उत्तराखंड स्थापना दिवस पर कविता – 09 नवंबर 2000 को भारत के 27 वे राज्य के रूप में उत्तरांचल राज्य का गठन हुवा था। और 01 जनवरी 2007 से उत्तराँचल का नाम उत्तराखंड कर दिया गया। प्रतिवर्ष 09 नवंबर के दिन उत्तराखंड के निवासी अपने राज्य का स्थापना दिवस मनाते हैं। प्रस्तुत पोस्ट में उत्तराखंड स्थापना दिवस पर कविता का संकलन किया गया है। इस पोस्ट में दो कविताओं का संकलन किया गया है। इन कविताओं में पहली कविता उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवि श्री नारायण सिंह बिष्ट जी का कविता संग्रह धज में से लिया गया है।
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उत्तराखंड स्थापना दिवस पर कविता। “त्याग और कर्ज “
ओ शहीदों तुम्हारे त्याग का कोई मूल्य नहीं है।
कर्ज का कोई हिस्सा नहीं है, यहाँ की जनता जानती है।।
आन्दोलन यहाँ चला के, गोली खा ली तुमने ।
अखबार के पन्ने पर, नाम देखा हमने । ।
कहते हैं साथ नहीं थे, जो कितने हो महान ।
यहाँ पूरे कर गए, हमारे अरमान ।।
कर्ज के भागीदार हम, जिसका कोई वजन नहीं है।
ओ शहीदों स्कूल के विद्यार्थी भी, नहीं भूले हैं तुमको ।
त्याग यहाँ करना सिखाया, कहा- उन्होंने हमको ।।
जो वीर शहीदों ने, हम करते हैं नमन ।
यहाँ आओ मिल के जाओ, देखने को होता मन ।।
ये बात सारी सच है, ये गोल-मोल नहीं है ।
ओ शहीदो… महात्मा गांधी जी जो, अहिंसा के पुजारी थे।
तुम्हारा मार्ग वही, परिणिति दुधारी थी । ।
जिसके शिकार तुम हुए, हम सबको छोड़ चले ।
इन्तजार करेंगे यहाँ, फिर आना समय लगे । ।
हृदय की आवाज है, निरा झूठा बचन नहीं है। ओ शहीदो… ||
लेखक के बारे में : उत्तराखंड स्थापना दिवस पर इस कविता के लेखक हैं श्री नारायण सिंह बिष्ट। यह कविता उनके काव्य संग्रह धज से साभार ली गई है।
ऐसा है हमारा उत्तराखंड , उत्तराखंड स्थापना पर कविता –
उत्तराखंड स्थापना दिवस 2024 के शुभावसर पर देवभूमि दर्शन पोर्टल के पुराने सहयोगी श्री प्रदीप विल्जवान बिलोचन जी ने देवभूमि उत्तराखंड का गुणगान करते हुए एक सुन्दर कविता भेजी है।
ठंडो मिठू पाणी अर काफल की दाणी,
रंगीली फ्यूंली सी ब्यौली हिसर किनगोड़,
स्वर्ग की सी जनी हो स्याणी ऐसा है,
हमारा उत्तराखंड, ऐसा है है हमारा उत्तराखंड ।
राज अलग पाने को कई वीर और कई गुमनाम
वीरों ने, सहर्ष ही में अपना बलिदान दिया ।
पहुंच गई वैकुंठ को जैसे वे महान हस्तियां,
हमारी स्वतंत्रता की खातिर जिन्होंने जीवन,
अपना यह न्योछावर कर दिया ।
अभी भी वीर भडो की महकती सी दिव्य
वे, अनुभूतियां और जीनकी वीरगाथा इस देवभूमि रज रज और,
कण कण में विद्यमान हैं ।
जो सदा ही हमारी आन बान और शान है।
देवभूमि तो क्या वैकुंठ सा है हमारा उत्तराखंड।
तभी तो बद्री उस विशाल में ओर अखंड ।
उस केदार में स्पर्श होते ही चरणों से,
दिव्यता का बोध सम्यकता से ले आता है ।
जो एक सुखद अहसास और आनंद,
को इंगित करा जाता है ।
इस देवभूमि की दिव्यता की परिपाटी को,
कायम रखने की अब हम सबकी जिम्मेदारी है ।
जिसमें इस अलग राज की खातिर कुछ नाम,
तो कुछ गुमनाम वीर सपूतों ने जान अपनी वारी है ।
लेखक के बारे में – उत्तराखंड स्थापना पर आधारित इस कविता के लेखक प्रदीप बिजलवान बिलोचन जी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के मूल निवासी हैं। श्री बिल्जवान जी उत्तराखंड शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। प्रतिभा के धनी श्री प्रदीप बिल्जवान जी काव्य रचनाओं का बहुत शौक रखते हैं। और देवभूमि दर्शन पोर्टल के लिए नियमित रचनाएँ प्रेषित करते रहते हैं।
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