का प्रायश्चित करने के लिए वेदव्यास जी की आज्ञा से पांडवों ने यहीं पर भगवान शिव की उपासना की थी। तब भगवान शिव ने उनकी तपस्या से खुश होकर महिष अर्थात बैल रूप में दर्शन दिये थे और उन्हें पापों से मुक्त किया था। तब से महिषरूपधारी भगवान शिव का पृष्ठभाग यहां शिलारूप में स्थित है।
कब जाएं : केदारनाथ जाने के लिए अप्रैल से अक्टूबर का समय सबसे अच्छा माना जाता है और इतने ही दिन मंदिर के कपाट भी खुलते हैं। इस बीच के बारीश के दिनों में यात्रा नहीं करना चाहिए।
कैसे जाएं : केदारनाथ जाने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार या ऋषिकेश है। यहाँ से आगे का रास्ता सड़क मार्ग से तय किया जाता है। केदारनाथ की चढ़ाई बहुत कठिन मानी जाती है, कई लोग पैदल भी जाते हैं। केदारनाथ के लिए नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है।
केदारनाथ के आस-पास के घूमने के स्थान
उखीमठ : उखीमठ रुद्रप्रयाग जिले में है। यह स्थान समुद्री सतह से 1317 मी. की ऊचाई पर स्थित है। यहां पर देवी उषा, भगवान शिव के मंदिर है।
गंगोत्री ग्लेशियर : उत्तराखंड स्थित गंगोत्री ग्लेशियर लगभग 28 कि.मी लम्बा और 4 कि.मी चौड़ा है। गंगोत्री ग्लेशियर उत्तर पश्चिम दिशा में मोटे तौर पर बहती है और एक गाय के मुंह समान स्थान पर मुड़ जाती हैं।
केदारनाथ से 2 किलोमाटर नीचे शिलाजीत का पहाड़ है।
दूसरा पंच केदार मध्यमेश्वर –
इन्हें मनमहेश्वर या मदनमहेश्वर भी कहा जाता हैं। इन्हें पंच केदार में दूसरा माना जाता है। यह ऊषीमठ से 18 मील दूरी पर है। यहां महिषरूपधारी भगवान शिव की नाभि लिंग रूप में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपनी मधुचंद्र रात्रि यही पर मनाई थी। यहां के जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती है।
कब जाएं : मध्यमेश्वर मंदिर जाने के लिए सबसे अच्छा समय गर्मी का माना जाता है। मुख्यतह यहां की यात्रा मई से अक्टूबर के बीच की जाती है।
कैसे जाएं : उखीमठ से सबसे पास का हरिद्वार या ऋषिकेश रेल्वे स्टेशन है। उखीमठ से उनीअना जाकर, वहां से मध्यमेश्वर की यात्रा की जाती है। सड़क मार्ग द्वारा हरिद्वार या ऋषिकेश से बस द्वारा जा सकते हैं। नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है।
मध्यमेश्वर के आस-पास के घूमने के स्थान :-
बूढ़ा मध्यमेश्वर : मध्यमेश्वर से 2 कि.मी. दूर बूढ़ा मध्यमेश्वर नामक दर्शनीय स्थल है।
कंचनी ताल : मध्यमेश्वर से 16 कि.मी. दूर कंचनी ताल नामक झील है। यह झील समुद्री सतह से 4200 मी. की ऊचाई पर स्थित हैं।
गउन्धर : यह मध्यमेश्वर गंगा और मरकंगा गंगा का संगम स्थल है।
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तीसरा पंच केदार तुंगनाथ –
इसे पंच केदार का तीसरा माना जाता हैं। केदारनाथ के बद्रीनाथ जाते समय रास्ते में यह क्षेत्र पड़ता है। यहां पर भगवान शिव की भुजा शिला रूप में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्वयं पांडवों ने करवाया था। तुंगनाथ शिखर की चढ़ाई उत्तराखंड की यात्रा की सबसे ऊंची चढ़ाई मानी जाती है।
कब जाएं : तुंगनाथ जाने के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से अक्टूबर के बीच का माना जाता है।
कैसे जाएं :
रेल यात्रा : तुंगनाथ के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार है, जो लगभग सभी बड़े स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। सड़क यात्रा : तुंगनाथ पहुंचने के लिए हरिद्वार से ही सड़क मार्ग का प्रयाग भी किया जा सकता है। नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है।
तुंगनाथ के आस-पास के घूमने के स्थान :
चन्द्रशिला शिखर : तुंगनाथ से 2 कि.मी की ऊचाई पर चन्द्रशिला शिखर स्थित है। यह बहुत ही सुंदर और दर्शनीय पहाड़ी इलाका है।
गुप्तकाशी : रुद्रप्रयाग जिले से 1319 मी. की ऊचाई पर गुप्तकाशी नामक स्थान है। जहां पर भगवान शिव का विश्वनाथ नामक मंदिर स्थित है।
चौथा पंचकेदार रुद्रनाथ –
यह पंच केदार में चौथे हैं। यहां पर महिषरूपधारी भगवान शिव का मुख स्थित हैं। तुंगनाथ से रुद्रनाथ-शिखर दिखाई देता है पर यह एक गुफा में स्थित होने के कारण यहां पहुंचने का मार्ग बेदह दुर्गम है। यहां पंहुचने का एक रास्ता हेलंग (कुम्हारचट्टी) से भी होकर जाता है।
कब जाएं : रुद्रनाथ जाने के लिए सबसे अच्छा समय गर्मी और वंसत का मौसम माना जाता है।
कैसे जाएं : रेल मार्ग : ऋषिकेश या हरिद्वार तक रेल माध्यम से पहुंचा जा सकता है, उसके बाद सड़क मार्ग की मदद से कल्पेश्वर जा सकते है।
सड़क मार्ग : रुद्रनाथ जाने के लिए ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून से कई बसे चलती हैं। नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है।
5. पांचवा पंच केदार कल्पेश्वर-
यह पंच केदार का पांचवा क्षेत्र कहा जाता है। यहां पर महिषरूपधारी भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है। अलखनन्दा पुल से 6 मील पार जाने पर यह स्थान आता है। इस स्थान को उसगम के नाम से भी जाना जाता है। यहां के गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है।
कब जाएं : कल्पेश्वर जाने के लिए गर्मी के मौसम में मार्च से जून के बीच और वंसत के मौसम में जुलाई से अगस्त का महीना सबसे अच्छा माना जाता है।
कैसे जाएं : रेल मार्ग : ऋषिकेश या हरिद्वार तक रेल माध्यम से पहुंचा जा सकता है, उसके बाद सड़क मार्ग की मदद से कल्पेश्वर जा सकते है। सड़क मार्ग : जोशीमठ, ऋषिकेश से सड़क मार्ग से आसानी से कल्पेश्वर पहुंचा जा सकता है।
कल्पेश्वर के आस-पास के घूमने के स्थान :
जोशीमठ : कल्पेश्वर से कुछ दूरी पर जोशीमठ नामक स्थान है। यहां से चार धाम तीर्थ के लिए भी रास्ता जाता है।
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